इस प्रकार की स्थिति 2013 में भी उत्पन्न हुई थी, जिसे टेपर टैंट्रम का नाम दिया गया था। उस समय भी अमेरिका में ब्याज दरें अधिक हो गई थीं, तब विदेशी निवेशकों ने अपना पैसा भारत से निकाल कर अमेरिका में निवेश करना शुरू कर दिया था। आरबीआइ उस इतिहास को दोहराने से बचने का प्रयास कर रहा है। उस समय डालर के मुकाबले रुपया 15 प्रतिशत कमजोर हो गया था, जबकि जनवरी 2022 से अब तक डालर के मुकाबले रुपया केवल विदेशी मुद्रा बाजार के इतिहास 9.5 प्रतिशत ही कमजोर हुआ है। इसके साथ ही अन्य विदेशी मुद्राओं की तुलना में भारतीय रुपया बेहतर कर रहा है। ऐसी स्थिति विदेशी मुद्रा बाजार के इतिहास में भी आरबीआइ द्वारा रेपो रेट में वृद्धि करना जायज है। इससे मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने एवं वैश्विक आर्थिक स्थितियों से निपटने के लिए रुपये को स्थिर बनाने में भी मदद मिल रही है।

इस शोध ने संस्कृत को एक वैज्ञानिक भाषा के रूप में चर्चा के केंद्र में पुनः ला खड़ा किया है

महंगाई को नियंत्रित रखने की चुनौती, कठोरता के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था में विकास की गति मजबूत

कठोर मौद्रिक नीति के अंतर्गत रेपो रेट बढ़ाने की अपनी सीमाएं और चुनौतियां विदेशी मुद्रा बाजार के इतिहास भी हैं। रेपो रेट के नकारात्मक प्रभावों के कारण आर्थिक गतिविधियां कम होने से आर्थिक विकास पर विदेशी मुद्रा बाजार के इतिहास ऋणात्मक प्रभाव पड़ने लगता विदेशी मुद्रा बाजार के इतिहास है जिससे निम्न आय वर्गों के लोगों के लिए सामाजिक सुरक्षा एक आवश्यकता बन जाती है।

डा. सुरजीत सिंह: मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए हाल में आरबीआइ को आशानुरूप रेपो रेट में 35 आधार अंकों की वृद्धि करनी पड़ी। कोरोना विदेशी मुद्रा बाजार के इतिहास के बाद की परिस्थितियों से निपटने के लिए अब तक पांचवीं बार रेपो रेट विदेशी मुद्रा बाजार के इतिहास में वृद्धि की गई है। अप्रैल 2022 में यह चार प्रतिशत था, जो अब बढ़कर 6.25 प्रतिशत हो गया है। रिजर्व बैंक के प्रयासों का ही परिणाम है कि महंगाई की दर नवंबर में घटकर दस माह के निचले स्तर 5.88 प्रतिशत रह गई, जबकि अक्टूबर में यह 6.77 प्रतिशत थी। आरबीआइ की तरफ से महंगाई की अधिकतम सीमा छह प्रतिशत तय की गई है। महंगाई पर नियंत्रण इसलिए भी विदेशी मुद्रा बाजार के इतिहास आवश्यक है कि विदेशी मुद्रा बाजार के इतिहास मुद्रास्फीति की दर ब्याज दर से अधिक होने से वास्तविक ब्याज दरें ऋणात्मक होने विदेशी मुद्रा बाजार के इतिहास लगती हैं जिससे मुद्रा की क्रय शक्ति भी कम होने लगती है।

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