एग्जिट पोल: एमसीडी से बीजेपी की विदाई का क्या मतलब है?
एमसीडी चुनाव में बीजेपी ने राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से लेकर कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों, बड़ी संख्या में केंद्रीय मंत्री और कई राज्यों के संगठन पदाधिकारियों को चुनाव मैदान में उतारा था। बावजूद इसके एग्जिट पोल बताते हैं कि दिल्ली के लोगों पर आम आदमी पार्टी का रंग चढ़ा हुआ है।
सत्य हिंदी ऐप डाउनलोड करें
तमाम एग्जिट पोल के मुताबिक दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) के चुनाव में आम आदमी पार्टी को स्पष्ट बहुमत मिल रहा है। अगर एग्जिट पोल के नतीजे सही साबित होते हैं तो यह माना जाना चाहिए कि राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में आम आदमी पार्टी की जबरदस्त पकड़ है और पिछले 24 साल से दिल्ली की सत्ता से बाहर बीजेपी एमसीडी से भी विदा होने जा रही है। अगर एग्जिट पोल के आंकड़े सही साबित होते हैं तो इसका दिल्ली में बीजेपी की राजनीति पर क्या असर पड़ेगा, आइए इस बारे में बात करते हैं।
उससे पहले यह जानना जरूरी होगा कि दिल्ली में सातों सांसद बीजेपी के हैं और बावजूद इसके पार्टी अगर एमसीडी चुनाव में हारती है तो यह उसके लिए बहुत बड़ा झटका होगा।
देश के तमाम राज्यों में फतेह हासिल कर रही बीजेपी दिल्ली में करारी हार का घूंट पीने को मजबूर है। साल 2014 में मोदी-शाह युग के उदय के बाद से बीजेपी ने ऐसे राज्यों में भी सरकार बनाई है जहां उसकी सरकार बनने की कल्पना ही की जा सकती थी। ऐसे राज्यों में त्रिपुरा का नाम प्रमुख है।
1993 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में दिल्ली में बीजेपी की सरकार बनी थी लेकिन 1998 में कांग्रेस के हाथों मिली हार के बाद शिकस्त का जो सिलसिला शुरू हुआ वह आम आदमी पार्टी के आने के बाद आगे बढ़ता चला गया।
ऐसा नहीं है कि दिल्ली में बीजेपी मजबूत नहीं है। एमसीडी में वह 15 साल तक सत्ता में रही है और 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में वह यहां की सभी 7 सीटों पर जीत हासिल कर चुकी है लेकिन दिल्ली की विधानसभा में उसे बढ़त कब एमएसीडी क्या है? मिलेगी, दिल्ली में उसकी सरकार कब बनेगी, यह सवाल बीजेपी के साथ ही संघ परिवार को भी परेशान करता है।
बीजेपी 1998 से दिल्ली की सत्ता से बाहर है। पार्टी के कार्यकर्ता भी इस बात को लेकर निराश दिखते हैं कि दिल्ली की विधानसभा में उनकी सरकार बनने का ख्वाब कहीं ख्वाब ही ना रह जाए।
साल 2015 और 2020 के विधानसभा चुनाव में पूरा जोर लगाने के बाद भी बीजेपी 3 और 8 सीटों के आंकड़े तक पहुंच सकी।
शीला दीक्षित और केजरीवाल
दिल्ली में आम आदमी पार्टी से लोहा लेने के लिए बीजेपी को एक लोकप्रिय स्थानीय चेहरे की सख्त जरूरत है। बीते सालों में बीजेपी ने वरिष्ठ नेता विजय कुमार मल्होत्रा से लेकर हर्षवर्धन, विजय गोयल, पूर्वांचल से आने वाले मनोज तिवारी तक को पार्टी ने अपना चेहरा बनाया है लेकिन पार्टी यहां की सत्ता में वापसी नहीं कर सकी। पहले जहां शीला दीक्षित उसकी राह का रोड़ा बनी रहीं वहीं अब अरविंद केजरीवाल उसकी मुसीबत बन गए हैं।
एमसीडी के नतीजों का असर
दिल्ली में एमसीडी के चुनाव नतीजों की गूंज केवल दिल्ली की सियासत में ही नहीं कुछ हद तक उत्तर प्रदेश, बिहार, उत्तराखंड, पंजाब और हरियाणा में भी होती है। क्योंकि इन सभी राज्यों के मतदाता बड़ी संख्या में दिल्ली में रहते हैं। इसलिए एमसीडी का चुनाव बहुत अहम है और अरविंद केजरीवाल और उनकी टीम अगर एमसीडी में आ गई तो निश्चित रूप से उनकी पकड़ दिल्ली में और मजबूत होगी।
आम आदमी पार्टी के लिए यह जीत इसलिए भी बड़ी होगी क्योंकि 2017 के एमसीडी चुनाव में उसे करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा था। 2017 में एमसीडी के 272 वार्डों के लिए चुनाव हुआ था। तब बीजेपी को 181 वार्डों में जीत मिली थी जबकि आम आदमी पार्टी को 48, कांग्रेस को 30 और अन्य को 13 वार्डों पर जीत मिली थी।
इस बार एमसीडी चुनाव में बीजेपी ने राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से लेकर कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों, बड़ी संख्या में केंद्रीय मंत्री और कई राज्यों के संगठन पदाधिकारियों को चुनाव मैदान में उतारा था। बावजूद इसके एग्जिट पोल बताते हैं कि दिल्ली के लोगों पर आम आदमी पार्टी का रंग बरकरार है। यहां तक कि पार्टी के स्टार चेहरे अरविंद केजरीवाल भी एमसीडी के चुनाव में ज्यादा सक्रिय नहीं रहे और उनका अधिकतर वक्त गुजरात के चुनाव में ही बीता। बावजूद इसके अगर आम आदमी पार्टी यहां जीत जाती है तो यह उसके लिए निश्चित रूप से एक बड़ी जीत होगी।
चेहरा बदलेगी बीजेपी?
अब ऐसे में बीजेपी के पास विकल्प क्या है। क्या वह दिल्ली की सियासत में किसी ऐसे चेहरे को उतारेगी जो उसे आम आदमी पार्टी के सामने लड़ाई में खड़ा कर सके क्योंकि 2015 और 2020 के चुनाव विधानसभा चुनाव के दौरान बीजेपी पूरी ताकत लगाकर भी आम आदमी पार्टी का मुकाबला नहीं कर सकी है और अगले विधानसभा चुनाव में अब 2 साल का वक्त ही बचा है।
स्मृति ईरानी को मिलेगा मौका?
ऐसी चर्चा है कि बीजेपी इस बार दिल्ली में पार्टी की कमान केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी को सौंप सकती है। स्मृति ईरानी पंजाबी समुदाय से हैं और इस समुदाय का दिल्ली की सियासत में अच्छा खासा दखल है।
स्मृति ईरानी साल 2004 में चांदनी चौक लोकसभा सीट से चुनाव लड़ चुकी हैं। हालांकि तब उन्हें हार मिली थी लेकिन वक्त बदला और कुछ ही साल में उन्होंने बीजेपी और केंद्र की राजनीति में अपनी एक अलग पहचान बना ली है।
कुल मिलाकर अगर बीजेपी को दिल्ली में अपनी सरकार बनानी है तो तो उसे किसी बड़े चेहरे को केजरीवाल के सामने करना होगा। कई महीनों से प्रदेश अध्यक्ष आदेश गुप्ता की जगह किसी नए चेहरे को आगे लाने की बात चल रही है। देखना होगा कि वह किस नेता पर दांव लगाती है।
Delhi MCD Results: एमसीडी के 17 फीसदी पार्षदों के खिलाफ क्रिमिनल केस, AAP के 27 तो BJP के 12 दागी, 2 नहीं गए स्कूल
Delhi MCD Councillor: दिल्ली MCD चुनाव में राजनीतिक पार्टियों के पार्षदों के जीतने के बाद ADR ने अपनी एक रिपोर्ट जारी की है. जिसमें MCD के 17 फीसदी पार्षदों के अपराधिक मामले दर्ज हैं. इसके अलाव 8 फीसदी पार्षदों पर संगीन धराओं में मामले दर्ज हैं
Written by Rahul Singh December 9, 2022 3:08 pm
दिल्ली MCD चुनाव (फोटो - सोशल मीडिया)
Delhi MCD Councillor: दिल्ली में एमसीडी (MCD) चुनाव के नतीजे सामने आ चुके हैं और इसमें आम आदमी पार्टी ने पूर्ण बहुमत के साथ जीत हासिल की है. आम आदमी पार्टी ने 134 सीट हासिल की है तो वहीं बीजेपी ने 104 सीटों पर जीत दर्ज की है. वहीं कांग्रेस के खाते में 9 सीटें गई हैं. तो इसके अलावा निर्दलीय के खात में 3 सीट गई है.
इन राजनीतिक पार्टियों के पार्षदों के जीतने के बाद ADR ने अपनी एक रिपोर्ट जारी की है. जिसमें MCD के 17 फीसदी पार्षदों के अपराधिक मामले दर्ज हैं. इसके अलावा 8 फीसदी पार्षदों पर संगीन धराओं में मामले दर्ज हैं.
ADR की रिपोर्ट में कितनों पार्षदों पर अपराधिक मामले
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स यानी (ADR) और दिल्ली इलेक्शन वॉच ने 248 पार्षदों के हर अपराधों की जांच कर एक रिपोर्ट जारी की है. जिसके बाद पता चलता है कि आम आदमी पार्टी के 134 में से 132 पार्षद तक जानकारी मिली है. जिसमें आप के 132 में से 27 यानी कि 21 फीसदी पार्षदों पर अपराधिक मामले दर्ज एमएसीडी क्या है? हैं. वहीं अगर बीजेपी की बात की जाए तो बीजेपी के 104 पार्षदों में से 12 के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं.
रिपोर्ट में कहा गया है कि 3 निर्दलीय में से दो ने और कांग्रेस के 9 में से एक ने अपने खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज होने की जानकारी दी है. रिपोर्ट के मुताबिक, जानकारी मिली है कि आप के 12, बीजेपी के छह और एक निर्दलीय पार्षद ने अपने खिलाफ संगीन मामले दर्ज होने की घोषणा अपने-अपने हलफनामों में की है.
क्या है शैक्षिक योग्यता का रिकॉर्ड ?
दिल्ली नगर निगम 250 पार्षदों ने अपनी शैक्षिक योग्यता बताई. जिसमें करीब आधों ने अपनी शैक्षिक योग्यता पांचवी से बारहवीं (12) के बीच बताई एमएसीडी क्या है? है. वहीं 66 फीसदी पार्षद की उम्र 41 से 70 के बीच है. जबकि दो पार्षद निरक्षर हैं.
2017 में क्या था हाल
ADR की रिपोर्ट में कहा गया है कि 2017 में कुल 10 फीसदी पार्षदों के एमएसीडी क्या है? खिलाफ अपराधिक मामले दर्ज थे. पहले तत्कालीन उत्तर, पूर्वी और दक्षिणी नगर निगमों के 266 पार्षद थे. तब 270 वार्ड हुआ करते थे. लेकिन आंकड़े 266 के ही उपलब्ध थे. इस साल तीनों निगमों को मिलाकर एक कर एमएसीडी क्या है? दिया गया है.
MCD and NDMC Full Form in Hindi and English | एमसीडी और एनडीएमसी क्या होता है ?
नमस्कार दोस्तों MCD & NDMC FULL FORM क्या होता है आज आपको बताने वाले हैं। इसी के साथ साथ MCD & NDMC आखिरकार क्या है ये भी बताने का समय आ चुका है। जैसा कि हम आपके लिए आए दिन किसी ना किसी वर्ड का फुल फॉर्म आपके डिमांड पर लेकर आते रहते हैं।
MCD & NDMC Full Form in Hindi & English
हमारे देश के अलग-अलग शहरों में और अलग-अलग राज्यों में ऐसी बहुत सी संस्थाएं बनी हुई है जिनके बारे में हम जानते हैं लेकिन विस्तार में नहीं जानते हैं यानी कि उनके फुल फॉर्म क्या होते हैं। लेकिन आज की जानकारी मुख्य रूप से MCD & NDMC FULL FORM क्या होती है जानने के लिए बनाया गया है।
एमसीडी क्या होता है | What is MCD in Hindi
ये विभाग एमसीडी के अधिकारियों को नियुक्त करते हैं जो दिल्ली के नागरिकों की नागरिक की बेहतर बनाने के लिए कार्य करते है। 7 अप्रैल 1958 में एमसीडी की स्थापना हुई थी। एमसीडी अपनी ऑफिशियल वेबसाइट चलाता है जो नागरिकों को शरीर के बारे में छोटी-छोटी जानकारी देने के लिए सक्षम है। साथ में यदि आप कोई शिकायत करना चाहते हैं उसके लिए भी विकल्प दिया गया है। एमसीडी का फुल फॉर्म Municipal corporation Delhi होता है।
एनडीएमसी क्या है | What is NDMC in Hindi
NDMC FULL FORM फुल फॉर्म क्या होता है यह भी जानना बहुत जरूरी है क्योंकि दोनों का ताल्लुक देश की राजधानी दिल्ली से है। NDMC FULL FORM New Delhi Municipal Council होता है जिसे हिंदी में नई दिल्ली नगरपालिका परिषद के नाम से भी जाना जाता है। NDMC की भी अपनी एक वेबसाइट है जहां पर आप बिजली पानी संपत्ति जागीर बारात घर बुकिंग पानी का टैंकर बुकिंग पीला बुखार टीकाकरण इन सभी रोजाना की परेशानी को हल करने के लिए NDMC की ऑफिशियल वेबसाइट पर जाकर आसानी से सॉल्व कर सकते हैं।
आशा करते हैं कि आपको हमारी महत्वपूर्ण जानकारी काफी अच्छी लगी होगी क्योंकि ज्यादातर एमएसीडी क्या है? यदि आप दिल्ली के नागरिक हैं या फिर दिल्ली में रहते हैं और कोई नौकरी करते हैं तो आपके लिए यह जानकारी जानना बहुत ही ज्यादा महत्वपूर्ण है क्योंकि आए दिन महानगरी में आपको हर दिन और हर समय MCD & NDMC की जरूरत पढ़ती रहती है और इनका सामना भी करना पड़ता है।
इसके साथ साथ दुनिया में हर एक चीज के बारे में पता होना जरूरी होता इसीलिए आए दिन आपके लिए इस प्रकार की ज्ञान वाली जानकारी लेकर हाजिर होते रहते हैं। यदि आप हमारे जरिए कुछ और जानना चाहते हैं तो आप हमें कमेंट बॉक्स में बता सकते हैं।
एमएसीडी क्या है?
- suryasamachar.com [Edited by: Surya Team]
- 07-12-2022 18:43:29 PM
दिल्ली MCD चुनाव के क्या हैं मायने। क्या 2024 आम चुनाव पर पड़ेगा असर । क्या दिल्ली MCDके नतीजों से दिल्ली की सातों लोकसभा सीटें होगी प्रभावित । क्या अरविंद केजरीवाल का कद राष्ट्रीय राजनीति में बढ़ जाएगा । क्या बीजेपी जो निरंतर फ्री की रेवड़ी वाला सवाल उठाती आ रही थी उसपर लगेगा विराम । क्या शराब घोटाला का मुद्दा रहा बेअसर । क्या यमुना की गंदगी का मुद्दा भी काम नहीं आया । या फिरक्या दिल्ली को केजरीवाल पसंद हैं।
या फिर दिल्ली MCDमें बीजेपी ने कुछ भी काम नहीं किया । क्या बीजेपी के पार्षदों ने भ्रस्टाचार की इंतहा कर दी थी । क्या दिल्ली MCDमें बीजेपी मनमानी कर रही थी । क्या बीजेपी को ये अभिमान हो गया था कि वो कुछ भी करें दिल्ली की जनता तो उन्हें ही चुनेगी। क्या कूड़ों के पहाड़ बीजेपी को दिल्ली MCDमें ले डूबे ।
साथ ही सवाल एमएसीडी क्या है? ये भी है कि कांग्रेस कहां है? क्या कांग्रेस का भविष्य अस्ताचल की ओर हैक्या कांग्रेस के लिए दिल्ली अब दूर की कौड़ी है।
सवाल बहुत हैं, लेकिन जवाब तो सिर्फ दिल्ली की जनता के दिल में है
दरअसल देश की सियासत और दिल्ली की राजनीति में कुछ तो फर्क है जिसे समझ पाना शायद पॉलिटिकल पंडितों और विश्लेषकों के लिए भी किसी अजूबे से कम नहीं हैं क्योंकि जब जब दिल्ली के परिणामों को लेकर अनुमान लगाया गया तब तब नतीजे उलट ही नजर आए। लेकिन हां मात्र 10 साल पुरानी आंदोलन के गर्भ से निकली आम आदमी पार्टी को लेकर जो भी अनुमान लगाए गए वो तकरीबन सच होते नजर आए !
चुनाव दर चुनाव इस पार्टी ने दिल्ली में साबित भी किया। पंजाब में तो इस पार्टी ने इतिहास ही रच दिया जैसा दिल्ली में रचा था।
आंकड़े चौंकाने वाले हैं। दिल्ली के मुखिया अरविंद केजरीवाल एमसीडी को लेकर लगातार बीजेपी पर हमलावर रहे हैं। तीनो कूड़े के पहाड़ को लेकर सवाल उठाते रहे हैं। अपनी कट्टर इमानदारी का हवाला देकर जनता की नब्ज पकड़ने की कोशिश करते हैं, तो वहीं दूसरी तरफ बीजेपी गंदी होती यमुना, पीने के पानी की समस्या, एमसीडी कर्मचारीयों के वेतन भत्ते को रोकने को लेकर हमलावर रही है।
लेकिन तमाम कयासों के बीच आम आदमी पार्टी ने दिल्ली नगर निगम चुनाव में बड़ी जीत दर्ज कर ली है और अंतत:आम आदमी पार्टी ने15 साल से एमसीडी की सत्ता पर काबिज बीजेपी को बाहर का रास्ता दिखा दिया है. सभी 250 सीटों पर नतीजे घोषित हो चुका है।जिसमें से आम आदमी पार्टी 134, बीजेपी 104 , कांग्रेस 9 और अन्य के खाते में 3 सीटें आई हैं।
यकीनन दिल्ली के एमसीडी चुनाव ने सियासी हलचल तेज कर दी है तो वहीं बीजेपी और कांग्रेस के लिए चिंतन और मंथन करने के लिए विवश कर दिया है।
इस चुनावी परिणाम से सवाल उठना लाजिमी है,मसलन आखिर क्या कारण है कि जहां भी आप मुखिया अरविंद केजरीवाल पैर जमाते हैं, वहां बीजेपी और कांग्रेस धराशायी हो जाती है। तमाम प्रयासों के बाद भी बीजेपी का जादू नहीं चल पाता है ? आखिर दिल्ली के दिल में क्या है ? एमसीडी चुनाव ने राजनीतिक दलों को क्या संदेश दिया है .
दरअसल दिल्ली नगर निगम में कुल 250 वार्ड हैं। एमसीडी में इस बार कुल 50.47 प्रतिशत लोग ही वोट डालने पहुंचे। इस बार मत प्रतिशत और वोट शेयर के हिसाब से देखें तो एमसीडी में आम आदमी पार्टी को 42.20% वोट मिले। भारतीय जनता पार्टी के खाते में 39.02% वोट गए। कांग्रेस को 11.68% वोट मिले। 3.42 फीसदी लोगों ने निर्दलीय प्रत्याशियों को वोट किया।
चुनाव के शुरुआत में आपको या होगा आम आदमी पार्टी ने 'एमसीडी में भी केजरीवाल' का नारा दिया था, लेकिन बाद में इसे बदलकर 'केजरीवाल की सरकार, केजरीवाल का पार्षद' कर दिया। इसके जरिए वह यह कहना चाहते थे कि दिल्ली में पूरी तरह से अगर आप को ताकत मिल गई तो वह साफ-सफाई और लोगों के रोजमर्रा की जरूरतों का भी ख्याल रख सकेंगे। केजरीवाल का ये प्लान असर दिखाया और जीत हुई ।
वहीं दूसरी तरफ केजरीवाल गंदगी, कूड़े के ढेर, निगम में भ्रष्टाचार समेत कई मुद्दों पर बीजेपी को घेरते रहे ।जिसके जवाब में भाजपा आम आदमी पार्टी के ऊपर ही आरोप लगाती रही। शराब घोटाला, सत्येंद्र जैन के मसाज वाले वीडियो, ईडी की छापेमारी को भी आम आदमी पार्टी ने काफी भुनाया। केजरीवाल ने जनता को संदेश दिया कि आम आदमी पार्टी के नेताओं को जानबूझकर परेशान किया जा रहा है। ऐसे में एक तरफ भाजपा को लेकर लोगों में एंटी इनकम्बेंसी और दूसरी तरफ अरविंद केजरीवाल को लेकर जनता की सहानुभूति ने आप को काफी आगे बढ़ा दिया।आप सरकार की मुफ्त बिजली, स्कूलों की बेहतर व्यवस्था, मोहल्ला क्लीनिक, बुजुर्गों को धार्मिक यात्रा कराना, महिलाओं के लिए बसों में मुफ्त यात्रा वाली योजनाएं भी काफी हद तक काम कर गईं। महंगाई के समय गरीब वर्ग को ये योजनाएं काफी पसंद आई। यही कारण है कि आप के वोटर्स ने एमसीडी चुनाव में बढ़चढ़कर हिस्सा लिया, वहीं भाजपा के वोटर्स बाहर ही नहीं निकले।
एमसीडी चुनाव के असल मायने ?
परिणाम साबित करता है कि 'एमसीडी चुनाव से अरविंद केजरीवाल का ग्राफ जरुर बढ़ेगा और आने वाले समय में भाजपा के खिलाफ अरविंद केजरीवाल विपक्ष के सबसे मजबूत चेहरा होंगे।'
दिल्ली के लिहाज से देखें तो 'इस चुनाव के बाद कानून व्यवस्था को छोड़ दिया जाए तो अब दिल्ली पूरी तरह से आम आदमी पार्टी के हवाले है। 2024 में इसका असर जरुर देखने को मिलेगा ये तो तय है । अब आम आदमी पार्टी को बीजेपी पर आरोप लगाने का कोई अवसर नहीं मिलेगा। अब केजरीवाल एण्ड पार्टी को उन मुद्दों पर काम करना होगा, जो चुनाव के दौरान लगातार अरविंद केजरीवाल उठाते रहे हैं। अगर आम आदमी पार्टी ऐसा नहीं कर पाती है तो 2024 के विधानसभा चुनाव और फिर लोकसभा चुनाव में बाजी पलट सकती है जिसका फायदा उठाने में बीजेपी नहीं चुकेगी।
गुजरात, हिमाचल और निगम में बदलाव के साथ MCD चुनाव, क्या काम आएगा BJP का ये दांव?
Delhi MCD Elections: क्या गुजरात और हिमाचल के साथ दिल्ली पर ध्यान दे पाएंगे केजरीवाल?
दिल्ली MCD चुनाव की घोषणा हो चुकी है. यह पहला मौका है, जब MCD के चुनावों ने इतने बड़े स्तर पर देशभर का ध्यान अपनी ओर खींचा है. वजह है, इसमें शामिल तीन प्रमुख दलों की भूमिका और तीनों पर राष्ट्रीय वोटर्स की निगाहें. तीन टुकड़ों में बंटी MCD का विलय हो गया है और अब उसे एक कर दिया गया है. लेकिन, समझने की एमएसीडी क्या है? जरूरत ये है कि गुजरात और हिमाचल विधानसभा चुनावों के साथ ही MCD का चुनाव क्या संदेश दे रहे हैं?
चुनाव आयोग ने दिल्ली में 4 दिसंबर को एमसीडी चुनाव कराने का फैसला किया है. 7 दिसंबर को वोटों की गिनती होगी, उसी दिन नतीजों की घोषणा होगी. नामांकन की आखिरी तारीख 14 नवंबर है और नामांकन वापस 19 नवंबर तक लिए जा सकते हैं.
दिल्ली MCD चुनाव के तारीखों के मायने क्या हैं?
दरअसल, दिल्ली MCD के चुनावों की घोषणा ऐसे समय में हो रही है, जब गुजरात और हिमाचल प्रदेश में विधानसभा के चुनाव हो रहे हैं. MCD में पिछले 15 साल से बीजेपी का कब्जा है. इस कब्जे को AAP से चुनौती मिल रही है.
द क्विंट के राजनीतिक संपादक आदित्य मेनन बताते हैं कि चुनाव कराने का निर्णय तो चुनाव आयोग का है, लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं है कि ये ऐसे समय में चुनाव कराया जा रहा है, जिसमें बीजेपी को ज्यादा फायदा होने की उम्मीद है और AAP की मुश्किलें ज्यादा बढ़ेंगी. क्योंकि, AAP ने गुजरात और हिमाचल के चुनाव में अपने मेन पावर को झोंक दिया है. AAP हमेशा से चाहती रही है कि MCD में उसकी सरकार हो. क्योंकि, इसकी वजह से बहुत सारे काम हैं, जो वो नहीं कर पाती है.
मेनन बताते हैं कि AAP एक नई पार्टी है. ऐसे में काडर और संसाधनों के हिसाब से भी बीजेपी के सामने कहीं नहीं टिकती है. ऐसे समय में उसे तीन मोर्चों पर चुनाव लड़ना पड़ रहा. इसमें कोई दो राय नहीं है कि अगर पंजाब चुनाव के 2 महीने बाद चुनाव होते तो AAP को ज्यादा फायदा होता. लेकिन, तीनों एमसीडी के विलय की वजह बताते हुए चुनाव को टाल दिया गया.
मेनन बताते हैं कि साल 2017 में भी AAP के साथ ऐसा ही हुआ था. 2017 में पंजाब और गोवा के चुनावों में हार के बाद ही MCD चुनावों की घोषणा हो गई थी. ऐसे में AAP के नेताओं और कार्यकर्ताओं के पास ना आत्मविश्वास था और ना ही ऊर्जा जिससे वो MCD का चुनाव हार गए.
MCD में बदलाव के बाद चुनाव का मतलब
दिल्ली नगर निगम पहले तीन हिस्सों (पूर्वी नगर निगम, उत्तरी नगर निगम और दक्षिणी नगर निगम) में बंटी होती थी. लेकिन, इस साल के शुरुआत में तीनों नगर निगमों का विलय कर एक निगम कर दिया गया था. जिसकी वजह से अप्रैल में चुनाव स्थगित करने पड़े थे. मतलब अब दिल्ली में तीन की जगह केवल एक मेयर होगा. पहले के मुकाबले इनकी शक्तियां ज्यादा होंगी. अब एक ही मेयर पूरे दिल्ली की जिम्मेदारी संभालेगा. यही नहीं, परिसीमन के साथ-साथ वार्डों की संख्या भी कम कर दी गई. पहले उत्तरी और दक्षिणी दिल्ली में 104-104 पार्षद की सीटें थीं, जबकि पूर्वी दिल्ली में 64 सीटें हुआ करती थीं. इस तरह से पहले नगर निगम की कुल 272 सीटें थीं, जो अब घटकर 250 रह गईं हैं.
नए परिसीमन के चलते कई वार्ड के दायरों में बदलाव हुए हैं. कई वार्डों का क्षेत्र बढ़ गया है, जबकि कई के घट गए हैं. इसी तरह मतदाताओं की संख्या में भी बदलाव हुआ है. कई वार्ड में मतदाताओं की संख्या घटी है, जबकि कई में बढ़ गई है. वार्ड के संख्या में भी बदलाव किया गया है.
2017 के चुनावों में, बीजेपी ने उत्तरी दिल्ली में 104 सीटों में से 64, दक्षिण दिल्ली में 104 में से 70 और पूर्व में 64 में से 47 सीटें जीतीं थीं. वहीं, AAP के पास 21, 16 और 12 सीटें थीं. कांग्रेस के पास 16, 12 और 3 सीटें थीं. कुल मिलाकर, बीजेपी ने 181, AAP ने 49 और कांग्रेस ने 31 सीटों पर कब्जा किया था.
MCD को एक करने के पीछे की राजनीति
MCD को तीन भागों में बांटने की पीछे दलील दी गई थी कि इतनी बड़ी दिल्ली को एक निगम से चलाना मुश्किल है. हर इलाके की अलग जरूरतें हैं इसलिए वहां अलग हिसाब से योजना बनानी पड़ेगी. ताज्जुब की बात ये है कि जब निगमों को एक किया गया तो दलील दी गई कि अलग-अलग निगमों के होने से दिल्ली के विकास में बाधा उत्पन्न हो रही है. दलील दी गई ईस्ट दिल्ली नगर पालिक गरीब है जबकि साउथ दिल्ली नगर पालिका अमीर है. ऐसे में पहले से विकसित साउथ दिल्ली में और विकास की गुंजाइश बनती है लेकिन पिछड़े पूर्वी दिल्ली में विकास की राह में वित्तीय संकट आ रहा है.
लेकिन जानकार एमसीडी को तोड़ने और जोड़ने के पीछे वोट की राजनीति देखते हैं. कांग्रेस ने इसे तोड़ा बीजेपी ने इसे जोड़ा. दोनों की मंशा एमसीडी पर काबिज होना ही बताया जाता है.
क्यों अहम हैं MCD चुनाव?
दिल्ली MCD का चुनाव पार्टियों के बीच सेमीफाइनल का मुकाबला माना जाता है. क्योंकि, इसके बाद पार्टियां लोकसभा के चुनाव में जाती हैं फिर विधानसभा का चुनाव होता.
एमसीडी के पास कई तरह के अधिकार होते हैं. इसके जरिए राज्य में अस्पताल, डिस्पेंसरीज, पानी की सप्लाई, ड्रेनेज सिस्टम की देखभाल, बाजारों की देखरेख करना, पार्कों का निर्माण करना और उसकी देखभाल का प्रबंध करना. सड़क और ओवर ब्रिज का निर्माण और मेंटेनेंस करना. कचरे के निस्तारण का प्रबंध करना. स्ट्रीट लाइट, प्राइमरी स्कूल, प्रॉपर्टी और प्रोफेशनल टैक्स कलेक्शन, टोल टैक्स कलेक्शन सिस्टम, शमशान और जन्म और मृत्यु प्रमाणपत्र जैसे बेहद अहम काम एमसीडी के जरिए किए जाते हैं.
अधिकतम अंक: 5
न्यूनतम अंक: 1
मतदाताओं की संख्या: 127