आज़ादी से अब तक सिर्फ 1 बार ऐसा हुआ कि रुपया लगातार दो या ज्यादा साल मज़बूत हुआ
10 साल में भारतीय करेंसी के मुकाबले डॉलर 20.22 रुपए तक महंगा हो गया है। अक्टूबर 2008 में रुपया 48.88 प्रति डॉलर के स्तर पर था, जो अब 69.10 के स्तर पर है। जल्द ही इसके 70 के स्तर पर जानें कि विदेशी मुद्रा बाजार कैसे काम करता है पहुंचने की भी आशंका है। हालांकि रुपए के कमजोर होने का यह ट्रेंड अप्रैल 2016 से जारी है। वैसे आजादी के बाद से अब रुपए के मजबूत और कमजोर होने पर नजर डालें, तो कुछ और भी चौंकाने वाली जानकारियां सामने आती हैं। यह भी साफ हो जाता है कि इन 70 वर्षों में एक बार ही ऐसा मौका आया है, जब रुपया लगातार दो या ज्यादा बार मजबूत हुआ हो। ऐसा 2008 से 2011 के बीच हुआ। अक्टूबर 2008 में रुपया 48.88 प्रति डॉलर था, जो 2009 में 46.37 के स्तर पर पहुंचा। जनवरी 2010 में रुपए ने 46.21 के स्तर को छुआ। इसके बाद अप्रैल 2011 में रुपया एक बार फिर मजबूत होकर 44.17 के स्तर पर पहुंच गया।
वर्ष 2005 के बाद रुपए की चाल
सबसे बड़ी मजबूती
5.77 रुपए की
जनवरी 2006 से 2007 के बीच
हालांकि 1990 से 1995 के बीच डॉलर के मुकाबले रुपया सबसे ज्यादा 15.41 अंक मजबूत हुआ। इस दौरान 17.01 के स्तर से 32.42 के स्तर पर पहुंच गया था।
बड़ी गिरावट अगले ही साल
9.46 रुपए की
जनवरी 2007 से जनवरी 2008 के बीच
डॉलर के मुकाबले रुपए में रिकॉर्ड गिरावट के दो अहम कारण बताए जा रहे हैं। पहला-2008 की आर्थिक मंदी के बाद अमेरिकी अर्थव्यवस्था की मजबूती, दूसरा- कच्चे तेल के ऊंचे दाम। इन्हीं वजहों से जानकार रुपए के और भी कमजोर होकर 70 के स्तर तक पहुंचने की बात कह रहे हैं। जानिए ये फैक्टर आखिर कैसे रुपए को प्रभावित करते हैं?
इन सवाल-जवाब में रुपए के कमजोर होने से जुड़ा वो सबकुछ जो आप जानना चाहते हैं
रुपए के गिरने व कमजोर होने का क्या मतलब?
डॉलर की तुलना में किसी भी अन्य जानें कि विदेशी मुद्रा बाजार कैसे काम करता है मुद्रा का मूल्य घटे तो इसे उस मुद्रा का गिरना, टूटना, कमजोर होना कहते हैं। अंग्रेजी में करेंसी डेप्रीशिएशन। ऐसा ही कुछ तीन दिन पहले 28 जून को रुपए के साथ जानें कि विदेशी मुद्रा बाजार कैसे काम करता है हुआ है। डॉलर के मुकाबले भारतीय मुद्रा अब तक के सबसे निचले स्तर पर जा पहुंची। एक डॉलर का मूल्य 69.10 रुपए हो गया। पहली बार डॉलर का भाव 69 रुपए से अधिक हुआ। वैसे, रुपए ने इससे पहले अपना सबसे निचला स्तर नवंबर 2016 में देखा था। तब डॉलर के मुकाबले रुपए का मूल्य 68.80 हो गया था।
आखिर कौन तय करता है रुपए का मूल्य?
हर देश के पास विदेशी मुद्रा का भंडार होता है, जिससे वह अंतरराष्ट्रीय लेन-देन करता है। विदेशी मुद्रा भंडार के घटने और बढ़ने से ही उस देश की मुद्रा की चाल तय होती है। अगर भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में डॉलर, अमेरिका के रुपयों के भंडार के बराबर है तो रुपए की कीमत स्थिर रहेगी। हमारे पास डॉलर घटे तो रुपया कमजोर होगा, बढ़े तो रुपया मजबूत होगा। इसे फ्लोटिंग रेट सिस्टम कहते हैं, जिसे भारत ने 1975 से अपनाया है।
इसे ऐसे समझें.
अमेरिका के पास 69,000 रुपए हैं और हमारे पास 1,000 डॉलर। डॉलर का भाव 69 रुपए है, तो दोनों के पास बराबर धनराशि है। अब अगर हमें अमेरिका से कोई ऐसी चीज मंगानी है, जिसका भाव हमारी करेंसी के हिसाब से 6,900 रुपए है तो हमें इसके लिए 100 डॉलर चुकाने होंगे। अब हमारे विदेशी मुद्रा भंडार में बचे 900 डॉलर। जबकि, अमेरिका के विदेशी मुद्रा भंडार में भारत के जो 69000 रुपए थे, वो तो हैं ही, भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में जो 100 डॉलर थे वो भी उसके पास चले गए। संतुलन बनाने के लिए जरूरी है कि भारत भी अमेरिका को 100 डॉलर का सामान बेचे। मगर जितना माल हम डॉलर चुकाकर आयात करते हैं, उतना निर्यात नहीं करते। इसलिए डॉलर का मूल्य रुपए की तुलना में लगातार बढ़ता जा रहा है।
पूरी दुनिया में एक जैसा करेंसी एक्सचेंज सिस्टम
फॉरेक्स (फॉरेन एक्सचेंज)मार्केट में रुपए के बदले विभिन्न देशों की मुद्राओं की लेन-देन की दर तय होती है। डॉलर के मुकाबले यदि रुपए में घट-बढ़ होती है तो इसका सीधा असर फॉरेक्स मार्केट पर दिखता है, क्योंकि इसी के आधार पर देश के लोग विदेशी बाजारों से लेन-देन करते हैं। साथ ही सबसे पहले निर्यातक और आयातक प्रभावित होते हैं। हर देश के अपने फॉरेक्स मार्केट होते हैं, लेकिन सभी एक ही तरह से काम करते हैं। इसके अलावा तीन और बाजार होते हैं-
कैपिटल मार्केट: इसमें इक्विटी की खरीदी बिक्री होती है।
फाइनेंशियल मार्केट: बॉन्ड, डेब्ट फंड्स का लेन-देन।
कॉल मनी मार्केट: बैंक जरूरत पड़ने पर आपस में रुपए का लेन-देन करते हैं। ब्याज दर आरबीआई तय करता है।
1948 में बराबर थे डॉलर और रुपया
रुपया आजादी से पहले डॉलर के मुकाबले मजबूत था। असल में तब सभी अंतरराष्ट्रीय मुद्राओं का मूल्य सोने-चांदी से तय होता था। इसके बाद ब्रिटिश पाउंड और विश्व युद्धों के बाद से अमेरिकी डॉलर उस भूमिका में है। वैसे आजादी के बाद यानी 1948 में एक डॉलर-1.3 रुपए के बराबर ही था। 1975 में डॉलर का मूल्य 8.39 रु., 2000 में 43.5 रु. हो गया। 2011 में इसने पहली बार 50 का आंकड़ा पार किया।
करेंसी डॉलर-बेस्ड ही क्यों और कब से?
फॉरेन एक्सचेंज मार्केट में अधिकांश मुद्राओं की तुलना डॉलर से होती है। इसके पीछे द्वितीय विश्व युद्ध जानें कि विदेशी मुद्रा बाजार कैसे काम करता है के दौरान हुआ ‘ब्रेटन वुड्स एग्रीमेंट’ है। इसमें एक न्यूट्रल ग्लोबल करेंसी बनाने का प्रस्ताव रखा गया था। हालांकि तब अमेरिका अकेला ऐसा देश था, जो अार्थिक तौर पर मजबूत होकर उभरा था। ऐसे में अमेरिकी डॉलर को दुनिया की रिजर्व करेंसी के तौर पर चुन लिया गया। युद्ध के बाद बड़े देशों की करेंसी का एक्सचेंज रेट तय किया गया। हालांकि उस वक्त सोने में लेन-देन होता था। 1971 में अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने अचानक डॉलर के बदले गोल्ड एक्सचेंज पर रोक लगा दी। आज दुनियाभर में केंंद्रीय बैंकों की विदेशी मुद्रा का 64% डॉलर ही है।
गिर क्यों रही है भारतीय मुद्रा?
रुपए की कमजोरी की वजहें समय के हिसाब से बदलती रही हैं। कभी राजनीतिक हालात से तो कभी वैश्विक या अमेरिका के आर्थिक हालात से। वर्तमान में दोनों हालात जिम्मेदार हैं।
अमेरिकी अर्थव्यवस्था 2008 की वैश्विक आर्थिक मंदी के एक दशक बाद अब पटरी पर है। इस साल उसकी विकास दर करीब तीन फीसदी रहने का अनुमान है। इसके अलावा इस साल फेडरल रिजर्व बैंक ने ब्याज दर को दूसरी बार बढ़ाते हुए दो फीसदी कर दिया है। इन दो वजहों से निवेशक भारत और दुनिया के दूसरे देशों से अपना निवेश निकालकर अमेरिका ले जाने लगे हैं और वहां बॉन्ड में निवेश कर रहे हैं। इससे अंतरराष्ट्रीय मुद्रा बाजार में डॉलर की मांग कम नहीं हो रही।
कच्चा तेल तीन हफ्तों में 6 डॉलर सस्ता होकर 73 डॉलर प्रति बैरल तक आया है। मगर जरूरत का 80 फीसदी तेल आयात करने वाले भारत के लिए यह भाव भी काफी ज्यादा है। हमें तेल के बदले ज्यादा डॉलर चुकाने पड़ रहे हैं। असल में कच्चे तेल की कीमतों में उछाल की वजह राजनीतिक भी है। अमेरिका ने ईरान से परमाणु समझौता तोड़कर उस पर फिर प्रतिबंध लगा दिया है। वेनेजुएला में आर्थिक संकट गहरा चुका है। इससे कच्चे तेल का वैश्विक उत्पादन और निर्यात प्रभावित हुआ है।
कहां नुकसान या फायदा?
नुकसान: कच्चे तेल का आयात महंगा होगा, जिससे महंगाई बढ़ेगी। देश में सब्जियां और खाद्य पदार्थ महंगे होंगे। वहीं भारतीयों को डॉलर में पेमेंट करना भारी पड़ेगा। यानी विदेश घूमना महंगा होगा, विदेशों में पढ़ाई महंगी होगी।
फायदा: निर्यात करने वालों को फायदा होगा, क्योंकि पेमेंट डॉलर में मिलेगा, जिसे वह रुपए में बदलकर ज्यादा कमाई कर सकेंगे। इससे विदेश में माल बेचने वाली आईटी और फार्मा कंपनी को फायदा होगा।
कैसे संभलती है स्थिति?
मुद्रा की कमजोर होती स्थिति को संभालने में किसी भी देश के केंद्रीय बैंक का अहम रोल होता है। भारत में यह भूमिका रिजर्व बैंक अॉफ इंडिया की है। वह अपने विदेशी मुद्रा भंडार से और विदेश से डॉलर खरीदकर बाजार में उसकी मांग पूरी करने का प्रयास करता है। इससे डॉलर की कीमतें रुपए के मुकाबले स्थिर करने में कुछ हद तक मदद मिलती है।
विदेशी मुद्रा का फ्लो बढ़ाने के उपायों को RBI ने किया नोटिफाइड, रुपये के मूल्य में गिरावट को थामने की है कवायद
Foreign Exchange Inflows: बैंक 8 जुलाई से 31 अक्टूबर, 2022 के बीच विदेशों से अंतरराष्ट्रीय मुद्रा में लिए गए कर्ज के जरिये जुटाये गए धन का इस्तेमाल भारत में ग्राहकों को विदेशी मुद्रा उधार देने में कर सकते हैं.
केंद्रीय बैंक ने विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों के बॉन्ड बाजार में निवेश से संबंधित दो नोटिफिकेशन भी जारी की हैं.
Foreign Exchange Inflows: भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने बॉन्ड बाजार में विदेशी निवेश और बैंकों के विदेशी मुद्रा में कर्ज के लिए प्रावधानों में ढील देने को लेकर गुरुवार को नोटिफिकेशन जारी कर दी. यह रुपये के मूल्य में गिरावट को थामने के लिए किए गए उपायों का हिस्सा हैं. पीटीआई की खबर के मुताबिक, अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये की विनिमय दर में गिरावट के बीच बुधवार को इन उपायों की घोषणा की गई. ऑथोराइज्ड डीलर कैटेगरी-1 बैंक के इंटरनेशनल मार्केट्स से जानें कि विदेशी मुद्रा बाजार कैसे काम करता है विदेशी मुद्रा उधारी पर जारी नोटिफिकेशन के मुताबिक, बैंक 8 जुलाई से 31 अक्टूबर, 2022 के बीच विदेशों से अंतरराष्ट्रीय मुद्रा में लिए गए कर्ज के जरिये जुटाये गए धन का जानें कि विदेशी मुद्रा बाजार कैसे काम करता है इस्तेमाल भारत में ग्राहकों को विदेशी मुद्रा उधार देने में कर सकते हैं.
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विदेशी मुद्रा में कर्ज लेने की सुविधा मिलने की उम्मीद
खबर के मुताबिक, फिलहाल बैंक अंतरराष्ट्रीय बाजार से विदेशी मुद्रा में उधार (ओएफसीबी) अपनी टियर-1 यानी शेयर पूंजी का 100 प्रतिशत या एक करोड़ डॉलर, जो भी ज्यादा हो, तक ले सकते हैं. इस प्रकार उधार ली गई धनराशि का इस्तेमाल एक्सपोर्ट को छोड़कर विदेशी मुद्रा में उधार देने के लिए नहीं किया जा सकता है. रिजर्व बैंक ने कहा कि इस उपाय से कर्ज लेने वाले उस बड़े तबके को विदेशी मुद्रा में कर्ज (Loan in Forex) लेने की सुविधा मिलने की उम्मीद है, जिनके लिए सीधे विदेशी बाजारों तक पहुंचना मुश्किल हो सकता है.
बॉन्ड बाजार में निवेश से संबंधित दो नोटिफिकेशन भी जारी
केंद्रीय बैंक ने विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों के बॉन्ड बाजार में निवेश से संबंधित दो नोटिफिकेशन भी जारी की हैं. इसके तहत एफपीआई के 8 जुलाई से 31 अक्टूबर, 2022 के बीच सरकारी प्रतिभूतियों और कॉरपोरेट बॉन्ड में किए गए निवेश की मेच्योरिटी या ऐसे निवेशों की बिक्री तक अल्पकालिक निवेश की सीमा से छूट दी जाएगी.
एफपीआई के कॉरपोरेट बॉन्ड में निवेश के लिए भी छूट
फिलहाल एफपीआई का सरकारी प्रतिभूतियों (ट्रेजरी बिल और राज्य विकास ऋण सहित केंद्र सरकार की प्रतिभूतियों) और कॉरपोरेट बॉन्ड में अल्पकालिक निवेश किसी भी कैटेगरी में उस एफपीआई के कुल निवेश के 30 प्रतिशत से ज्यादा नहीं होना चाहिए. एफपीआई के कॉरपोरेट बॉन्ड में निवेश के लिए भी छूट प्रदान की गई है और वे अब एक साल से कम अवधि के लिए भी ऐसे प्रोडक्ट्स खरीद सकते हैं.
विदेशी मुद्रा व्यापार, क्रिप्टोकरेंसी का ऐतिहासिक विकल्प?
यदि आप अभी बाहर शुरू कर रहे हैं विदेशी मुद्रा व्यापारयह महत्वपूर्ण है कि आप इस मुद्रा बाजार के आधार को समझें और यह कैसे काम करता है। विदेशी मुद्रा विदेशी और विनिमय शब्दों का एक संकुचन है। यह एक विदेशी मुद्रा बाजार है जहां निवेशक मुद्रा जोड़े खरीद और बेच सकते हैं। दूसरे शब्दों में, यह एक मुद्रा जानें कि विदेशी मुद्रा बाजार कैसे काम करता है बाजार है.
विदेशी मुद्रा व्यापार में प्रवेश करने वाले निवेशकों को विदेशी मुद्रा व्यापारी कहा जाता है। वे निजी व्यापारी (छोटे निवेशक) या पेशेवर (संस्थागत निवेशक, बैंक, कंपनियां, आदि) हो सकते हैं। यहाँ का एक उदाहरण है फ्रेंच भाषी व्यापारीमुद्रा जोड़े का व्यापार करने में सक्षम होने के लिए, खुदरा व्यापारियों को ऑनलाइन दलालों के माध्यम से जाना जाता है जिसे "कहा जाता है" विदेशी मुद्रा दलाल ”। मुद्राओं में विशेषज्ञता वाले ये दलाल उनके लिए बाजार से बातचीत करेंगे।
विदेशी मुद्रा कहां से आती है?
मुद्रा विनिमय एक अवधारणा है जो लंबे समय से चारों ओर है। इसके अलावा, कई ट्रेडिंग सिस्टम जैसे ब्रेटन वुड्स सिस्टम और गोल्ड स्टैंडर्ड फॉरेक्स से पहले मौजूद थे। उत्तरार्द्ध 1971 के आसपास बनाया गया था, उस समय की आर्थिक परिस्थितियों के बाद जिसने ब्रेटन वुड्स समझौते को समाप्त कर दिया। वहाँ से, कई देशों की मुद्राओं की विनिमय दर विदेशी मुद्रा पर प्रस्तावों और मांगों द्वारा निर्धारित की गई थी।
यह कैसे काम करता है?
किसी भी विदेशी मुद्रा व्यापारी जो विदेशी मुद्रा बाजार में उतरना चाहता है, उसे पता होना चाहिए कि यह कैसे काम करता है और बुनियादी शर्तें। मुद्रा जोड़ी प्रमुख तत्व है जो मुद्रा व्यापार में भाग लेती है। इसमें आधार मुद्रा और काउंटर मुद्रा (उदाहरण के लिए EUR / USD) शामिल हैं।
विदेशी मुद्रा पर व्यापार जानें कि विदेशी मुद्रा बाजार कैसे काम करता है का सिद्धांत समझने में काफी सरल है। मुद्राओं का आदान-प्रदान करने के लिए, व्यापारी एक मुद्रा जोड़ी खरीदता है जब बोली ऊपर जाती है और फिर नीचे जाने पर उसे बेचती है। जानकारी के लिए, विदेशी मुद्रा उद्धरण प्रतिपक्ष के खिलाफ आधार मुद्रा का मूल्यांकन है।
व्यापारी इसलिए भौतिक मुद्रा नहीं खरीदते और बेचते हैं, लेकिन मुद्राएं। यह विदेशी मुद्रा लेनदेन विदेशी मुद्रा लेनदेन या ऑनलाइन ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म के माध्यम से होता है। विदेशी मुद्रा पर कई मुद्रा जोड़े का कारोबार होता है। सबसे प्रसिद्ध अमेरिकी डॉलर, ब्रिटिश पाउंड, यूरो, जापानी येन और स्विस फ्रैंक हैं।
कैनेडियन डॉलर और ऑस्ट्रेलियाई डॉलर जैसी छोटी मुद्राओं के अन्य समूहों का भी विदेशी मुद्रा पर कारोबार किया जाता है। हालांकि, वे 10% से कम विदेशी मुद्रा लेनदेन का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो वास्तव में व्यापारियों के लिए फायदेमंद नहीं है।
एक दलाल काफी बस एक दलाल है। यह एक मध्यस्थ है जो विक्रेता के प्रस्ताव और कमीशन के बदले खरीदार की मांग से मेल खाता है। इसलिए यह विक्रेता और खरीदार के बीच लेनदेन की सुविधा प्रदान करता है.
व्यापार के क्षेत्र में, विदेशी मुद्रा दलाल एक व्यक्ति या एक कंपनी है जो खुदरा व्यापारियों को वित्तीय बाजारों तक पहुंच प्रदान करती है। यह क्लाइंट्स द्वारा रखी गई मुद्राओं के ऑर्डर को खरीदने और बेचने के लिए ट्रेडिंग अकाउंट का उपयोग जानें कि विदेशी मुद्रा बाजार कैसे काम करता है करता है। कुछ साइटें विभिन्न मानदंडों पर दलालों की तुलना करती हैं, इसलिए आप एक पढ़ सकते हैं सहूलियत एफएक्स समीक्षा
विदेशी मुद्रा: बिटकॉइन का एक अच्छा विकल्प?
व्यापारियों के लिए उल्लेखनीय लाभ
अन्य वित्तीय बाजारों की तुलना में, विशेष रूप से बिटकॉइन, विदेशी मुद्रा में खुदरा व्यापारियों और पेशेवरों के लिए महत्वपूर्ण फायदे हैं। यह वास्तव में एक है मुक्त बाजारक्योंकि इसके लिए क्लियरिंग फीस या ब्रोकरेज फीस की आवश्यकता नहीं है। बिटकॉइन (0,1% से कम) की तुलना में विदेशी मुद्रा में लेनदेन की लागत भी कम होती है। हालांकि, आपको पता होना चाहिए कि हर बार जीतना संभव नहीं है और यह तेजी से व्यवस्थित लाभ के साथ एक शहरी मिथक है। 10% रिटर्न पहले से ही उत्कृष्ट है और अधिकांश पेशेवरों को औसत मासिक रिटर्न 1 से 10% तक है, 20% पर कुछ चोटियों या असाधारण मामलों में 40% तक भी।
यह भी जान लें कि फॉरेक्स एक दिन में 24 घंटे खुला बाजार है (सप्ताहांत को छोड़कर), जो आपको किसी भी समय व्यापार करने की अनुमति देता है और कई बार आपको सूट करता है। दलालों द्वारा दिए गए उत्तोलन प्रभाव से आपको अपने लेनदेन को बढ़ाने और अपनी आय को गुणा करने का अवसर मिलता है।
जोखिम क्या हैं?
व्यापार की दुनिया में, नुकसान के जोखिम भारी हो सकते हैं। आपको पता होना चाहिए कि सबसे अच्छा रिटर्न प्राप्त करने के लिए, हमें मुद्राओं के मूल्य की प्रशंसा और मूल्यह्रास पर खेलना चाहिए। दरअसल, मुद्राओं की विनिमय दर स्थायी उतार-चढ़ाव में होती है, जिससे लेनदेन करना कभी-कभी जोखिम भरा हो जाता है। इसके अलावा, विदेशी मुद्रा में निवेश करके पैसा बनाने के लिए, सभी पक्षों से पदों को खोलने का कोई सवाल ही नहीं है। इसके विपरीत, आपको कम व्यापार करना होगा, लेकिन अधिक कुशलता से, जिसके लिए आपको विदेशी मुद्रा व्यापार की दुनिया के बारे में अच्छी तरह से जानकारी होनी चाहिए।
डॉलर के मुकाबले कमजोर हुआ रुपया तो क्या करेगा आरबीआई? जानिए, कैसे संभलेगी घरेलू मुद्रा
अंतरबैंक विदेशी मुद्रा बाजार में सोमवार को रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 36 पैसे टूटकर 78 रुपये 29 पैसे के स्तर पर आ गया. इस बीच, वायदा कारोबार में ब्रेंट क्रूड भी 1.46 फीसदी गिर गया. इसके साथ ही, सोमवार को वैश्विक बाजार में कमजोरी की वजह से सेंसेक्स जानें कि विदेशी मुद्रा बाजार कैसे काम करता है में भी करीब 1400 अंकों की गिरावट दर्ज की गई.
नई दिल्ली : सोमवार को अंतरबैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में रुपया डॉलर के मुकाबले करीब 36 पैसे टूट गया. शुरुआती कारोबार में अपने सबसे निचले स्तर 78 रुपये 29 पैसे पर आ गया. हालांकि, शुक्रवार को भी इसमें गिरावट दर्ज की गई थी और 19 पैसे की टूटकर यह 77 रुपये 93 पैसे के स्तर पर बंद हुआ था. हालांकि, 2013 में भी रुपये में भारी गिरावट आई थी. इस बीच सवाल यह पैदा होता है कि रुपये में जब गिरावट दर्ज होती है, तो फिर भारतीय रिजर्व बैंक क्या करता है? आइए, जानते हैं.
कितना गिरा रुपया
विदेश में अमेरिकी डॉलर की मजबूती और जोखिम से बचने के ट्रेंड से रुपया जानें कि विदेशी मुद्रा बाजार कैसे काम करता है सोमवार को शुरुआती कारोबार में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 36 पैसे टूटकर अपने सबसे निचले स्तर 78.29 पर आ गया. विदेशी मुद्रा कारोबारियों की मानें तो कमजोर एशियाई मुद्राएं, घरेलू शेयर बाजार में गिरावट और विदेशी पूंजी की लगातार निकासी से भी निवेशकों की भावनाएं प्रभावित हुईं. सोमवार की सुबह अंतरबैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 78.20 पर खुला और फिर अपनी जमीन खोते हुए 78.29 तक गिर गया. रुपये का यह स्तर शुक्रवार के बंद भाव के मुकाबले 36 पैसे की गिरावट है. इससे पहले, शुक्रवार को रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 19 पैसे टूटकर 77.93 पर बंद हुआ था.
क्या करता है आरबीआई
बाजार से जुड़े कुछ विशेषज्ञों की मानें तो आरबीआई बीच-बीच में रुपये को डॉलर के मुकाबले मजबूत करने की कोशिश करता रहता है. केंद्रीय बैंक आमतौर पर करेंसी मार्केट में उतार-चढ़ाव को रोकने के लिए स्पॉट मार्केट (हाजिर बाजार) में हस्तक्षेप करता है. विशेषज्ञों का कहना है कि जब डॉलर के मुकाबले रुपये में आ रही गिरावट को रोका नहीं जा सकता. उनका कहना है कि 2013 में रुपये में भारी गिरावट आई थी, तब आरबीआई ने बड़ी तेजी के साथ हाजिर बाजार में हस्तक्षेप किया था.
क्यों कमजोर हुआ रुपया
ब्रेंट क्रूड में गिरावट, विदेशी निवेशकों की बिकवाली और वैश्विक बाजारों की गिरावट की वजह से सोमवार को अंतरबैंक विदेशी मुद्रा बाजार में रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले कमजोर हो गया. वायदा कारोबार में ब्रेंट क्रूड 1.46 फीसदी गिरकर 120.23 डॉलर प्रति बैरल के भाव पर था. इस बीच छह प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले अमेरिकी डॉलर की स्थिति को दर्शाने वाला डॉलर सूचकांक 0.30 प्रतिशत बढ़कर 104.45 पर पहुंच गया.
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