गैसों के अणुगति सिद्धांत के अनुसार पूर्ण शून्य पर क्या होता है?
AFCAT 1 2023 Application Link Active. The Indian Air Force (IAF) began the AFCAT 1 2023 Registration on 1st December 2022 and the registration process will continue till 30th December 2022. For NCC Special Entry in the flying branch, NCC Air Wing C Certificate is mandatory. The AFCAT Entry exam will be conducted to recruit candidates in various branches such as Flying, Technical, Weapon Systems, Administration, Logistics, Accounts, Education & Meteorology. Check out AFCAT 1 2023 Eligibility here. The AFCAT Exam will be from 24th to 26th February 2023.
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अनिल रघुराज (Page 575)
देश के कोने-कोने में छोटे-छोटे कस्बों व शहरों के लोग रिस्क तो लेते है। तभी तो स्पीक एशिया या सारधा जैसी फर्में हज़ारों-हज़ार करोड़ जुटा लेती हैं। लेकिन सरकार अंदर से नहीं चाहती कि लोग ऐसा रिस्क लें जिसमें उनका और देश के औद्योगिक विकास, दोनों का भला हो क्योंकि ऐसा होगा तो डाकघर व बैंकों में रखी हमारी बचत का बड़ा हिस्सा उसे सस्ते कर्ज के रूप में नहीं मिलेगा। आज तथास्तु में एक मिड-कैप कंपनी…और और भी
तोड़ना मूर्तियों को
इच्छा-पूर्ति की बाधा
आप तीसमार खां तो सामने है कौन?
आदर्श स्थिति वो होती कि हर कोई जीतता, मुनाफा कमाता और कोई न हारता, कहीं कोई हैरान-परेशान ट्रेडर नहीं होता। लंबे निवेश में हर किसी के जीतने की स्थिति होती है। लेकिन ट्रेडिंग में तो कतई नहीं। इसलिए जबरदस्त होड़ से भरे इस बाज़ार में आप अपनी गाढ़ी कमाई लगाने से अच्छी तरह समझ लीजिए कि करने क्या जा रहे हैं। जान लें कि आपके सामने उल्टा ट्रेड कौन कर रहा है। अब आगाज़ करें शुक्रवार का…और और भी
फ्रेम का मोह
भाव बताते सारा राज़ नाड़ी की तरह
भावों में छिपा है कंपनी का सारा हाल, उसी तरह जैसे नाड़ी खोल देती है शरीर का सारा राज़। लेकिन कुशल वैद्य ही नाड़ी की धड़कन पढ़ सकता है तो भावों का चार्ट पढ़ने के लिए भी चाहिए विशेष दृष्टि। सबसे खास है यह पकड़ना कि किसी वक्त बड़े निवेशकों/संस्थाओं की तरफ से आनेवाली मांग और सप्लाई का ठीक-ठीक संतुलन क्या है? यह पकड़ लिया तो समझिए, हाथ लग गई बाज़ार की नब्ज। अब गुरुवार की दृष्टि…और और भी
बनारस में बनारसी
बढ़ने/गिरने की वजह तो जानो भाई!
इतने पर खरीदो, इतने पर बेचो और इतने पर स्टॉप-लॉस लगाओ! बाई-सेल, टार्गेट, स्टॉप-लॉस! क्या ट्रेडिंग के लिए इतना भर जान लेना पर्याप्त है? ज्यादातर लोगों का जवाब होगा हां, क्योंकि वे खुद यही करते हैं। इससे ज्यादा से उनका मतलब नहीं होता। हिंदी, मराठी या गुजराती भाषी लोगों को भी इतनी अंग्रेज़ी आती है तो उन्हें फर्क नहीं पड़ता कि टिप अंग्रेज़ी में है या उनकी अपनी भाषा में। आंखों पर ऐसी पट्टी क्यों? अब आगे…और और भी
कल के कि आज के!
निवेश – तथास्तु
दुनिया में निवेश के भांति-भांति के तरीके और शैलियां हैं। लेकिन अच्छी व संभावनामय कंपनियों के शेयर समय रहते कम भाव पर खरीद लेने की शैली ‘वैल्यू इन्वेस्टिंग’ का कोई तोड़ नहीं है। यह बात ‘अर्थकाम’ खुद करीब साढ़े बारह साल के अपने अनुभव से दावे के साथ कह सकता है। मसलन, हमने अपने लॉन्च के करीब साल भर बाद 18 अप्रैल 2011 को इसी कॉलम में (तब यह कॉलम सबके लिए खुला था) एक स्मॉल-कैप कंपनी […]
पेड सेवा
क्या आप जानते हैं?
जर्मन मूल की ग्लोबल ई-पेमेंट कंपनी वायरकार्ड ने बैंकिंग और इसके नजदीकी धंधों में अपने हाथ-पैर पूरी टेक्निकल एनालिसिस की मूल धारणाएँ दुनिया में फैला रखे थे। फिर भी उसका कद ऐसा नहीं है कि इसी 25 जून को उसके दिवाला बोल देने से दुनिया के वित्तीय ढांचे पर 2008 जैसा खतरा मंडराने लगे। अलबत्ता, जिस तरह इस मामले में …
अपनों से अपनी बात
भारतीय अर्थव्यवस्था बढ़ रही है और आगे भी बढ़ेगी। लेकिन कहा जा रहा है कि इसका लाभ आम आदमी को पूरा नहीं मिलता। अमीर-गरीब की खाईं बढ़ रही है। बाज़ार को आंख मूंदकर गालियां दी जा रही हैं। लेकिन बाज़ार सचेत लोगों के लिए आय और दौलत के सृजन ही नहीं, वितरण का काम भी …
bulls (Page 203)
अगर आप ट्रेडिंग के लिए खुद को स्विच-ऑन या स्विच-ऑफ नहीं कर सकते, किसी दिन ट्रेडिंग न करने पर आप परेशान हो उठते हैं तो आप ऑब्सेसिव कम्पल्सिव डिस-ऑर्डर का शिकार हैं। मनोविज्ञान में इसे एक तरह का रोग माना गया है। पहले स्वसाधना से खुद को इस रोग से मुक्त करें। तभी जाकर ट्रेड करें। अन्यथा यह रोग आपके एडिक्शन पर सवार होकर आपके तन मन धन सभी को तोड़ डालेगा। अब मार्च की अंतिम ट्रेडिंग…और और भी
समझें अनुमानों के पीछे की हवाबाज़ी
जीवन के संघर्ष में जीतने के लिए आशावाद बेहद ज़रूरी है। निवेशकों का पूरा साथ पाने के लिए कंपनियों का आशावादी होना और आशावाद का माहौल बनाए रखना भी जरूरी है। इसीलिए कंपनियां भावी धंधे व मुनाफे का अनुमान पेश करती रहती हैं। पर शेयर बाज़ार में निवेश या ट्रेडिंग से कमाई करनी है तो हमें आशावादी नहीं, यथार्थवादी होना पड़ता है। अनुमानों के पीछे की हवाबाज़ी को समझना पड़ता है। अब जानें शुक्र का ट्रेडिंग सूत्र…और और भी
निफ्टी के ‘विशेषज्ञों’ से रहें संभलकर
आज मार्च के डेरिवेटिव सौदों की एक्सपायरी का दिन है। डेरिवेटिव्स का खेल उस्तादों का है। वे स्टॉक ऑप्शंस व फ्यूचर्स के अलावा निफ्टी तक में खेलते हैं। लेकिन इधर आम लोग भी निफ्टी ऑप्शंस/फ्यूचर्स में खेलने लगे तो धंधेबाज़ चरका पढ़ाने में लग गए हैं। एक ‘विशेषज्ञ’ कहते हैं कि मार्च निफ्टी 6600 से 6700 के बीच निपटेगा। जहां 10-15 अंक पर मार होती है वहां 100 अंकों का दायरा! इनसे बचिए आप। बढ़ते हैं आगे…और और भी
न्यूज़ को जाने दो, तथ्यों को पकड़ो
अगर देश ही नहीं, पूरी दुनिया में सर्वे कराया जाए कि बिजनेस न्यूज़ चैनल देखनेवाले कितने लोग ट्रेडिंग से कमाते हैं तो यकीन मानिए कि नतीजा होगा: कोई नहीं, शत-प्रतिशत घाटा खाते हैं। इसका एक कारण यह है कि न्यूज़ जब तक इन चैनलों तक पहुंचती है, तब तक वो बेअसर होकर उल्टी दिशा पकड़ चुकी होती है। दूसरा यह कि यहां न्यूज़ को सनसनीखेज़ बनाने के लिए अतिरंजित कर दिया जाता है। अब बुधवार की दशा-दिशा…और और भी
50 का चक्कर नहीं, 5-10 ही काफी
जान-पहचान बहुतों से होती है। लेकिन गहरी दोस्ती कम ही लोगों से होती है और गाढ़े-वक्त में गहरे दोस्त ही काम आते हैं। यही बात शेयर बाज़ार में ट्रेडिंग पर भी लागू होती है। जान-पहचान तो आपकी तमाम शेयरों से होनी चाहिए। पर कुछ शेयरों से इतनी तगड़ी पहचान होनी चाहिए कि आप उनकी हर चाल-ढाल और नाज़-नखरे से वाकिफ हों। ट्रेडिंग पचास में नहीं, इन्हीं पांच-दस शेयरों में कीजिए तो मुनाफा कमाएंगे। अब वार मंगल का…और और भी
चार्ट पर चुनौती अदृश्य को देखने की
निवेश के लिए भावों का चार्ट देखना ज़रूरी नहीं। लेकिन ट्रेडिंग करनेवालों का काम इसके बिना नहीं चलता। बहुत से लोग शेयरखान में एकाउंट खुलवाते हैं ताकि उसके साथ उन्हें ट्रेड टाइगर सॉफ्टवेयर मुफ्त में मिल जाए। चार्ट पर टेक्निकल एनालिसिस के सारे संकेतक, जो बीत चुका है, जो निर्जीव है, उसे दिखाते हैं। असली चुनौती जो अदृश्य है, सौदों के पीछे जो लोग है, उन्हें देखने की है। आगे की दृष्टि के साथ करते हैं आगाज़…और और भी
आप तीसमार खां तो सामने है कौन?
आदर्श स्थिति वो होती कि हर कोई जीतता, मुनाफा कमाता और कोई न हारता, कहीं कोई हैरान-परेशान ट्रेडर नहीं होता। लंबे निवेश में हर किसी के जीतने की स्थिति होती है। लेकिन ट्रेडिंग में तो कतई नहीं। इसलिए जबरदस्त होड़ से भरे इस बाज़ार में आप अपनी गाढ़ी कमाई लगाने से अच्छी तरह समझ लीजिए कि करने क्या जा रहे हैं। जान लें कि आपके सामने उल्टा ट्रेड कौन कर रहा है। अब आगाज़ करें शुक्रवार का…और और भी
भाव बताते सारा राज़ नाड़ी की तरह
भावों में छिपा है कंपनी का सारा हाल, उसी तरह जैसे नाड़ी खोल देती है शरीर का सारा राज़। लेकिन कुशल वैद्य ही नाड़ी की धड़कन पढ़ सकता है तो भावों का चार्ट पढ़ने के लिए भी चाहिए विशेष दृष्टि। सबसे खास है यह पकड़ना कि किसी वक्त बड़े निवेशकों/संस्थाओं की तरफ से आनेवाली मांग और सप्लाई का ठीक-ठीक संतुलन क्या है? यह पकड़ लिया तो समझिए, हाथ लग गई बाज़ार की नब्ज। अब गुरुवार की दृष्टि…और और भी
बढ़ने/गिरने की वजह तो जानो भाई!
इतने पर खरीदो, इतने पर बेचो और इतने पर स्टॉप-लॉस लगाओ! बाई-सेल, टार्गेट, स्टॉप-लॉस! क्या ट्रेडिंग के लिए इतना भर जान लेना पर्याप्त है? ज्यादातर लोगों का जवाब होगा हां, क्योंकि वे खुद यही करते हैं। इससे ज्यादा से उनका मतलब नहीं होता। हिंदी, मराठी या गुजराती भाषी लोगों को भी इतनी अंग्रेज़ी आती है तो उन्हें फर्क नहीं पड़ता कि टिप अंग्रेज़ी में है या उनकी अपनी भाषा में। आंखों पर ऐसी पट्टी क्यों? अब आगे…और और भी
ऊपर-ऊपर जाना तो रामनाम सत्य!
मुनाफे का मौका ताड़ने में लोगों को ज्यादा वक्त नहीं लगता। हम हिंदुस्तानी इस मायने में खटाक से जोखिम उठाने को तैयार हो जाते हैं। पहले इंट्रा-डे ट्रेडिंग में लाखों ट्रेडरों ने हाथ जला डाला। अब हर कोई निफ्टी के ऑप्शंस व फ्यूचर्स से सम्मोहित है। सामान्य से सामान्य लोग जो बस गिनती-पहाड़ा तक जानते हैं, डेरिवेटिव जैसे जटिल प्रपत्रों में हाथ डाल रहे हैं। बस ऊपर-ऊपर जान लिया। बाकी रामनाम सत्य है। अब वार मंगल का…और और भी
निवेश – तथास्तु
दुनिया में निवेश के भांति-भांति के तरीके और शैलियां हैं। लेकिन अच्छी व संभावनामय कंपनियों के शेयर समय रहते कम भाव पर खरीद लेने की शैली ‘वैल्यू इन्वेस्टिंग’ का कोई तोड़ नहीं है। यह बात ‘अर्थकाम’ खुद करीब साढ़े बारह साल के अपने अनुभव से दावे के साथ कह सकता है। मसलन, हमने अपने लॉन्च के करीब साल भर बाद 18 अप्रैल 2011 को इसी कॉलम में (तब यह कॉलम सबके लिए खुला था) एक स्मॉल-कैप कंपनी […]
पेड सेवा
क्या आप जानते हैं?
जर्मन मूल की ग्लोबल ई-पेमेंट कंपनी वायरकार्ड ने बैंकिंग और इसके नजदीकी धंधों में अपने हाथ-पैर पूरी दुनिया में फैला रखे थे। फिर भी उसका कद ऐसा नहीं है कि इसी 25 जून को उसके दिवाला बोल देने से दुनिया के वित्तीय ढांचे पर 2008 जैसा खतरा मंडराने लगे। अलबत्ता, जिस तरह इस मामले में …
अपनों से अपनी बात
भारतीय अर्थव्यवस्था बढ़ रही है और आगे भी बढ़ेगी। लेकिन कहा जा रहा है कि इसका लाभ आम आदमी को पूरा नहीं मिलता। अमीर-गरीब की खाईं बढ़ रही है। बाज़ार को आंख मूंदकर गालियां दी जा रही हैं। लेकिन बाज़ार सचेत लोगों के लिए आय और दौलत के सृजन ही नहीं, वितरण का काम भी …
सुनक को ब्रिटिश पीएम की कुर्सी और ग्लोबल होती दीवाली, देखें सुधीर चौधरी संग ब्लैक&व्हाइट
सुनक को ब्रिटिश पीएम की कुर्सी और ग्लोबल होती दीवाली, देखें सुधीर चौधरी संग ब्लैक&व्हाइट
सुधीर चौधरी
- नई दिल्ली,
- 25 अक्टूबर 2022,टेक्निकल एनालिसिस की मूल धारणाएँ
- अपडेटेड 10:07 PM IST
भारतीय मूल के ऋषि सुनक के ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बनने से भारत में लोग खुश हैं. लेकिन विपक्ष के नेताओं ने उनके पीएम बनने के साथ एक नई बहस शुरू कर दी है. क्या सोनिया गांधी और ऋषि सुनक की तुलना करना सही है ? क्या ऋषि सुनक के मन में भारत के लिए कोई सॉफ्ट कॉर्नर हैं? दिवाली कैसे भारत की सॉफ्ट पॉवर बन रही है? सुधीर चौधरी के साथ देखें ब्लैक एंड व्हाइट विश्लेषण.
People in India टेक्निकल एनालिसिस की मूल धारणाएँ are happy with Indian-origin Rishi Sunak becoming the Prime Minister of Britain. But the leaders of the opposition have started a new debate with his becoming the PM. Does Rishi Sunak have any soft corners for India? How is Diwali becoming the soft power of India? Watch black and white analysis with Sudhir Chaudhary.
सुनक को ब्रिटिश पीएम की कुर्सी और ग्लोबल होती दीवाली, देखें सुधीर चौधरी संग ब्लैक&व्हाइट
सुनक को ब्रिटिश पीएम की कुर्सी और ग्लोबल होती दीवाली, देखें सुधीर चौधरी संग ब्लैक&व्हाइट
सुधीर चौधरी
- नई दिल्ली,
- 25 अक्टूबर 2022,
- अपडेटेड 10:07 PM IST
भारतीय मूल के ऋषि सुनक के ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बनने से भारत में लोग खुश हैं. लेकिन विपक्ष के नेताओं ने उनके पीएम बनने के साथ एक नई बहस शुरू कर दी है. क्या सोनिया गांधी और ऋषि सुनक की तुलना करना सही है ? क्या ऋषि सुनक के मन में भारत के लिए कोई सॉफ्ट कॉर्नर हैं? दिवाली कैसे भारत की सॉफ्ट पॉवर बन रही है? सुधीर चौधरी के साथ देखें ब्लैक एंड व्हाइट विश्लेषण.
People in India are happy with Indian-origin Rishi Sunak becoming the Prime Minister of Britain. But the leaders of the opposition have started a new debate with his becoming the PM. Does Rishi Sunak have any soft corners for India? How is Diwali becoming the soft power of India? Watch black and white analysis with Sudhir Chaudhary.
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