वैश्विक बाजार - व्यापार युद्धविरा विदेशी मुद्रा - अमेरिका-चीन व्यापार युद्धविराम संधि जोखिम को बढ़ाते हुए युआनको लाभ देता है और येन को गिराता है म संधि से स्टॉक्स को राहत मिली, बॉन्ड्स फिसला

भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था

भारत जीडीपी के संदर्भ में वि‍श्‍व की नवीं सबसे बड़ी अर्थव्‍यवस्‍था है । यह अपने भौगोलि‍क आकार के संदर्भ में वि‍श्‍व में सातवां सबसे बड़ा देश है और जनसंख्‍या की दृष्‍टि‍ से दूसरा सबसे बड़ा देश है । हाल के वर्षों में भारत गरीबी और बेरोजगारी से संबंधि‍त मुद्दों के बावजूद वि‍श्‍व में सबसे तेजी से उभरती हुई अर्थव्‍यवस्‍थाओं में से एक के रूप में उभरा है । महत्‍वपूर्ण समावेशी विकास प्राप्‍त करने की दृष्‍टि‍ से भारत सरकार द्वारा कई गरीबी उन्‍मूलन और रोजगार उत्‍पन्‍न करने वाले कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं ।

इति‍हास

ऐति‍हासि‍क रूप से भारत एक बहुत वि‍कसि‍त आर्थिक व्‍यवस्‍था थी जि‍सके वि‍श्‍व के अन्‍य भागों के साथ मजबूत व्‍यापारि‍क संबंध थे । औपनि‍वेशि‍क युग ( 1773-1947 ) के दौरान ब्रि‍टि‍श भारत से सस्‍ती दरों पर कच्‍ची सामग्री खरीदा करते थे और तैयार माल भारतीय बाजारों में सामान्‍य मूल्‍य से कहीं अधि‍क उच्‍चतर कीमत पर बेचा जाता था जि‍सके परि‍णामस्‍वरूप स्रोतों का द्धि‍मार्गी ह्रास होता था । इस अवधि‍ के दौरान वि‍श्‍व की आय में भारत का हि‍स्‍सा 1700 ए डी के 22.3 प्रति‍शत से गि‍रकर 1952 में 3.8 प्रति‍शत रह गया । 1947 में भारत के स्‍वतंत्रता प्राप्‍ति‍ के पश्‍चात अर्थव्‍यवस्‍था की पुननि‍र्माण प्रक्रि‍या प्रारंभ हुई । इस उद्देश्‍य से वि‍भि‍न्‍न नीति‍यॉं और योजनाऍं बनाई गयीं और पंचवर्षीय योजनाओं के माध्‍यम से कार्यान्‍वि‍त की गयी ।

1991 में भारत सरकार ने महत्‍वपूर्ण आर्थिक सुधार प्रस्‍तुत कि‍ए जो इस दृष्‍टि‍ से वृहद प्रयास थे जि‍नमें वि‍देश व्‍यापार उदारीकरण, वि‍त्तीय उदारीकरण, कर सुधार और वि‍देशी नि‍वेश के प्रति‍ आग्रह शामि‍ल था । इन उपायों ने भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था को गति‍ विदेशी मुद्रा व्यापार के साथ क्या पकड़ है देने में मदद की तब से भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था बहुत आगे नि‍कल आई है । सकल स्‍वदेशी उत्‍पाद की औसत वृद्धि दर (फैक्‍टर लागत पर) जो 1951 - 91 के दौरान 4.34 प्रति‍शत थी, 1991-2011 के दौरान 6.24 प्रति‍शत के रूप में बढ़ गयी ।

कृषि‍

कृषि‍ भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था की रीढ़ है जो न केवल इसलि‍ए कि‍ इससे देश की अधि‍कांश जनसंख्‍या को खाद्य की आपूर्ति होती है बल्‍कि‍ इसलि‍ए भी भारत की आधी से भी अधि‍क आबादी प्रत्‍यक्ष रूप से जीवि‍का के लि‍ए कृषि‍ पर नि‍र्भर है ।

वि‍भि‍न्‍न नीति‍गत उपायों के द्वारा कृषि‍ उत्‍पादन और उत्‍पादकता में वृद्धि‍ हुई, जि‍सके फलस्‍वरूप एक बड़ी सीमा तक खाद्य सुरक्षा प्राप्‍त हुई । कृषि‍ में वृद्धि‍ ने अन्‍य क्षेत्रों में भी अधि‍कतम रूप से अनुकूल प्रभाव डाला जि‍सके फलस्‍वरूप सम्‍पूर्ण अर्थव्‍यवस्‍था में और अधि‍कांश जनसंख्‍या तक लाभ पहुँचे । वर्ष 2010 - 11 में 241.6 मि‍लि‍यन टन का एक रि‍कार्ड खाद्य उत्‍पादन हुआ, जि‍समें सर्वकालीन उच्‍चतर रूप में गेहूँ, मोटा अनाज और दालों का उत्‍पादन हुआ । कृषि‍ क्षेत्र भारत के जीडीपी का लगभग 22 प्रति‍शत प्रदान करता है ।

उद्योग

औद्योगि‍क क्षेत्र भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था के लि‍ए महत्‍वपूर्ण है जोकि‍ वि‍भि‍न्‍न सामाजि‍क, आर्थिक उद्देश्‍यों की पूर्ति के लि‍ए आवश्‍यक है जैसे कि‍ ऋण के बोझ को कम करना, वि‍देशी प्रत्‍यक्ष नि‍वेश आवक (एफडीआई) का संवर्द्धन करना, आत्‍मनि‍र्भर वि‍तरण को बढ़ाना, वर्तमान आर्थिक परि‍दृय को वैवि‍ध्‍यपूर्ण और आधुनि‍क बनाना, क्षेत्रीय वि‍कास का संर्वद्धन, गरीबी उन्‍मूलन, लोगों के जीवन स्‍तर को उठाना आदि‍ हैं ।

स्‍वतंत्रता प्राप्‍ति‍ के पश्‍चात भारत सरकार देश में औद्योगि‍कीकरण के तीव्र संवर्द्धन की दृष्‍टि‍ से वि‍भि‍न्‍न नीति‍गत उपाय करती रही है । इस दि‍शा में प्रमुख कदम के रूप में औद्योगि‍क नीति‍ संकल्‍प की उदघोषणा करना है जो 1948 में पारि‍त हुआ और उसके अनुसार 1956 और 1991 में पारि‍त हुआ । 1991 के आर्थिक सुधार आयात प्रति‍बंधों को हटाना, पहले सार्वजनि‍क क्षेत्रों के लि‍ए आरक्षि‍त, नि‍जी क्षेत्रों में भागेदारी, बाजार सुनि‍श्‍चि‍त मुद्रा वि‍नि‍मय दरों की उदारीकृत शर्तें ( एफडीआई की आवक / जावक हेतु आदि‍ के द्वारा महत्‍वपूर्ण नीति‍गत परि‍वर्तन लाए । इन कदमों ने भारतीय उद्योग को अत्‍यधि‍क अपेक्षि‍त तीव्रता प्रदान की ।

आज औद्योगि‍क क्षेत्र 1991-92 के 22.8 प्रति‍शत से बढ़कर कुल जीडीपी का 26 प्रति‍शत अंशदान करता है ।

सेवाऍं

आर्थिक उदारीकरण सेवा उद्योग की एक तीव्र बढ़ोतरी के रूप में उभरा है और भारत वर्तमान समय में कृषि‍ आधरि‍त अर्थव्‍यवस्‍था से ज्ञान आधारि‍त अर्थव्‍यवस्‍था के रूप में परि‍वर्तन को देख रहा है । आज सेवा क्षेत्र जीडीपी के लगभग 55 प्रति‍शत ( 1991-92 के 44 प्रति‍शत से बढ़कर ) का अंशदान करता है जो कुल रोजगार का लगभग एक ति‍हाई है और भारत के कुल नि‍र्यातों का एक ति‍हाई है

भारतीय आईटी / साफ्टेवयर क्षेत्र ने एक उल्‍लेखनीय वैश्‍वि‍क ब्रांड पहचान प्राप्‍त की है जि‍सके लि‍ए नि‍म्‍नतर लागत, कुशल, शि‍क्षि‍त और धारा प्रवाह अंग्रेजी बोलनी वाली जनशक्‍ति‍ के एक बड़े पुल की उपलब्‍धता को श्रेय दि‍या जाना चाहि‍ए । अन्‍य संभावना वाली और वर्द्धित सेवाओं में व्‍यवसाय प्रोसि‍स आउटसोर्सिंग, पर्यटन, यात्रा और परि‍वहन, कई व्‍यावसायि‍क सेवाऍं, आधारभूत ढॉंचे से संबंधि‍त सेवाऍं और वि‍त्तीय सेवाऍं शामि‍ल हैं।

बाहय क्षेत्र

1991 से पहले भारत सरकार ने वि‍देश व्‍यापार और वि‍देशी नि‍वेशों पर प्रति‍बंधों के माध्‍यम से वैश्‍वि‍क प्रति‍योगि‍ता से अपने उद्योगों को संरक्षण देने की एक नीति‍ अपनाई थी ।

उदारीकरण के प्रारंभ होने से भारत का बाहय क्षेत्र नाटकीय रूप से परि‍वर्तित हो गया । वि‍देश व्‍यापार उदार और टैरि‍फ एतर बनाया गया । वि‍देशी प्रत्‍यक्ष नि‍वेश सहि‍त वि‍देशी विदेशी मुद्रा व्यापार के साथ क्या पकड़ है संस्‍थागत नि‍वेश कई क्षेत्रों में हाथों - हाथ लि‍ए जा रहे हैं । वि‍त्‍तीय क्षेत्र जैसे बैंकिंग और बीमा का जोरदार उदय हो रहा है । रूपए मूल्‍य अन्‍य मुद्राओं के साथ-साथ जुड़कर बाजार की शक्‍ति‍यों से बड़े रूप में जुड़ रहे हैं ।

आज भारत में 20 बि‍लि‍यन अमरीकी डालर (2010 - 11) का वि‍देशी प्रत्‍यक्ष नि‍वेश हो रहा है । देश की वि‍देशी मुद्रा आरक्षि‍त (फारेक्‍स) 28 अक्‍टूबर, 2011 को 320 बि‍लि‍यन अ.डालर है । ( 31.5.1991 के 1.2 बि‍लि‍यन अ.डालर की तुलना में )

भारत माल के सर्वोच्‍च 20 नि‍र्यातकों में से एक है और 2010 में सर्वोच्‍च 10 सेवा नि‍र्यातकों में से एक है ।

विदेशी मुद्रा अमेरिका-चीन व्यापार युद्धविराम संधि जोखिम को बढ़ाते हुए युआनको लाभ

विदेशी मुद्रा 01 जुलाई 2019 ,10:36

विदेशी मुद्रा अमेरिका-चीन व्यापार युद्धविराम संधि जोखिम को बढ़ाते हुए युआनको लाभ

वैश्विक बाजार - व्यापार युद्धविरा विदेशी मुद्रा - अमेरिका-चीन व्यापार युद्धविराम संधि जोखिम को बढ़ाते हुए युआनको लाभ देता है और येन को गिराता है म संधि से स्टॉक्स को राहत मिली, बॉन्ड्स फिसला

* येन, स्विस फ्रैंक ने ट्रम्प के बाद गाया, शी ने वार्ता फिर से शुरू करने पर सहमति व्यक्त की

* मई के प्रारंभ से उच्चतम स्तर पर अपतटीय युआन

* ग्राफिक: 2019 में वर्ल्ड एफएक्स की दरें

Reuters - विदेशी मुद्रा व्यापार के साथ क्या पकड़ है संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन द्वारा अपनी परेशान व्यापार वार्ता को फिर से शुरू करने पर सहमति के बाद युआन में सोमवार को डॉलर की वृद्धि हुई और डॉलर के मुकाबले सुरक्षित-येन में गिरावट आई।

डॉलर की कीमत 0.25% बढ़कर 108.190 येन हो गई, जो पिछले मंगलवार को 106.78 के छह महीने के निचले स्तर के करीब से इसकी वसूली थी।

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से शनिवार को 20 समिट के ग्रुप के मौके पर जापान में मुलाकात के बाद, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने कहा कि वह टैरिफ पर वापस पकड़ लेंगे और चीन अधिक विदेशी मुद्रा व्यापार के साथ क्या पकड़ है कृषि उत्पादों को खरीदेगा। यह भी कहा कि अमेरिकी वाणिज्य विभाग अगले कुछ दिनों में अध्ययन करेगा कि क्या सरकार की मंजूरी के बिना अमेरिकी कंपनियों से घटक और प्रौद्योगिकी खरीदने पर प्रतिबंध लगाने वाली कंपनियों की सूची से हुआवेई को हटा दिया जाए या नहीं।

दाईवा सिक्योरिटीज के वरिष्ठ मुद्रा रणनीतिकार, युकियो इशिज़ुकी ने कहा, "जी 20 पर संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के बीच जी विदेशी मुद्रा व्यापार के साथ क्या पकड़ है -20 में अधिकांश चर्चाएँ पहले से ही अनुमानित थीं, लेकिन हुआवेई का उल्लेख थोड़ा आश्चर्यचकित था।"

"उम्मीद से अधिक डॉलर के छोटे पद थे, और ये कवर किए जा रहे हैं। लेकिन एक बार जब ये शॉर्ट्स कवर हो जाते हैं, तो डॉलर की अग्रिम गैर-कृषि नौकरियों की रिपोर्ट के आगे धीमा होने की संभावना है।"

रायटर द्वारा मतदान किए गए अर्थशास्त्रियों को उम्मीद है कि अमेरिकी गैर-कृषि पेरोल, जो शुक्रवार को जारी किया जाएगा, मई में 75,000 से जून में बढ़कर 160,000 हो गया है।

इस सप्ताह होने वाले अन्य प्रमुख अमेरिकी आंकड़ों में बुधवार को इंस्टीट्यूट ऑफ सप्लाई मैनेजमेंट (ISM) का गैर-विनिर्माण गतिविधि सूचकांक जून के लिए शामिल है।

FPG सिक्योरिटीज के निदेशक, कोजी फुकया ने कहा, "फोकस अब G20 ओवर के साथ अमेरिकी फंडामेंटल पर शिफ्ट विदेशी मुद्रा व्यापार के साथ क्या पकड़ है हो गया है।"

"कुछ फेड अधिकारियों ने हाल ही में सुगम विचारों पर अंकुश लगाया और डेटा बाजार को एक स्पष्ट तस्वीर प्राप्त करने में मदद करेगा कि क्या फेड इस महीने दरों में कटौती करने के लिए तैयार है।"

18-19 जून की नीतिगत बैठक में फेडरल रिजर्व ने इस साल के अंत में संभावित ब्याज दरों में कटौती का दरवाजा खोला। लेकिन चेयर जेरोम पॉवेल सहित केंद्रीय बैंक के अधिकारियों की पिछले हफ्ते की टिप्पणियों ने आक्रामक दरों में कटौती की उम्मीदों को ठंडा कर दिया था।

स्विस फ्रैंक, एक और सुरक्षित-हेवेन मुद्रा, 0.4% गिरकर 0.9801 फ्रैंक डॉलर हो गई

अपतटीय चीनी युआन 6.8166 पर ब्रश करने के बाद 6.8470 प्रति डॉलर पर 0.3% ऊपर था, 9 मई के बाद का इसका उच्चतम स्तर।

येन के खिलाफ ग्रीनबैक की वृद्धि का समर्थन करते हुए, छह प्रमुख मुद्राओं की एक टोकरी के खिलाफ डॉलर सूचकांक 0.25% 96.352 पर जोड़ा गया।

मोटे तौर पर मजबूत डॉलर के मुकाबले यूरो 0.15% गिरकर 1.1351 डॉलर और ऑस्ट्रेलियाई डॉलर 0.35% घटकर $ 0.7001 पर आ गया।

तुर्की के राष्ट्रपति तैयप एर्दोगन ने सप्ताहांत में कहा कि संयुक्त राज्य अमेरिका ने रूसी रक्षा प्रणालियों को खरीदने के लिए अंकारा पर प्रतिबंध लगाने की योजना नहीं बनाने के बाद तुर्की लीरा 0.7% ऊपर 5.7431 प्रति डॉलर थी। अमेरिकी ट्रेजरी 10-वर्ष की उपज 2.031% पर लगभग 3.5 आधार अंक थी, जो 20 जून को घटकर 1.974% की 2-1 / 2-वर्ष की कम दूरी के बीच थी।

विदेशी मुद्रा भंडार बढ़कर 621 अरब डॉलर के रेकॉर्ड स्तर पर

आंकड़ों के मुताबिक इस दौरान स्वर्ण भंडार 58.8 करोड़ डॉलर घटकर 37.057 अरब डॉलर रह गया। वहीं, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ) के पास मौजूद विशेष आहरण अधिकार (एसडीआर) 10 लाख डॉलर घटकर 1.551 अरब डॉलर रह गया।

विदेशी मुद्रा भंडार बढ़कर 621 अरब डॉलर के रेकॉर्ड स्तर पर

भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में रिकार्ड बढ़ोतरी हुई।

देश का विदेशी मुद्रा भंडार 6 अगस्त, 2021 को समाप्त सप्ताह में 88.9 करोड़ डॉलर बढ़कर 621.464 अरब डॉलर विदेशी मुद्रा व्यापार के साथ क्या पकड़ है के सर्वकालिक रेकॉर्ड स्तर को छू गया। भारतीय रिजर्व बैंक ने शुक्रवार को अपने ताजा आंकड़ों में यह जानकारी दी।

विदेशी मुद्रा भंडार 30 जुलाई, 2021 को समाप्त सप्ताह में 9.427 अरब डॉलर बढ़कर 620.576 अरब डॉलर हो गया था। रिजर्व बैंक के साप्ताहिक आंकड़ों के मुताबिक समीक्षाधीन सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि की वजह विदेशी मुद्रा संपत्ति(एफसीए) का बढ़ना था जो समग्र भंडार का प्रमुख घटक है। इस दौरान एफसीए 1.508 अरब डॉलर बढ़कर 577.732 अरब डॉलर हो गया। डॉलर के लिहाज से बताई जाने वाली विदेशी मुद्रा संपत्ति में विदेशी मुद्रा भंडार में रखी यूरो, पाउंड और येन जैसी दूसरी विदेशी मुद्राओं के मूल्य में वृद्धि या कमी का प्रभाव भी शामिल होता है।

आंकड़ों के मुताबिक इस दौरान स्वर्ण भंडार 58.8 करोड़ डॉलर घटकर 37.057 अरब डॉलर रह गया। वहीं, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ) के पास मौजूद विशेष आहरण अधिकार (एसडीआर) 10 लाख डॉलर घटकर 1.551 अरब डॉलर रह गया। रिजर्व बैंक विदेशी मुद्रा व्यापार के साथ क्या पकड़ है ने बताया कि आलोच्य सप्ताह के दौरान आइएमएफ के पास मौजूद भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 3.1 करोड़ डॉलर घटकर 5.125 अरब डॉलर रह गया।

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उधर, अमेरिका, यूरोप, ब्रिटेन, सऊदी अरब, कनाडा, जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे प्रमुख बाजारों को परिधान निर्यात तेजी से बढ़ रहा है। परिधान निर्यात संवर्द्धन परिषद (एईपीसी) ने शनिवार को कहा कि चालू वित्त वर्ष के लिए 400 अरब डॉलर के निर्यात लक्ष्य में परिधान क्षेत्र की प्रमुख भूमिका होगी।
एईपीसी के चेयरमैन ए शक्तिवेल ने परिषद की 42वीं सालाना आम बैठक में सदस्यों को संबोधित करते हुए कहा कि प्रत्येक पश्चिमी बाजार में परिधान निर्यात रफ्तार पकड़ रहा है। उन्होंने बताया कि जनवरी-मई, 2021 के दौरान अमेरिका को निर्यात पिछले साल की समान अवधि की तुलना में 22 फीसद बढ़ा है। शक्तिवेल ने कहा कि उन्होंने सरकार से यूरोपीय संघ, ब्रिटेन, अमेरिका, आॅस्ट्रेलिया और कनाडा के साथ मुक्त व्यापार करार को पूरा करने को कहा है।

उन्होंने कहा कि भारत को प्रमुख विदेशी गंतव्यों में अपने प्रतिद्वंद्वियों की तुलना में शुल्क के मोर्चे पर कुछ नुकसान उठाना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि बांग्लादेश, कंबोडिया, तुर्की, पाकिस्तान और श्रीलंका जैसे देशों की तुलना में भारत से यूरोपीय संघ को निर्यात में शुल्क के मोर्चे पर 9.6 फीसद का नुकसान हो रहा है।

अपराध के लिए सजा

एनडीपीएस अधिनियम को बहुत गंभीरता से दवा अपराधों के विचार और दंड कड़ा कर रहे हैं। सजा और जुर्माने की क्वांटम अपराध के साथ बदलता रहता है। वाणिज्यिक मात्रा या दवाओं के वाणिज्यिक मात्रा से छोटे से अधिक है, लेकिन कम छोटी मात्रा, - कई अपराधों के लिए दंड शामिल दवा की मात्रा पर निर्भर करता है। लघु और वाणिज्यिक मात्रा प्रत्येक दवा के लिए अधिसूचित कर रहे हैं।

एनडीपीएस अधिनियम, उकसाने, आपराधिक साजिश के तहत और भी एक अपराध अपराध के रूप में ही एक ही सजा को आकर्षित प्रतिबद्ध करने के लिए प्रयास करता है। एक अपराध के लिए तैयारी आधा जुर्माना आकर्षित करती है। दोहराएँ अपराधों डेढ़ गुना जुर्माना और कुछ मामलों मौत की सजा में आकर्षित करती हैं। इस अधिनियम के तहत दंड कई, बहुत कठोर हैं, इसलिएप्रक्रियात्मक सुरक्षाअधिनियम में प्रदान किया गया है कुछ उन्मुक्ति भी अधिनियम के तहत उपलब्ध हैं।

शासन : चुनौतियाँ और मुद्दे/विकास: विमर्श, मतभिन्नता और क्रियान्वयन

स्वतंत्र भारत की विकास रणनीति क्या होगी इस पर विमर्श 1930 के दशक में सुभाष चंद्र बोस की अध्यक्षता में गठित नियोजन समिति के साथ ही शुरू हो गया था। इसकी स्थापना जवाहरलाल नेहरू की भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्षता के दौरान हुई। 1940 के दशक में बंबई के उद्योगपतियों ने बांबे प्लान प्रस्तुत किया, इसके अतिरिक्त श्रीमन नारायण ने गांधीवादी प्लान और एम. एन. राय ने पीपुल्स प्लान पेश किया, जिनमें आर्थिक विकास की अलग-अलग रणनीतियों की वकालत की गई थी।

मोटे तौर पर नवोदित भारत की जरूरतों जिसमें तीव्र आर्थिक विकास के साथ-साथ विकास उपलब्धियों का जनता में पुनर्वितरण महत्त्वपूर्ण चूनौती थी। इसके अतिरिक्त, अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था में अपना पक्ष भी स्थापित करना था। इसके लिए नीति निर्माताओं के समक्ष तीन महत्त्वपूर्ण विकास मॉडल थे-पहला, खुले व्यापार की उदारवादी नीति; दूसरा, समाजवादी नीति और तीसरी किंसियन वेल्फेयर स्टेट, जिसे सामाजिक लोकतांत्रिक व्यवस्था के नाम से भी जाना जाता है। खुले व्यापार की नीति के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था अपने कमजोर पूंजीवादी आधार के कारण तैयार नहीं थी। साथ हीं अपने तीव्र आर्थिक विकास के दावों के बावजूद इसकी खराब पुनर्वितरण क्षमता के कारण भी यह नहीं अपनाई जा सकती थी। समाजवादी मॉडल तीव्र आर्थिक विकास के साथ तीव्र पुनर्वितरण में सफल था जिसका उदाहरण सोवियत रूस द्वारा कम समय में इन उद्देश्यों की प्राप्ति के रूप में सामने था और जिसके प्रशंसक नेहरू भी थे; लेकिन सोवियत व्यवस्था के नागरिक अधिकारों की सुरक्षा में खराब रिकॉर्ड ने इसके प्रति मोह भंग कर दिया था। सामाजिक लोकतांत्रिक व्यवस्था के धीमे विकास और कम प्रभावी पुनर्वितरण क्षमता के बावजूद लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति आस्था ने नीति निर्माताओं और खासकर नेहरू को काफी आकर्षित किया। साथ ही भारतीय नेतृत्व इस बात को समझता था कि आर्थिक निर्भरता राजनीतिक निर्भरता को निमंत्रण देती है। अतः अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था में अपनी पहचान सुनिश्चत करने और राजनीतिक संप्रभुता को बनाए रखने के लिए भी उदारवादी या समाजवादी माडल से एक दूरी निर्धारित करनी आवश्यक थी, जिसकी प्राप्ति इससे संभव था।

अत: भारत को अपनी आर्थिक आत्मनिर्भरता की प्राप्ति एक वृहत कृषकीय । आधार और अर्ध-सामंती सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था के ऊपर करनी थी; जिसके । फलस्वरूप प्रथम पंचवर्षीय योजना में कृषि क्षेत्र में सुधारों पर विशेष ध्यान दिया। गया और जमींदारी उन्मूलन तथा भूमि सुधार कानूनों द्वारा गरीब और भूमिहान जनता को भूमि की उपलब्धता सुनिश्चित कर उनकी बेरोजगारी और गरीबी की समस्या के निवारण का प्रयास किया गया. लेकिन घरेल बर्जुआ और सामंती वर्ग ने नौकरशाही वर्ग के साथ मिलकर इन सुधारों की असफलता को सुनिश्चित किया जिनकी मजबूत पकड़ राजनीतिक तंत्र पर थी।' उल्लेखनीय है कि इन सुधारों की सफलता भारत की खाद्यान्न आत्मनिर्भरता को सुनिश्चित कर सकती थी जो अवसर चूक गया, जिसका असर 1960 के दशक में देश में खाद्यान्न की भारी कमी के रूप में सामने आया।

तीव्र आर्थिक विकास और आत्मनिर्भरता का दूसरा आधार औद्योगीकरण था जो पूंजीगत वस्तुओं का घरेलू उत्पादन, आयात पर प्रतिबंध और विदेशी मुद्रा के संचय के रूप में हो सकता था, जिसके लिए आयात-प्रतिस्थापन वृहत औद्योगीकरण मॉडल के पक्ष की जीत हुई जिसे हम "महालनोबिस मॉडल" के रूप में भी जानते हैं। तर्क यह था कि वृहत औद्योगिक मशीनों का उत्पादन घरेलू तौर पर करके इनके आयात के लिए आवश्यक विदेशी मुद्रा की बचत हो सकती है। साथ ही, आर्थिक आत्मनिर्भरता को भी बढ़ावा मिलेगा क्योंकि औद्योगीकरण ही आर्थिक विकास का आधार है। दूसरी तरफ निजी पूंजीपति वर्ग के कमजोर आधार के कारण ज्यादातर उद्योगों की स्थापना और संचालन की जिम्मेदारी राज्य के ऊपर आ गई, जिसका क्रियान्वयन दूसरी पंचवर्षीय योजना से हुआ। इसके बावजूद कि इस मॉडल ने राजनीतिक संप्रभुता और लोकतांत्रिक मूल्यों के संरक्षण में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। ज्यादातर अर्थशास्त्री इस बात पर सहमत हैं कि यह मॉडल भारत के वाॉछित उद्देश्यों के पक्ष में नहीं था क्योंकि ऐसे औद्योगिक प्रतिष्ठानों का एक लंबा गर्भकाल होता है, जिसका असर लंबे समय बाद दिखता है और यह बड़े पैमाने पर रोजगारपरक भी नहीं होता. जिसका सीधा असर एक बड़ी गरीब जनसंख्या पर पड़ना था क्योंकि कृषि अब भी अविकसित थी।

प्रोफेसर फ्रैंकल ने भारतीय अर्थव्यवस्था में तीन महत्त्वपूर्ण पड़ावों की ओर ध्यान आकर्षित किया है: पहला, 1950 के अंतिम और 60 के आरंभिक दशक में खराब फसल और भुगतान संतुलन के संकट के परिणामस्वरूप मुद्रा का अवमूल्यन, व्यापार नीतियों में परिवर्तन और कृषि के विकास के लिए "हरित क्रांति" की नीति का अपनाया जाना; दूसरा, 1970 और 80 के दशक के मध्य व्यापार और औद्योगिक लाइसेंस की व्यवस्था को धीरे धीरे ढीला करना; और विदेशी मुद्रा व्यापार के साथ क्या पकड़ है तीसरा, 1991 में सबसे बड़ा परिवर्तन जब नियंत्रण वाली व्यवस्था का त्याग कर अधिक खुली और बाजारोन्मुखी नीतियों का आरंभ हुआ

1950 के अंतिम और 60 के आरंभिक दशकों में खराब फसल और भुगतान संतुलन के संकट ने नियोजित औद्योगीकरण की रणनीति को संशोधित किए जाने की बाध्यता उत्पन्न की; क्योंकि सार्वजनिक क्षेत्र में निवेश के संसाधनों के अभाव के कारण यह रणनीति अनुत्पादक हो गई थी। परंतु इसका त्याग नहीं किया गया जिसके पीछे अंतर्राष्ट्रीय और आंतरिक कारक जिम्मेदार थे। अंतराष्ट्रीय स्तर पर विश्व बैंक और अमेरिकी आर्थिक सहायता के वायदे के कारण ऐसा न हो सका। चीनी विदेशी मुद्रा व्यापार के साथ क्या पकड़ है आक्रमण के समय अमेरिका द्वारा उपकरणों की आपूर्ति के वायदे और गैर-परियोजना सहायता के वायदे को पूरा न करना भी इसका कारण रहा। हालांकि "हरित क्रांति" इस वृहद सुधार के एक अंश के रूप में जरूर स्थायित्व प्राप्त कर सकी। आतरिक तौर पर कांग्रेस के अंदर इंदिरा गांधी का "सिंडीकेट" से संघर्ष ने नीतियों को वाम दिशा में मोड़ा। स्पष्टत: इंदिरा गांधी ने नेहरूवादी नीतियों की समुचित समीक्षा का अवसर गवां दिया और उसके स्थान पर आर्थिक नीतियों को और ज्यादा समाजवादी रुझान प्रदान किया बैंकों और बीमा का राष्ट्रीयकरण, प्रीविपर्स की समाप्ति जैसी नीतियां सामने आई हरित क्रांति की सफलता का एक महत्त्वपूर्ण प्रभाव यह हुआ कि विकास नीति की बहस से भूमि सुधार का प्रश्न लगभग समाप्त हो गया। समस्त बहस समुचित व्यापार नीति और उसमें भी आयात नियंत्रक नीतियों की प्रभावकारिता के इर्द-गिर्द केंद्रित हो गई। इन्हीं नीतियों ने परिवर्तन का आधार भी तैयार कर दिया क्योंकि अधिकांश समितियों ने इन नीतियों में व्याप्त अक्षमता और भ्रष्टाचार को रेखांकित कर इन्हें बदलने की सिफारिश की। परंतु डेढ़ दशक बाद एक और भुगतान संतुलन संकट और अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष की ऋण शर्तों के बाद ही यह बदलाव संभव हुआ। जिसे हम नव-उदारवादी आर्थिक व्यवस्था भी कहत हैो

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