स्टॉक सूचक का उपयोग

Read the following passage and answer the question that follows.

Most developing countries have outdated and deteriorated stocks of pesticides that can no longer be used as prescribed on the label. These stocks are often stored in poor conditions and pose a threat to human health and the environment. With the exception of a few newly industrialized countries, developing countries do not have adequate facilities to dispose of such stocks in a safe and environmentally sound manner. In many cases, therefore, the recommended disposal method would appear to be shipment of the pesticides to a country that has special hazardous waste incineration facilities. In view of the dangerous nature of these pesticides and the high costs of safe and environmentally sound disposal, the long-term solution to obsolete stocks lies in preventive measures: improved stock management and reduction of stocks.

Q. Which of the following cannot be inferred from the passage?

1. The stockpile of outdated and deteriorated pesticides is an indicator that the country is a developing country.
2. One potential solution to disposing off outdated pesticides would be to build special hazardous waste incineration facilities.
3. The developing countries lack proper stock management and timely usage of the stock.

Select the correct answer using the code given below.

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर उसके नीचे दिए गए प्रश्न का उत्तर दें:

अधिकांश विकासशील देशों में कीटनाशकों के पुराने और ख़राब हो चुके स्टॉक हैं जिनका निर्धारित मापदंड के अनुसार अब उपयोग नहीं किया जा सकता है।ये स्टॉक अक्सर खराब परिस्थितियों में संग्रहीत होते हैं और मानव स्वास्थ्य तथा पर्यावरण के लिए खतरा पैदा करते हैं।कुछ नए औद्योगिक देशों के अपवाद के साथ, विकासशील देशों के पास इस तरह के स्टॉकों के निपटान हेतु सुरक्षित और पर्यावरणीय रूप से अनुकूल पर्याप्त सुविधाएँ नहीं हैं।इसलिए कई मामलों में अनुशंसित निपटान विधि ऐसे देश में जिसमें विशेष खतरनाक अपशिष्ट भष्मीकरण सुविधाएँ हैं, कीटनाशकों के नौवहन के रूप में दिखाई देगी।इन कीटनाशकों की खतरनाक प्रकृति और सुरक्षित तथा पर्यावरणीय रूप से अनुकूल निपटान की उच्च लागत के मद्देनज़र अप्रचलित स्टॉकों का दीर्घकालिक समाधान निवारक उपायों में निहित है:स्टॉक प्रबंधन में सुधार और स्टॉकों में कमी।

Q. निम्नलिखित में से कौन सा निष्कर्ष उपरोक्त गद्यांश से नहीं निकाला स्टॉक सूचक का उपयोग जा सकता है?

1. पुराने और ख़राब हो चुके कीटनाशकों का भंडार एक संकेतक है कि देश एक विकासशील देश है।
2. पुराने कीटनाशकों को निपटाने का एक संभावित समाधान होगा,विशेष खतरनाक अपशिष्ट भस्मीकरण सुविधाओं का निर्माण करना।
3. विकासशील देशों में उचित स्टॉक प्रबंधन और स्टॉक का समय पर उपयोग का अभाव है।

अर्जेंटीना व ब्राजील में खरीदी निकलने का सीधा प्रभाव भारतीय आयातकों पर

चीन ने अर्जेंटीना, ब्राजील से सोयाबीन तेल की खरीदी शुरू की तो भारतीय बाजारों पर सीधा प्रभाव पड़ सकता है। सोया तेल डिस्काउंट में मिलना कठिन होगा। चीन पाम तेल का उपयोग भी बढ़ा सकता है, स्टॉक सूचक का उपयोग जिसका लाभ मलेशिया, इंडोनेशिया के उत्पादकों को मिलने की आशा व्यक्त की जा रही है। चीन अगले तीन महीनों में 6 से 9 प्रतिशत आयात में कमी करने का प्रयास करेगा। इसमें अमेरिका में स्टॉक बढ़ेगा। आयात शुल्क का लाभ चाहे भारतीय किसानों को मिले या न मिले श्रीलंका, भूटान एवं बांग्लादेश को मिलने लगा है। इन देशों से ओलीन एवं वनस्पति का आयात शुरू हो गया है। पिछले दशकों में श्रीलंका से बड़ी मात्रा में वनस्पति आकर बिक चुका है। वायदे में सटोरिए सोयाबीन में किस आधार पर मंदी मार रहे हैं। समझ से परे हैं। मानसून का पता नहीं है। कब बरसेगा और बोवनी कब होगी, यह भी समझ नहीं आ रहा है।

तेल डिस्काउंट में मिलना बंद

आम धारणा यह है कि चीन द्वारा अमेरिका से सोयाबीन खरीदी बंद करने का भारत पर बड़ा प्रभाव नहीं आना चाहिए, क्योंकि अर्जेंटीना एवं ब्राजील से सोया तेल आयात करते हैं। यदि चीन की बड़ी खरीदी इन राज्यों में निकली तो भारत को भी महंगा सोया तेल खरीदना पड़ सकता है। सोया तेल डिस्काउंट में मिलना कठिन होगा। इसके अलावा मलेशिया में यह भय बैठा हुआ है कि चीन पाम तेल की खरीदी कब शुरू कर दे।

अमेरिका-चीन ट्रेड वॉर के बाद चीन आगामी महीनों में अमेरिका से आयात निर्भरता समाप्त करना चाह रहा है। इस वजह से ब्राजील-अर्जेंटीना से सोयाबीन की खरीदी करने लगा है। इसके अलावा सोया तेल के स्थान पर पाम तेल का उपयोग भी बढ़ा सकता है। यह आशंका भी घर करती जा रही है। अत: आने वाले महीनों में विश्व स्तर पर तेल-तिलहन मात्रा में क्या प्रभाव पड़ेगा, इसका आकलन करना बेहद कठिन है। इन दोनों राज्यों में सोया तेल भी महंगा हो जाएगा। चीन ने ब्राजील से मई माह में आयात बढ़ाया है। इसके अलावा अगले तीन माह में चीन 6 से 9 प्रतिशत आयात कम करने का प्रयास करेगा। अमेरिका में स्टॉक बढ़ेगा। अमेरिकी कृषि विभाग की रिपोर्ट मंदी सूचक आ सकती है।

चीन ने आगामी महीनों के लिए सोयाबीन की बुकिंग कर रखी है। जून में 95 लाख टन, जुलाई स्टॉक सूचक का उपयोग में 90 लाख टन, अगस्त में 88 लाख टन। चीन में सोयाबीन का स्टॉक 85.40 लाख टन का बताया जा रहा है। कृशिंग में कमी आई है। सोया डीओसी का स्टॉक 10.6 लाख टन है, जबकि पिछले महीने में 11 लाख टन का था। सोया डीओसी का स्टॉक घट रहा है। सोया तेल का स्टॉक 13.70 लाख टन बताया गया है। यह स्टॉक पिछले महीने से 30 हजार टन अधिक है। चीन के बंदरगाहों पर 4.34 लाख टन सोयाबीन का स्टॉक पड़ा है। चीन ने ब्राजील से खरीदी शुरू की तो स्टॉक हलका हो जाएगा। अर्जेंटीना की फसल कम उतरने से तेजी आने वाली थी, वह नहीं आ सकी थी। चीन की खरीदी के बाद आ सकती है।

महाराष्ट्र में आवक कम

वायदा कारोबार में मंदी वाले सटोरियों ने सोयाबीन के भाव घटाकर रख दिए हैं। भारत में सोयाबीन का आयात दलहन-तेल के समान खुला नहीं है। विदेशी बाजार को देखकर सटोरिए मंदी मार रहे हैं, जिसका सीधा संबंध ही नहीं है। किसानों के पास कितना सोयाबीन है, इसका सही अंदाज लगाना कठिन है। महाराष्ट्र में मप्र से आवक अधिक मात्रा में कम हो गई है। राजस्थान में लंबे समय से 10-12 हजार बोरी की आवक हो रही है। मप्र की अधिकांश मंडियां तीन दिन तक बंद हैं।

आयात शुल्क का असर
तेल उद्योग बार-बार तेलों पर आयात शुल्क बढ़ाकर अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार रहा है। इसके अलावा किसानों का भी कोई भला नहीं हो रहा है। आयात शुल्क बढ़ने के बाद टैरिफ घट गई। रुपए की विनिमय दर में बदलाव आ गया है। जिससे मंदी पड़ गई। उत्पादन लागत बढ़ गई। श्रीलंका ने डीजीएफ से 2.5 लाख टन वनस्पति भारतभेजने की अनुमति मांगी है। भूटान एवं बांग्लादेश से बड़ी मात्रा में ओलीन तेल आ रहा है। यह आयात टिन एवं लूज में हो रहा है। उल्लेखनीय है कि स्टॉक सूचक का उपयोग पिछले दशकों में भी श्रीलंका का वनस्पति बड़ी मात्रा में भारत आकर बिका था। जिससे वनस्पति बड़ी मात्रा में भारत आकर बिका था। जिससे वनस्पति उद्योग की नींव हिल गई थी। श्रीलंका, भूटान, बांग्लादेश से विशेष समझौता है। इसका लाभ देश उठा रहे हैं। यदि पतली गली से आयात बना रहा तो शुल्क बढ़ाना एवं किसानों को मदद करने जैसी योजनाओं पर पानी फिरता नजर आ सकता है।

क्या होता है बुल और बियर मार्केट, क्यों मिला इन्हें ये नाम, इनमें निवेशकों की क्या होनी चाहिए नीति?

बुल मार्केट को कैसे मिला ये नाम. (फोटो- न्यूज18)

बुल मार्केट की पहले पहचान करना मुश्किल होता है. बाजार में लगातार उतार-चढ़ाव होता रहता है, ऐसे में कब स्टॉक्स या अन्य सि . अधिक पढ़ें

  • News18 हिंदी
  • Last Updated : December 04, 2022, 09:48 IST

हाइलाइट्स

बुल मार्केट में बाजार तेजी से ऊपर की ओर जाता है.
इसे स्टॉक सूचक का उपयोग अर्थव्यवस्था में भी वृद्धि के सूचक के रूप में देखा जाता है.
काफी लंबे समय तक वृद्धि के दौर को बुल मार्केट कहा जाता है.

नई दिल्ली. बुल मार्केट उस स्थिति को कहते हैं जब किसी वित्तीय बाजार में तेजी होती है या तेजी आने की उम्मीद होती है. बुल मार्केट का इस्तेमाल वैसे तो शेयर मार्केट के लिए किया जाता है लेकिन ये ऐसे किसी स्टॉक सूचक का उपयोग बी बाजार में उपयोग किया जा सकता है जहां खरीद-बिक्री होती हो. मसलन, बॉन्डस, रियल एस्टेट, करेंसी और कमोडिटी. बुल मार्केट कई महीनों या सालों तक चल सकते हैं. बाजार में कुछ दिन की बढ़त को बुल मार्केट नहीं कह सकते. इसकी परिभाषा आमतौर पर यह है कि जब किसी स्टॉक में 20-20 फीसदी 2 गिरावटों के बाद 20 फीसदी का उछाल आ जाए तो वह बुल मार्केट है.

बुल मार्केट की पहले पहचान करना मुश्किल होता है. बाजार में लगातार उतार-चढ़ाव होता रहता है, ऐसे में कब स्टॉक्स या अन्य सिक्योरिटीज नीचे चली जाएं इसके बारे में बिलकुल सटीक भविष्यवाणी करना असंभव है. इसलिए विश्लेषक बुल मार्केट बीतने के बाद ही इसकी पहचान कर पाते हैं.

क्या होती है बियर मार्केट?
अगर उपरोक्त ट्रेंड उल्टी दिशा में चल पड़े यानी लंबे समय तक बाजार में गिरावट जारी रहे तो उसे बियर मार्केट कहते हैं. बियर मार्केट अक्सर तब बनती है जब अर्थव्यवस्था में धीमापन आना शुरू होता है. बियर मार्केट में एक निराशावाद फैला होता है और निवेशक पैसा निकालकर बस बाजार छोड़ना चाह रहे होते हैं.

क्यों मिला ये नाम?
आमतौर पर माना जाता है कि जिस तरह बुल और बियर किसी पर हमला करते हैं उसी को यहां भी दर्शाया गया है. जैसे अगर बुल किसी पर हमला करता है सींग से उठाकर ऊपर की ओर फेंकने की कोशिश करता है. वहीं, जब बियर किसी पर अटैक करता है तो वह ऊपर से कूदते हुए सामने वाले को नीचे दबाने की कोशिश करता है. इसलिए जब ट्रेंड ऊपर जा रहा है तो बुल मार्केट है और जब नीचे आ रहा है बियर मार्केट है.

अर्थव्यवस्था की स्थिति के सूचक
बुल और बियर मार्केट देश की अर्थव्यवस्था की स्थिति के भी बड़े इंडिकेटर होते हैं. इकोनॉमिक साइकल 4 चरणों की होती है. वृद्धि (एक्सपेंशन), चरम (पीक), गिरावट (कॉन्ट्रेक्शन) और गर्त (ट्रफ). गर्त यानी कि अर्थव्यवस्था बिलकुल नीचे जा चुकी है. बुल मार्केट का आगमन वृद्धि को दर्शाता है. वहीं, बियर मार्केट गिरावट की सूचक होती है.

निवेशक क्या करें
बुल मार्केट से लाभ कमाने के लिए खरीदों और होल्ड करो की नीति अपनानी चाहिए. स्टॉक को अभी खरीदें और बाद में बेचें. हालांकि, इसमें निवेशकों को अपने फैसलों पर भरोसा होना चाहिए. जब तक आपको न लगे कि उस स्टॉक में वृद्धि की उम्मीद है तब तक उसे न खरीदें. आप इसके बाद एक निश्चित सीमा में और शेयर खरीदकर होल्ड कर सकते हैं. बियर मार्केट में भगदड़ मचाने की बजाय अपने पोर्टफोलियो को डाइवर्सिफाइ करने पर ध्यान दें, मजबूत शेयरों में पैसा लगाएं भले ही उस समय उसमें गिरावट चल रही हो. ऐसा करते समय इस बात का ध्यान रखें कि आप कितना लॉस झेल सकते हैं और कितने समय तक झेल सकते हैं.

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Brain stroke: एमआरआई नहीं, माथे पर बैंड लगाकर चल जाएगा ब्रेन स्ट्रोक का पता, आईआइटी मंडी के शोध में खुलासा

वर्तमान में एमआरआई और सीटी स्कैन को स्ट्रोक का पता लगाने का सबसे सटीक परीक्षण माना जाता है। ये टेस्ट महंगे होने के कारण भारत की बड़ी आबादी की पहुंच से परे हैं।

आईआईटी मंडी के वैज्ञानिक ब्रेन स्ट्रोक मशीन के साथ।

एमआरआई और सीटी स्कैन जैसे महंगे टेस्ट के बिना भी अब जानलेवा ब्रेन स्ट्रोक का तुरंत पता लग सकेगा। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) मंडी और पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट फॉर मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (पीजीएमआईईआर) चंडीगढ़ ने मिलकर शोधकर हैड बैंड की तरह का ऐसा आसान, पोर्टेबल और सस्ता उपकरण तैयार किया है, जिसे माथे पर लगाने से मस्तिष्क का टेस्ट हो सकेगा और रिपोर्ट भी तुरंत मिलेगी। खास यह है कि इस उपकरण को कहीं भी ले जाया जा सकता है। इसका शोधपत्र सेंसर जर्नल इंस्टीट्यूट ऑफइलेक्ट्रिकल एंड इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियर्स (आईईईई) यूएसए में प्रकाशित हुआ है। बता दें कि वर्तमान में एमआरआई और सीटी स्कैन को स्ट्रोक का पता लगाने का सबसे सटीक परीक्षण माना जाता है। ये टेस्ट महंगे होने के कारण भारत की बड़ी आबादी की पहुंच से परे हैं। यही नहीं, एक सर्वे के अनुसार देश में प्रत्येक 10 लाख लोगों पर केवल एक एमआरआई सेंटर है।

इन वैज्ञानिकों ने किया काम
इस शोध पर एसोसिएट प्रोफेसर, स्कूल ऑफ कंप्यूटिंग एंड इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग आईआईटी मंडी डॉ. शुभजीत रॉय चौधरी, शोधार्थी दालचंद अहिरवार, पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट फॉर स्टॉक सूचक का उपयोग मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च चंडीगढ़ के डॉ. धीरज खुराना ने काम किया है।

भारत में 40 वर्ष से कम के हो रहे शिकार
इस्केमिक या ब्रेन स्ट्रोक का भारतीय आंकड़ा चिंताजनक है। औसतन 500 भारतीयों में से एक को स्ट्रोक का खतरा रहता है। सर्वे बताते हैं कि स्ट्रोक के कुल मामलों में लगभग 10 से 15 प्रतिशत 40 वर्ष से कम उम्र वालों के हैं।

इस तरह काम करता है डिवाइस
डॉ. चौधरी बताते हैं कि एक छोटा वियरेबल डिवाइस डिजाइन विकसित किया है, जो नियर इन्फ्रा रेड स्पेक्ट्रोस्कोपी (एनआईआरएस) डायोड एलईडी के उपयोग से इस्केमिक स्ट्रोक का पता लगाने के लिए 650 से 950 नैनीमीटर रेंज में प्रकाश उत्सर्जन करता है। यह प्रकाश खून के रंगीन घटकों जैसे हीमोग्लोबिन से प्रतिक्रिया करता है और खून के विशेष लक्षणों ऑक्सीजन सैचुरेशन, ऑक्सीजन उपयोग और खून की मात्रा का सूचक आदि बताता है।

यह है इस्केमिक स्ट्रोक
स्ट्रोक का सबसे आम प्रकार इस्केमिक है। यह तब होता है जब मस्तिष्क के ब्लड वेसेल्स के संकुचित हो जाने से खून का संचार कम हो जाता है। कुछ शुरुआती शोधों से पता चला है कि कोविड-19 संक्रमण इस्केमिक स्ट्रोक का संभावित कारण हो सकता है।

विस्तार

एमआरआई और सीटी स्कैन जैसे महंगे टेस्ट के बिना भी अब स्टॉक सूचक का उपयोग जानलेवा ब्रेन स्ट्रोक का तुरंत पता लग सकेगा। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) मंडी और पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट फॉर मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (पीजीएमआईईआर) चंडीगढ़ ने मिलकर शोधकर हैड बैंड की तरह का ऐसा आसान, पोर्टेबल और सस्ता उपकरण तैयार किया है, जिसे माथे पर लगाने से मस्तिष्क का टेस्ट हो सकेगा और रिपोर्ट भी तुरंत मिलेगी। खास यह है कि इस उपकरण को कहीं भी ले जाया जा सकता है। इसका शोधपत्र सेंसर जर्नल इंस्टीट्यूट ऑफइलेक्ट्रिकल एंड इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियर्स (आईईईई) यूएसए में प्रकाशित हुआ है। बता दें कि वर्तमान में एमआरआई और सीटी स्कैन को स्ट्रोक का पता लगाने का सबसे सटीक परीक्षण माना जाता है। ये टेस्ट महंगे होने के कारण भारत की बड़ी आबादी की पहुंच से परे हैं। यही नहीं, एक सर्वे के अनुसार देश में प्रत्येक 10 लाख लोगों पर केवल एक एमआरआई सेंटर है।

इन वैज्ञानिकों ने किया काम
इस शोध पर एसोसिएट प्रोफेसर, स्कूल ऑफ कंप्यूटिंग एंड इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग आईआईटी मंडी डॉ. शुभजीत रॉय चौधरी, शोधार्थी दालचंद अहिरवार, पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट फॉर मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च चंडीगढ़ के डॉ. धीरज खुराना ने काम किया है।

भारत में 40 वर्ष से कम के हो रहे शिकार
इस्केमिक या ब्रेन स्ट्रोक का भारतीय आंकड़ा चिंताजनक है। औसतन 500 भारतीयों में से एक को स्ट्रोक का खतरा रहता है। सर्वे बताते हैं कि स्ट्रोक के कुल मामलों में लगभग 10 से 15 प्रतिशत 40 वर्ष से कम उम्र वालों के हैं।

इस तरह काम करता है डिवाइस
डॉ. चौधरी बताते हैं कि एक छोटा वियरेबल डिवाइस डिजाइन विकसित किया है, जो नियर इन्फ्रा रेड स्पेक्ट्रोस्कोपी (एनआईआरएस) डायोड एलईडी के उपयोग से इस्केमिक स्ट्रोक का पता लगाने के लिए 650 से 950 नैनीमीटर रेंज में प्रकाश उत्सर्जन करता है। यह प्रकाश खून के रंगीन घटकों जैसे हीमोग्लोबिन से प्रतिक्रिया करता है और खून के विशेष लक्षणों ऑक्सीजन सैचुरेशन, ऑक्सीजन उपयोग और खून की मात्रा का सूचक आदि बताता है।


यह है इस्केमिक स्ट्रोक
स्ट्रोक का सबसे आम प्रकार इस्केमिक है। यह तब होता है जब मस्तिष्क के ब्लड वेसेल्स के संकुचित हो जाने से खून का संचार कम हो जाता है। कुछ शुरुआती शोधों से पता चला है कि कोविड-19 संक्रमण इस्केमिक स्ट्रोक का संभावित कारण हो सकता है।

Indore Market News: पुराने चावल का स्टाक खत्म, लंबे दाने में भविष्य तेजी सूचक

Indore Market News: पुराने चावल का स्टाक खत्म, लंबे दाने में भविष्य तेजी सूचक

Indore Market News: इंदौर (नईदुनिया प्रतिनिधि)। चावल का भविष्य तेजी सूचक लग रहा है। दरअसल, उत्पादक केंद्रों पर 1509 किस्म के चावल के दाम में जोरदार तेजी का माहौल है। इस किस्म के धान की कीमतों में एक दिन मेें 300 रुपये तक की तेजी है। दूसरी ओर 15 दिन पहले 62-65 रुपये किलो बिक रहा 1509 किस्म का चावल अब 67 से 69 रुपये पर भी मुश्किल से बिक्री किया जा रहा है। चावल कारोबारी दयालदास अजीत कुमार के अनुसार दरअसल इस किस्म की नई फसल को लेकर सारे पुर्वानुमान ध्वस्त हो चुके हैं। 1509 लंबे और पते दाने वाली किस्म होती है। ढाबों, रेस्टोरेंट के साथ मेस और आयोजनों में इसकी मांग रहती है।

बारिश के कारण इसकी फसल को नुकसान होने से उत्पादन घटा है। साथ ही निर्यात मांग की भी दबाव बना हुआ है। इससे उत्पादक केंद्रों पर तेजी आ चुकी है। पहले से ही बासमती किस्मों का मिलों और स्टाकिस्टों के पास स्टाक न के बराबर बचा है। कई राइस मिलों में तो अब उत्पादन भी ठप पड़ा है। ऐसे में आने वाले दिनों में इस किस्म में अच्छी तेजी की उम्मीद की जा रही है। हालांकि परमल किस्म के चावल का उत्पादन बहुत अच्छा है। ऐसे में आम उपभोक्ता के लिए चावल महंगा नहीं होगा। दरअसल 1509 की मांग लंबे दाने का उपयोग करने वाले व्यवसायिक प्रतिष्ठान आदि करते हैं। नया माल आते ही इस किस्म में भाव ऊंचे खोले जाएंगे।

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दलहन का बाजार उपभोक्ता मांग सिमटने से परेशान है। हर साल पितृपक्ष में चने से बने उत्पाद चना दाल, बेसन आदि में बिक्री अच्छी रहती है। इस वर्ष बिक्री अनुमान से कमजोर है। इससे चने में मिलों की लेवाली भी कमजोर है। लिहाजा चने में तेजी की स्थिति नहीं बन पा रही है। पिछले सप्ताह से घरेलू बेसन मिलर्स की कमजोर मांग के चलते चने में मंदी देखनें मिली है। नाफेड द्वारा भी चने के कम भावो पर टेंडर निकाल रही है और स्टाकिस्ट भी चने में डंक लगने के डर से अपने स्टाक को स्टॉक सूचक का उपयोग कम कर रहे हैं। सटोरिये चनेे की बजाय अब सोयाबीन और कपास के माल को हाथ में पकड़ने में लग गए हैं। इन कारणों से भी चने में मंदी देखने को मिल रही है।

Darbar E Khas: गुजराती मांजे से अपनी ’पतंग‘ बचाने के जतन

जानकारों के मुताबिक आगे चने में बोवनी के लिए मांग निकलेंगी और दीपावली की खपत के लिए केवल एक माह बाकी है। ऐसी स्थिति में चना और चना दाल में आगे मजबूती की धारणा बताई जा रही है। मगर वर्तमान बारिश से आगामी चने का उत्पादन बंपर होने की संभावना है बेहतर बारिश से जमीन में नमी की मात्रा अच्छी रहेंगी और तालाबो में पानी की भारी उपलब्धता को देखते हुए बोवनी में बढ़ोतरी होगी।

खासकर महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश और आंध्रप्रदेश की बोवनी में निश्चित ही वृद्धि होने के संकेत दिखाई दे रहे हैं। सरकार भी दलहन उत्पादन में वृद्धि के आंकड़े दर्शाने के लिए रबी की सबसे बड़ी फसल चना बोवनी को बढाने के लिए किसानो को आकर्षित कर सकती है। इंदौर में चना कांटा नीचे में 5275 ऊपर में 5300 रुपये प्रति क्विंटल रह गया। वहीं मसूर में अपेक्षित ग्राहकी नहीं होने से भाव में मंदी जारी रही। मसूर नीचे में 7350-7400 रुपये प्रति क्विंटल रह गई। उड़द, मूंग और तुअर में कामकाज सामान्य रहा। भाव में कोई खास परिवर्तन नहीं रहा। हालांकि एक दिन पहले की तेजी के असर से मूंग दाल में 50 रुपये की तेजी रही।

Pravasi Bharatiya Sammelan 2023: रहते अमेरिका में हैं, लेकिन दिल इंदौर के लिए धड़कता है

दलहन के दाम : चना 5300, विशाल चना 5100 से 5140, मसूर 7400, तुअर महाराष्ट्र सफेद 6600 से 6700, तुअर कर्नाटक 6800 से 6900, तुअर निमाड़ी 5700 से 6500, मूंग 6900 से 7100, एवरेज 6100 से 6500,उड़द बेस्ट बोल्ड 7100 से 7300, नया उड़द 5000 से 6000, मीडियम 5500 से 6500 रुपये क्विंटल।

दालों के दाम : चना दाल 6050 से 6250, मीडियम 6350 से 6450, बोल्ड 6550 से 6650, मसूर दाल मीडियम 8250 से 8450, बोल्ड 8550 से 8650, तुअर दाल सवा नंबर 8500 से 8600, फूल 8700 से 8800, बेस्ट तुअर दाल 8900 से 9100, नई तुअर तुअर दाल 9200 से 9600, मूंग दाल मीडियम 7750 से 7850, बोल्ड 7950 से 8050, मूंग मोगर 8600 से 8700, बोल्ड 8800 से 8900, उड़द दाल मीडियम 9100 से 9200, बोल्ड 9300 से 9400, उड़द मोगर 9900 से 10100, बोल्ड 10200 से 10400 रुपये।

Pravasi Bhartiya Sammelan: अंतरराष्ट्रीय मेहमानों पर साइबर अटैक का खतरा! विशेष प्रशिक्षण दे रहा इंटेलिजेंस

काबली चना (42-44) 9350, (44-46) 9200, (58-60) 9000, (60-62) 8900 रुपये।

इंदौर चावल भाव: दयालदास अजीतकुमार छावनी के अनुसार बासमती (921) 9000 से 9500, तिबार 7500 से 8000 , दुबार 6500 से 7000, मीनी दुबार 5500 से 6500, बासमती सेला 5000 से 7000, मोगरा 3500 से 5500, दुबराज 3500 से 4000, कालीमूंछ डिनरकिंग 7000, राजभोग 6000, परमल 2500 से 2650, हंसा सेला 2450 से 2650, हंसा सफेद 2200 से 2400, पोहा 3400 से 3900 रुपये क्विंटल बिका।

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