BFSI SUMMIT: नियामकीय अतिसक्रियता वित्तीय क्षेत्र के लिए सबसे बड़ी चुनौती
भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) के पूर्व चेयरपर्सन एम दामोदरन का कहना है कि नियामक क्षमता, अति सक्रियता और अत्यधिक निर्देश वित्तीय क्षेत्र के सामने वे सबसे बड़ी चुनौतियां हैं, जिनका सामना वित्तीय क्षेत्र को करना पड़ रहा है। बिजनेस स्टैंडर्ड बीएफएसआई समिट में बुधवार को दामोदरन ने वित्तीय क्षेत्र में नियमों में सरलता, स्पष्टता और निरंतरता की आवश्यकता पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि उद्योग को बदलते नियमों के साथ रफ्तार बनाए रखना चुनौतीपूर्ण लगा है।
उन्होंने कहा कि वर्ष 2008 के बाद वित्तीय क्षेत्र का नियमन अत्यधिक गतिविधि झेल रहा है। किसी के वजूद को सही ठहराने के लिए नियामक अति सक्रिय रहा है। केवल नियामक ही नहीं, बल्कि इसमें रेटिंग एजेंसियां और निवेश बैंकर तथा वित्तीय क्षेत्र के अन्य लोग शामिल हैं, जो अचानक यह दिखाने के लिए मामला बना रहे हैं कि वे प्रासंगिक हैं, उन्हें समझा जाता है और वे समस्या का नहीं, बल्कि समाधान का हिस्सा हैं।
उन्होंने कहा कि आपको ऐसे नियमों की जरूरत है, जो सरल हों और बदले न जाएं, जिनमें निरंतरता और स्पष्टता हो। इसके अलावा दामोदरन ने सुझाव दिया कि समय के साथ प्रासंगिकता पर पुनर्विचार की सहायता के लिए प्रत्येक नियमन और कानून में ‘सनसेट क्लॉज’ (अपने आप समाप्त होने वाला प्रावधान) शामिल किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि जब तक यह बहुत जरूरी और सर्वोपरि न हो, इसमें एक सनसेट क्लॉज होना चाहिए क्योंकि फिर तीन साल या पांच साल बाद नियामक यह देखने के लिए विनियमन पर पुनर्विचार के लिए बाध्य होता है कि इसकी समकालीन प्रासंगिकता है या नहीं।
शिखर सम्मेलन में बोलते हुए पूर्व प्रशासनिक अधिकारियों ने नियामक निकायों में विशेष प्रतिभा शामिल करने की जरूरत जताई, जिसमें वकीलों से लेकर अकाउंटेंट और ऑडिटरों तक शामिल हैं। दामोदरन ने कहा कि नियामक क्षमता निर्माण ऐसी चीज है, जिस पर बहुत कम क्षेत्राधिकारियों ने ध्यान दिया है। आप एक नियामक संगठन की स्थापना करते हैं और फिर यह सोचने लग जाते हैं कि आप इसे कैसे आबाद करेंगे, क्योंकि यह पर्याप्त नहीं है।
उन्होंने कहा कि बड़ी चुनौती यह है कि लोग जो विशेषज्ञता प्रस्तुत करते हैं, क्या वह मौजूदा वक्त के लिए प्रासंगिक है और क्या वह विशेषज्ञता उन मसलों और साधनों की जटिलता को समझने की क्षमता प्रदान करती है, जिनसे उन्हें जूझना पड़ता है। कंपनियों को केवल कानून के दस्तावेज पर नहीं, बल्कि कानून की भावना पर ध्यान केंद्रित करने के लिए कहने पर सेबी की मौजूदा चेयरपर्सन माधवी पुरी बुच के नजरिये की सराहना करते हुए दामोदरन ने कहा ‘आप हर नियम का पालन कर सकते हैं और फिर भी इस तरह से कारोबार चलाते हैं, जो अन्य हितधारकों के हित में न हो।’
20 दिसंबर को सेबी के निदेशक मंडल की बैठक से इतर बुच ने चेताया था कि अगर कानून की भावना का सम्मान नहीं किया जाता है, तो नियामक को नियमों को और कड़ा करना होगा। बीएफएसआई समिट में दामोदरन ने नियामकों से किसी निष्कर्ष पर पहुचने या आदेश से पहले सही भावना और किसी भी मामले में दोनों पक्षों को सुनने की क्षमता रखने के लिए कहा।
उन्होंने कहा कि भावना यह हो कि विनियमित जगत को धूर्तों के समूह के रूप में न देखा जाए। अगर आप उस धारणा के साथ शुरुआत करते हैं, तो आप कोई प्रगति नहीं करेंगे। मेरा पसंदीदा दृष्टिकोण विश्वास और सत्यापित करना है। अविश्वास और कष्ट के मार्ग पर मत जाओ। एक छोटी-सी दिक्कत को दुरुस्त करने की कोशिश में आप संस्था को ही मार सकते हैं।
उनकी राय में प्रशासन की सही परिभाषा है – सही समय पर, सही काम, सही कारणों से, सही तरीके से करना। उन्होंने कंपनियों को प्रशासन में ‘इनकार, अवहेलना, दोष’ वाले सूत्र का पालन नहीं करने के लिए भी चेताया क्योंकि यह उन्हें केवल पीछे की ओर ले जाएगा।
शेयर बाजार में नुकसानदायक है 'महंगा खरीदो और सस्ता बेचो' की रणनीति, मुनाफा चाहिए तो हरगिज न करें ये गलतियां
नई दिल्ली, धीरेंद्र कुमार। कुछ साल पहले एक्सिस म्यूचुअल फंड की एक स्टडी के हवाले से खबर थी कि निवेशक जिस फंड में निवेश करते हैं, उसके मुकाबले उनका अपना रिटर्न कम रहता है। सरसरी तौर पर देखने पर ये बात निवेश का गणित समझने वाले किसी भी शख्स को बेतुकी लगेगी। मगर करीब से देखेंगे तो समझ जाएंगे कि यहां क्या हो रहा है। इसे समझने का राज गणित में नहीं, बल्कि लोगों के व्यवहार में छुपा है।
स्टडी रिपोर्ट के मुताबिक, एएमसी ने पिछले 20 साल में, मार्च 2022 तक मिलने वाले म्यूचुअल फंड रिटर्न जांचा। इस अंतराल में, सक्रिय रूप से मैनेज किए गए इक्विटी म्यूचुअल फंड्स में 19.1 प्रतिशत सालाना रिटर्न मिला था। मगर इन फंड्स के निवेशकों ने केवल 13.8 प्रतिशत ही कमाया था। ये एक बड़ा फर्क है। पिछले 20 साल में, 19.1 प्रतिशत का मतलब है, एक लाख रुपये का निवेश बढ़कर 33 लाख रुपये हो गया। वहीं, 13.8 प्रतिशत का मतलब है ये केवल 13.3 लाख ही हो पाया। ये जिंदगी बदल देने वाला फर्क है। इसी तरह, हाइब्रिड फंड्स ने 12.5 प्रतिशत रिटर्न दिया, मगर निवेशकों ने करीब 7.4 प्रतिशत कमाए। फिर से ये फर्क बहुत बड़ा है। एक लाख निवेश करने पर, असल में ये फर्क 10.5 लाख और 4.2 लाख का हुआ।
उत्साह में खरीदो, घबराहट में बेचो
मेरे अनुभव में ये आम बात है। मुझे हमेशा ही लगता रहा है कि फंड को मिलने वाले असल मुनाफे के मुकाबले निवेशक कहीं कम मुनाफा कमाते हैं। पर ऐसा होता क्यों है? दरअसल, हम निवेशक अपने ही सबसे बड़े दुश्मन हैं। एक तरफ, हम निवेश के लिए बेस्ट म्यूचुअल फंड चुनने पर अमादा रहते हैं। दूसरी तरफ हम फंड्स को गलत समय पर खरीदते और बेचते हैं। और ये काम कुछ इस तरह करते हैं कि मुनाफे के कम होने की गारंटी हो जाए। नतीजा ये होता है कि हम फंड तो अच्छे चुनते हैं, पर बैंक के फिक्स्ड डिपाडिट से बेहतर रिटर्न नहीं कमा पाते। बुनियादी तौर पर, इसे 'उत्साह में खरीदो, घबराहट में बेचो' कहा जा सकता है।
इस जुमले का मतलब साफ है। लोग तभी निवेश करते हैं, जब इक्विटी मार्केट में उत्साह छाया हो। यानी जब दाम पहले ही आसमान छू रहे होते हैं। फिर बेचते तब हैं जब इक्विटी के दाम क्रैश कर रहे होते हैं। कुल मिला कर इसका मतलब हुआ, 'महंगा खरीदो, सस्ता बेचो'। ये उसके ठीक उलट है जो किया जाना चाहिए। बजाए निवेश की 'श्रेष्ठ' रणनीति पता करने के, ऐसा व्यवहार निवेश की 'निकृष्ट' रणनीति की तरफ ले जाता है।
न करें ये गलतियां
नोट करें कि यहां म्यूचुअल फंड्स की बात सिर्फ इसलिए हो रही है, क्योंकि बात शुरू ही हुई थी एक म्यूचुअल फंड कंपनी की स्टडी से। यही बात इक्विटी निवेशकों पर भी लागू होती ही। हालांकि इक्विटी में इस तरह की साफ सुथरी तुलना मुश्किल है। असल में, स्टाक में दो तरह की गलतियां होती हैं, पहली है जल्दी बेच देना और दूसरी है बेचने में बहुत देर कर देना। और हां, स्टाक निवेश एक अलग तरह का निवेश भी है।
लोग स्टाक खरीदते हैं, और जब उन्हें लगता है कि ये उतना बढ़ गया है जितना बढ़ सकता था, तब वो उसे बेच देते हैं और इस तरह से अपना मुनाफा भुना लेते हैं। असल में, उन्हें लगता है कि ऐसा न करने से उनका मुनाफा हाथ से निकल जाएगा, या कम हो जाएगा। और बाद में पछताना पड़ सकता है या नुकसान की शर्मिंदगी उठानी पड़ सकती है जो बुरी बात होगी।
निवेशकों का मनोविज्ञान
मुनाफे को कुछ जल्दी भुना लेने में, निवेशक जीत पक्की करने के लिए प्रेरित होते हैं। और किसी खराब निवेश को बनाए रखने में उनकी प्रेरणा हार से बचने की होती है। काश, कह पाता कि एक बार निवेशक इस मुश्किल को समझ लेते, तो वो इन गलतियों से बचने के लिए कदम उठा सकते हैं। मगर जिन गलतियों की जड़ें निवेशकों के मनोविज्ञान से जुड़ी हों, उसे समझ जाने के बावजूद ठीक कर पाना आसान नहीं होता।
(लेखक वैल्यू रिसर्च आनलाइन डाट काम के सीईओ हैं। ये उनके निजी विचार स्टॉक जो रहे सबसे ज्यादा सक्रिय हैं।)
Indian Stock Market : कहीं बुलबुला न बन जाए यह तेजी
Indian Stock Market : भारतीय शेयर बाजार में बहार दिख रही है। सूचकांक लगातार ऊंचाई का रिकॉर्ड बना रहा है। इससे निवेशक काफी ज्यादा खुश हैं। फरवरी से अब तक तकरीबन 30 शेयरों ने शत-प्रतिशत रिटर्न दिया है। निवेशकों के उत्साह का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि चालू वित्त वर्ष के शुरुआती दो महीनों में ही 44.7 लाख खुदरा निवेशकों के खाते खुले हैं। तो क्या रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंचा शेयर बाजार भारतीय अर्थव्यवस्था की उम्मीद है?
इस सवाल का जवाब तलाशने से पहले हमें शेयर बाजार के गणित को समझना होगा। इसमें किसी कंपनी के शेयर दो वजहों से चढ़ते-उतरते हैं। पहली, उस कंपनी की मौजूदा दशा क्या है? और दूसरी, आने वाले समय में वह कैसा प्रदर्शन करेगी? यह तो तय है कि देश की अर्थव्यवस्था अभी 2019 के स्तर पर भी नहीं पहुंच सकी है। इसलिए जाहिर तौर पर लोग सूचीबद्ध कंपनियों के आगे बेहतर करने की उम्मीद में ही निवेश कर रहे हैं। इस सोच के वाजिब कारण हैं।
मसलन, अभी निवेशक अधिकांशत: टेक्नोलॉजी, ई-कॉमर्स, ई-बैंकिंग जैसी कंपनियों में निवेश कर रहे हैं। चूंकि हमारी मांग में बदलाव आया है और हम बगल की दुकान से नहीं, बल्कि ऑनलाइन खरीदारी ज्यादा करने लगे हैं, इसलिए इन कंपनियों पर निवेशकों का भरोसा बढ़ा है। इसी के कारण कुछ कंपनियों के आईपीओ आश्चर्यजनक रूप से काफी ज्यादा पर खुले। अमेजन, फेसबुक जैसी कंपनियों के इतिहास ने भी निवेशकों को इन जैसी कंपनियों पर पैसा लगाने को प्रोत्साहित किया।
मगर सवाल यह है कि जब अर्थव्यवस्था (Indian Stock Market) की हालत खास्ता हो, तब निवेशकों की चांदी क्यों है? दरअसल, अभी बाजार में लिक्विडिटी, यानी तरलता (पूंजी) ज्यादा है। दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाएं कोरोना से लड़ रही हैं, इसलिए तमाम देशों के केंद्रीय बैंकों ने अपने-अपने यहां लिक्विडिटी बढ़ाई है। व्यापारिक-वर्ग के हाथों में पैसे आने से वे निवेश की सोचने लगे हैं। चूंकि रियल एस्टेट में ज्यादा रिटर्न नहीं है, और बैंकों में भी ब्याज दरें कम कर दी गई हैं, इसलिए अच्छे रिटर्न की चाहत में शेयर बाजार उनके लिए सबसे मुफीद बन गए हैं।
भारतीय शेयर बाजार इसलिए भी निवेशकों को लुभा रहे हैं, क्योंकि भारत एक बड़ा बाजार है। नतीजतन, यहां उन कंपनियों के दाम भी चढऩे लगे हैं, जिनका भविष्य बहुत ज्यादा साफ नहीं दिखता। यही वह बात है, जिससे हमें चिंतित होना चाहिए। शेयर बाजार में उन कंपनियों के निवेशक मुनाफे में रहते हैं, जो भविष्य में अच्छा रिटर्न देने का भरोसा देती हैं, लेकिन उन कंपनियों के निवेशकों को नुकसान हो सकता है, जिनके बदहाल होने की आशंका अधिक है।
दिक्कत यह है कि किसी कंपनी का भविष्य पढ़ पाना आसान नहीं होता। कुछ कंपनियों का तो ठीक-ठीक आकलन किया जा सकता है, लेकिन ज्यादातर शेयरों की खरीद-बिक्री काफी कुछ अनुमान पर आधारित होती है। इसमें जो निवेशक बाजार को पढ़ सका, वह तो मुनाफे में रहेगा, लेकिन जो ठीक-ठीक अनुमान नहीं लगा सकता, उसे घाटा हो सकता है। एक दिक्कत यह भी है कि बाजार के चढऩे से शेयर का मूल्य-आय अनुपात (कंपनी के शेयर का मूल्य और शेयर से अर्जित आय का अनुपात) बढ़ जाता है।
अभी भारतीय शेयर बाजार का यही हाल है। इसमें सबसे बड़ा खतरा यह है कि जब यह टूटेगा (जिसकी आशंका ज्यादा है), तो निवेशकों को नुकसान होगा। मौजूदा तेजी के कारण निवेश के असली क्षेत्र पिछड़ सकते हैं। ये वे क्षेत्र हैं, जो किसी भी अर्थव्यवस्था की बुनियाद होते हैं। इनके रिटर्न तुलनात्मक रूप से कम होते हैं। इसीलिए लोग अभी इनमें निवेश करने से बच रहे हैं।
इसका पैसा तुरंत लाभ देने वाली कंपनियों के खाते में जा रहा है, जिससे अर्थव्यवस्था को नुकसान हो सकता है। जैसे, यदि सुनहरे भविष्य को देखते हुए टेक्नोलॉजी कंपनियों में हम ज्यादा निवेश करते हैं, तो हमें बेशक रिटर्न ज्यादा मिले, लेकिन इससे रोजगार सृजन का परिदृश्य प्रभावित हो सकता है, यानी खतरा दोतरफा है- वास्तविक निवेश न होने से अर्थव्यवस्था कमजोर होगी और दूसरा, रोजगार प्रभावित होगा।
एक और बात, हमारे शेयर बाजार (Indian Stock Market) में कॉरपोरेट सेक्टर का प्रभुत्व है। ऐसे उद्योगपतियों की संख्या पांच से दस लाख के करीब है। मगर देश की कुल आबादी में इनकी हिस्सेदारी महज 0.1 फीसदी है। साफ है, शेयर बाजार के चढऩे से ज्यादा फायदा इसी वर्ग को स्टॉक जो रहे सबसे ज्यादा सक्रिय होगा। यही अब तक होता रहा है, जबकि अमेरिका जैसे देशों में खुदरा निवेशकों की संख्या ठीक-ठाक है। इसके कारण शेयर बाजार का फायदा वहां कई वर्गों में बंटता है। अपने यहां एक बड़ी आबादी शेयर बाजार के फायदे से वंचित रह जाती है। फिर, शेयर बाजार जब टूटता है, तो बड़े निवेशक जैसे-तैसे उसे सह जाते हैं, लेकिन कम पूंजी होने के कारण खुदरा निवेशकों को नुकसान अधिक होता है। हर्षद मेहता केस इसका बड़ा उदाहरण है।
इन सबसे बचने के लिए सरकार को कुछ प्रयास करने चाहिए। मुमकिन हो, तो उसे छोटी अवधि वाले पूंजीगत लाभ के टैक्स बढ़ा देने चाहिए। इतना ही नहीं, शेयर बाजार में लेन-देन, यानी ट्रांजेक्शन पर भी टैक्स लगाया जाना चाहिए। इनसे भेड़चाल में होने वाली खरीद-बिक्री हतोत्साहित होगी। एकाध दिन में ही अच्छा-खासा रिटर्न पाने की उम्मीद में बड़ा निवेश करने वाले निवेशक भी अपने पांव पीछे खींचने को मजबूर होंगे। इससे न केवल सरकार का खजाना बढ़ेगा, बल्कि बुनियादी ढांचों के विकास पर वह कहीं ज्यादा रकम खर्च कर सकेगी।
ऐसा करना इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि विदेशी बाजारों (Indian Stock Market) में कोई हलचल होते ही भारतीय शेयर बाजार की यह तेजी मंद पड़ सकती है। विदेशी निवेशकों के पीछे हटने की शुरुआत इसका एक बड़ा संकेत है। इस समय लिक्विडिटी अधिक होने की वजह से शेयर बाजार में लोग पैसे तो लगा रहे हैं, लेकिन जब उनके हाथ तंग होंगे, तो वे अपनी पूंजी निकालने से हिचकेंगे भी नहीं। ऐसी स्थिति में बाजार बिखरने लगेगा। यानी, आज का बुलबुला दीर्घावधि में भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है। नीति-नियंताओं को इसी पर ध्यान देना चाहिए।
ग्लोबल मार्केट में निराशा का माहौल, एशियाई बाजारों में भी गिरावट का रुख
नई दिल्ली (New Delhi), . ग्लोबल मार्केट में आज एक बार फिर कमजोरी का रुख बना हुआ है. पिछले कारोबारी सत्र में अमेरिकी बाजार गिरावट के साथ बंद हुए. वहीं यूरोपीय बाजार में भी गिरावट का रुख बना रहा. अगर एशियाई बाजारों की बात करें, तो आज एशियाई बाजार भी कमजोरी के साथ ही कारोबार करते नजर आ रहे हैं.
पिछले कारोबारी सत्र के दौरान एक बार फिर अमेरिकी बाजार में जोरदार बिकवाली का रुख रहा. टेक्नॉलॉजी से जुड़े शेयरों में सबसे ज्यादा गिरावट दर्ज की गई. पूरे सत्र के कारोबार के दौरान नैस्डेक 235.25 अंक यानी 2.18 प्रतिशत की गिरावट के साथ 10,476.12 अंक के स्तर पर बंद हुआ. इसी तरह एसएंडपी 500 इंडेक्स ने पिछले सत्र के दौरान 1.45 प्रतिशत टूट कर 3,822.39 अंक के स्तर पर अपने कारोबार का अंत किया. इसके अलावा डाओ जोंस भी 348.99 अंक यानी 1.05 प्रतिशत की कमजोरी के साथ 33,027.49 अंक के स्तर पर बंद हुआ.
जानकारों का कहना है कि आर्थिक गतिविधियों से जुड़े निराशाजनक आंकड़ों और अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में लगातार बढ़ोतरी किए जाने की वजह से अमेरिकी बाजार पर दबाव की स्थिति बनी हुई है. इसके साथ ही बेरोजगारी दावों का आंकड़ा 2,16,000 के स्तर तक पहुंच गया है. इसकी वजह से अमेरिकी बाजार पूरी तरह से दबाव में काम कर रहे हैं. इसके साथ ही कोरोना संक्रमण की नई लहर ने भी बाजार में डर का माहौल बना दिया है.
अमेरिका में छाई निराशा और कोरोना संक्रमण के डर ने यूरोपीय बाजार पर भी असर डाला है. पिछले कारोबारी सत्र में यूरोपीय बाजार के तीनों प्रमुख इंडेक्स गिरावट के साथ लाल निशान में बंद हुए. डीएएक्स इंडेक्स में सबसे अधिक गिरावट दर्ज की गई. ये सूचकांक 183.75 अंक यानी 1.30 प्रतिशत की कमजोरी के साथ 13,914.07 अंक के स्तर पर बंद हुआ. इसी तरह सीएसी इंडेक्स ने 0.95 प्रतिशत टूटकर 6,517.97 अंक के स्तर पर पिछले सत्र के कारोबार का अंत किया. इसके अलावा एफटीएसई इंडेक्स 0.37 प्रतिशत की गिरावट के साथ 7,469.28 अंक के स्तर पर बंद हुआ.
अमेरिकी और यूरोपीय बाजार में आई गिरावट का असर आज एशियाई बाजारों पर भी नजर आ रहा है. एसजीएक्स निफ्टी 90.50 अंक यानी 0.50 प्रतिशत की गिरावट के साथ 18,087.50 अंक के स्तर पर कारोबार कर रहा है. इसी तरह निक्केई इंडेक्स 242.43 अंक 0.91 प्रतिशत की कमजोरी के साथ 26,265.44 अंक के स्तर पर नजर आ रहा है. इसके अलावा स्ट्रेट्स टाइम्स इंडेक्स 0.44 प्रतिशत टूट कर 3,255.12 अंक के स्तर पर कारोबार कर रहा है. जबकि हैंग सेंग इंडेक्स 100.78 अंक यानी 0.51 प्रतिशत की गिरावट के साथ 19,578.44 अंक के स्तर पर कारोबार करता नजर आ रहा है.
हिंदुस्तान जिंक लगातार तीसरी बार कंपनी विद ग्रेट मैनेजर्स से पुरस्कृत; हिंदुस्तान जिंक के 12 प्रबंधक शीर्ष 300 ग्रेट मैनेजर्स की सूची में शामिल
एशियाई बाजारों में आज ताइवान वेटेड इंडेक्स में भी 1.22 प्रतिशत की स्टॉक जो रहे सबसे ज्यादा सक्रिय बड़ी गिरावट नजर आ रही है. फिलहाल ये सूचकांक 175.68 अंक टूट कर 14,267.26 अंक के स्तर पर कारोबार कर रहा है. इसी तरह कोस्पी इंडेक्स स्टॉक जो रहे सबसे ज्यादा सक्रिय भी 1.42 प्रतिशत की कमजोरी के साथ 2,323.35 अंक के स्तर पर पहुंचा हुआ है. इसके अलावा सेट कंपोजिट इंडेक्स 0.17 प्रतिशत की कमजोरी के साथ 1,613.96 अंक के स्तर पर और जकार्ता कंपोजिट इंडेक्स 0.23 प्रतिशत की गिरावट के साथ 6,808.75 अंक के स्तर पर कारोबार करते नजर आ रहे हैं. एशियाई बाजारों में सिर्फ शंघाई कंपोजिट इंडेक्स फिलहाल 0.09 अंक की सांकेतिक तेजी के साथ 3,054.52 अंक के स्तर पर कारोबार कर रहा है.
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