मुद्रा का प्रसार एवं मापन

मुद्रा का प्रसार एवं मापन :- किसी भी समय अर्थव्यवस्था में कुल मुद्रा को मापने के लिए केन्द्रीय बैंक कुछ मापक का प्रयोग करते हैं। विदेशी मुद्रा बाजार पर तरलता के प्रभाव क्या हैं भारत के संदर्भ में रिजर्व बैंक द्वारा 1977 में एक वर्क फोर्स का गठन किया गया, जिसके द्वारा बाजार में किसी समय पर कितनी मुद्रा उपलब्ध है, मापने के लिए 4 मापक तय किये गए जिन्हें M1, M2, M3 एवं M4 नाम से जाना जाता है। मुद्रा के मापन को समझने से पहले अर्थव्यवस्था में तरलता शब्द को समझना आवश्यक है।

अर्थव्यवस्था में तरलता (Liquidity) – अर्थव्यवस्था में तरलता दो प्रकार से हो सकती है –

1. बाजार की तरलता – किसी भी समय अर्थव्यवस्था में उपलब्ध मुद्रा की कुल मात्रा को तरलता कहा जाता है। यदि तरलता अधिक है तो मुद्रास्फीति की स्थित उत्पन्न हो सकती हैं जबकि तरलता कम होने की स्थिति में अपस्फीति या मंदी आ सकती है।

2. मुद्रा की तरलता – मुद्रा की तरलता से संदर्भ मुद्रा के व्यय होने में लगने वाले समय से है। यदि समय कम लग रहा है तो वह मुद्रा अधिक तरल है। उदाहरण के लिए यदि एक व्यक्ति के पास नगद, क्रेडिट कार्ड एवं सोने के रूप में परिसंपत्तियां (मुद्रा) उपलब्ध हैं तो नगद सबसे अधिक तरल (क्योंकि नगद सबसे जल्दी और आसानी से खर्ची जा सकती विदेशी मुद्रा बाजार पर तरलता के प्रभाव क्या हैं है), क्रेडिट कार्ड कुछ कम तरल और सोने की तरलता सबसे कम मानी जाएगी।

मुद्रा का मापन

1. M1= CU (Coins and Currency) + DD (Demand and Deposit)

CU अर्थात लोगों के पास उपलब्ध नगद (नोट एवं सिक्के), DD अर्थात व्यावसायिक बैंकों के पास कुल निवल जमा एवं रिजर्व बैंक के पास अन्य जमाये। निवल शब्द से बैंक के द्वारा रखी गयी लोगों की जमा का ही बोध होता है और इसलिए यह मुद्रा की पूर्ति में शामिल हैं। अंतर बैंक जमा, जो एक व्यावसायिक बैंक दूसरे व्यावसायिक बैंक में रखते हैं, को मुद्रा की पूर्ति के भाग के रूप में नहीं जाना जाता है।

2. M2= M1 + डाकघर बचत बैंकों की बचत जमांए

3. M3= M1 + बैंक की सावधि जमाये(FD)

4. M4= M3 विदेशी मुद्रा बाजार पर तरलता के प्रभाव क्या हैं + डाकघर बचत संस्थाओं में कुल जमा राशि (राष्ट्रीय बचत प्रमाण पत्रों को छोड़कर)

M1 से M4 की तरफ जाने पर मुद्रा की तरलता घटती है, परन्तु बाजार की तरलता बढ़ती जाती है।

M1>M2>M3>M4

संकुचित मुद्रा (Narrow Money)= M1 को संकुचित मुद्रा भी कहते है क्योंकि मात्रा में ये अन्य सभी से सबसे कम होती है, अर्थात इसमें पैसा सबसे कम होता है।

वृहद/बड़ी मुद्रा (Broad Money)= M3 को वृहद मुद्रा कहते है। सामान्यतः वृहद मुद्रा M4 को होना चाहिए परन्तु M1 से M4 तक जाते जाते उसे प्रयोग करना कठिन हो जाता है। इसे ऐसे भी कह सकते हैं कि उसकी (M4) की तरलता इतनी कम है कि उसे प्रयोग नहीं किया जा सकता अतः M3 को ही वृहद मुद्रा कहा जाता है।

मुद्रा के प्रकार- मुद्रा को कई आधारों पर कई वर्गों में बाँटा जा सकता है। यहां पर हम मुद्रा की भौतिक स्थिति एवं मांग के आधार पर मुद्रा का वर्गीकरण बता रहें हैं-

  1. धात्विक – इसमें सभी सिक्के आते हैं।
  2. कागजी – सभी नोट आते हैं।
  3. प्लास्टिक – क्रेडिट एवं डेबिट कार्ड आते हैं।
  4. बुरी मुद्रा – इसमें सभी कटे फटे नोट आते हैं।
  5. अच्छी मुद्रा – इसके अंतर्गत नये नोट आते हैं।
    अच्छी और बुरी मुद्रा के सम्बन्ध में अर्थशास्त्री ग्रेसम्स ने एक नियम बताया था। जिसे ग्रेसम्स के नियम के नाम से जाना जाता है।
    ग्रेसम्स का नियम- किसी भी अर्थव्यवस्था में बुरी मुद्रा अच्छी मुद्रा को चलन से बाहर निकाल देती है तथा उसका स्थान ले लेती है। उदाहरण के लिए यदि किसी व्यक्ति के पास पुरानी कटी-फटी मुद्रा (बुरी मुद्रा) है तो वह उसे ही पहले प्रयोग में लाने का प्रयास करेगा न की नई मुद्रा (अच्छी मुद्रा) को, इस प्रकार बुरी मुद्रा, अच्छी मुद्रा को चलन से बाहर कर देती है।
  6. गर्म मुद्रा – जिस मुद्रा की अंतर्राष्ट्रीय बाजार में मांग अधिक हो उसे गर्म मुद्रा कहा जाता है। उदाहरण के लिए डॉलर।
  7. ठण्डी मुद्रा – जिस मुद्रा की अंतर्राष्ट्रीय बाजार में मांग कम हो उसे ठण्डी मुद्रा कहा जाता है।

विदेशी मुद्रा

हर देश की मुद्रा का अलग मूल्य होता है जोकि उस देश के अंतर्राष्ट्रीय बाजार में उसके उत्पादन हिस्से के आधार पर तय होता है। सामान्य भाषा में जब किसी देश की मुद्रा का हिस्सा अंतर्राष्ट्रीय बाजार में अधिक होगा तो उसका मूल्य भी अधिक होगा जैसे अमेरिका जिसकी अंतर्राष्ट्रीय बाजार में 20% हिस्सेदारी है, जबकि भारत की कुल 2% है।

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा का मूल्य निर्धारण

1. बाजार द्वारा मुद्रा का मूल्य निर्धारण – अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में किसी देश की मुद्रा की मांग के आधार पर उसके मूल्य का निर्धारण किया जाता है। इसे प्रवाही विनिमय दर(Floating exchange rate) कहते हैं। प्रवाही इसलिए क्योंकि यह दर कम ज्यादा होते रहती है। किसी भी देश की मुद्रा का मूल्य निरपेक्ष(अकेले) नहीं होता वो हमेशा दूसरी मुद्रा के सापेक्ष होता है, अर्थात एक देश की मुद्रा की दूसरे देश के मुद्रा के साथ तुलना की जाती है इसे विनिमय दर(Exchange rate) कहते हैं। जैसे 1$=74रू0

2. सरकार द्वारा मुद्रा का मूल्य निर्धारण – कभी-कभी सरकारें भी जानबूझकर अपने देश की मुद्रा का मूल्य कम या ज्यादा कर देती है। ऐसा उस देश की आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखकर किया जाता है –

विदेशी मुद्रा भंडार का उच्चतम स्तर: कारण और महत्त्व

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा 4 सितंबर को जारी आँकड़ों के अनुसार, सप्ताह के अंत में भारत का विदेशी मुद्रा (फॉरेक्स) का भंडार $ 3.883 बिलियन बढ़ कर $ 541.431 बिलियन के उच्चतम स्तर पर पहुँच गया। 5 जून, 2020 को समाप्त सप्ताह में पहली बार भारत का विदेशी मुद्रा भंडार $ 500 बिलियन को पार कर गया।

प्रमुख बिंदु:

विदेशी मुद्रा (फोरेक्स) भंडार-

अर्थव्यवस्था में स्लोडाउन के बावजूद विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि के कारण-

  • विदेशीमुद्राभंडारमेंवृद्धिकाप्रमुखकारण भारतीय स्टॉक बाज़ार में विदेशी पोर्टफोलियो निवेश और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) में वृद्धि है। विदेशी निवेशकों ने पिछले कई महीनों में कई भारतीय कंपनियों में हिस्सेदारी हासिल की है।
  • मार्च महीने में ऋण और इक्विटी के प्रत्येक खण्डों में से 60000 करोड़ रूपए निकालने के पश्चात् इस वित्त वर्ष में अर्थव्यवस्थामेंकायापलटकीउम्मीदसेविदेशीपोर्टफोलियोनिवेशकोंनेभारतीयबाज़ारोंमेंवापसीकी है।
  • कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट आने के कारण तेल के आयात बिल में कमी आने से विदेशी मुद्रा की बचत हुई है। इसी तरह विदेशी प्रेषण और विदेश यात्राएँ बहुत कम हो गई हैं।
  • वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा 20 सितंबर, 2019 को कॉर्पोरेट कर की दरों में कटौती की घोषणा के साथ ही फोरेक्स रिज़र्व में वृद्धि होना शुरू हो गया था।
  • सोनेकीबढ़तीकीमतोंनेकेंद्रीयबैंककोसमग्रविदेशीमुद्राभंडारबढ़ानेमेंमददकी है।

महत्त्व-

  • विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि से सरकार और भारतीय रिज़र्व बैंक को देश के बाह्य और आंतरिक वित्तीय मुद्दों के प्रबंधन में बहुत आसानी होती है।
  • यह आर्थिक मोर्चे पर किसी भी संकट की स्थिति में एक वर्ष के लिये देश के आयात बिल को कवर करने के लिये पर्याप्त है।
  • बढ़ते विदेशी मुद्रा भंडार ने डॉलर के मुकाबले रूपए को मज़बूत करने में मदद की है। सकलघरेलूउत्पाद(GDP)केअनुपातमेंविदेशीमुद्राभंडारलगभग15प्रतिशतहै।
  • यह सरकार को अपनी विदेशी मुद्रा विदेशी मुद्रा बाजार पर तरलता के प्रभाव क्या हैं आवश्यकताओं और बाहरी ऋण दायित्त्वों को पूरा करने में मदद कर सकने के साथ ही राष्ट्रीय आपदाओं या आपात स्थितियों के लिये एक रिज़र्व बनाए रखने के लिये महत्त्वपूर्ण है।

आगे की राह-

  • निवेश प्रतिबंधों को कम करके FDI को और अधिक उदार बनाया जाना चाहिये। चालू खाते में और अधिक उदारीकरण किया जा सकता है।
  • बुनियादी ढाँचे की परियोजनाओं के वित्तपोषण के लिए धन का उपयोग किया जा सकता है, जिससे अधिक रिटर्न प्राप्त किया जा सके।
  • सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के पुनर्पूंजीकरण, विदेशी वित्तीय बाज़ारों में निवेश या महंगे बाह्य ऋण के पुनर्भुगतान के लिये भी इसका उपयोग किया जा सकता है

वित्त आयोग द्वारा राजकोषीय घाटे का दायरा निर्धारण के लिये सिफारिश

G.S. Paper-III (Economy)

चर्चा में क्यों?

वित्त आयोग के सलाहकार पैनल के कई सदस्यों ने COVID-19 महामारी के कारण वैश्विक अनिश्चितताओं में वृद्धि को देखते हुए केंद्र और राज्यों के राजकोषीय घाटे का एक सीधा लक्ष्य रखने के बजाय एक सीमा (Range) निर्धारण पर विचार करने का सुझाव दिया है।

Transforming India: दुनिया का चौथा सबसे बड़ा विदेशी मुद्रा भंडार भारत के पास

देश में विदेशी मुद्रा भंडार लगातार बढ़ रहा है। यह देश की अर्थव्यवस्था की मजबूती को दर्शाने वाले कई मानकों में से एक है। दुनिया में चीन, जापान और स्विट्जरलैंड के बाद चौथा सबसे बड़ा विदेशी मुद्रा भंडार आज भारत के पास है।

करीब 634 अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार

साल 2018-19 में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 411.9 बिलियन डॉलर का रहा था जिसके बाद यह 2019-20 में करीब 478 अरब डॉलर का हुआ। तत्पश्चात 2020-21 में भी विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि दर्ज की गई। यह 577 बिलियन डॉलर पर जा पहुंचा और फिर 31 दिसंबर 2021 तक यह करीब 634 अरब डॉलर तक जा पहुंचा। यानि 2021-22 की पहली छमाही में विदेशी मुद्रा भंडार 600 बिलियन डॉलर के आंकड़े से ऊपर निकल कर 633.6 बिलियन डॉलर के उच्च स्तर पर पहुंच गया था।

32.6 प्रतिशत की वृद्धि

इस अवधि में भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में करीब 32.6 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। इसी आधार पर नवंबर 2021 तक चीन, जापान और स्विट्जरलैंड के बाद भारत का विदेशी मुद्रा भंडार दुनिया में सबसे ज्यादा रहा। यह भारत की गौरवशाली उपलब्धि है जिस पर हर भारतीय को गर्व महसूस विदेशी मुद्रा बाजार पर तरलता के प्रभाव क्या हैं करना चाहिए। आज भारत मजबूत स्थिति में खड़ा है जिसमें पूरे देश का समग्र विकास होता दिखाई दे रहा है।

भारत के विदेशी व्यापार में मजबूती से बड़ा विदेशी मुद्रा भंडार

दरअसल, वर्ष 2021-22 में भारत के विदेशी व्यापार में मजबूती से सुधार हुआ जिसके परिणामस्वरूप भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में भी वृद्धि दर्ज हुई। देश के विदेशी व्यापार के बढ़ने से भारत को विदेशी मुद्रा कमाने का सुनहरा अवसर मिला। सबसे खास बात यह रही कि ये उपलब्धि भारत ने कोविड संकट से लड़ते हुए हासिल की। यानि जब दुनिया के तमाम देश इस महामारी से जूझ रहे थे तब भारत ने स्वयं के प्रयासों से देश की आवाम को विदेशी व्यापार में वृद्धि दर्ज करने को प्रोत्साहित किया। उसी का नतीजा रहा है कि आज भारत कोविड संकट में छाई वैश्विक मंदी से तेजी से उभर रहा है। भारत 2021-22 के लिए निर्धारित 400 बिलियन अमेरिकी डॉलर के महत्वाकांक्षी वस्तु निर्यात लक्ष्य को हासिल करने के मार्ग पर बेहतर तरह से अग्रसर रहा और इस लक्ष्य को हासिल कर दिखाया। 2021-22 में 400 बिलियन डॉलर के एक्सपोर्ट में भारत ने नॉन बासमती राइस, गेहूं, समुद्री उत्पाद, मसाले और चीनी जैसी चीजों ने जमकर एक्सपोर्ट किया। उसके बाद पेट्रोलियम प्रोडक्ट यूएई निर्यात किए गए। साथ ही अन्य देशों में रत्न और आभूषणों का भी ज्यादा निर्यात किया गया। केवल इनता ही नहीं भारत ने इस बीच बांग्लादेश को ऑर्गेनिक और नॉन ऑर्गेनिक केमिकल निर्यात किया और ड्रग्स और फार्मास्युटिकल्स का सबसे ज्यादा निर्यात नीदरलैंड को किया। विदेशी मुद्रा बाजार पर तरलता के प्रभाव क्या हैं इससे देश के विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि में काफी मदद मिली। विदेशी मुद्रा भंडार के बढ़ने से अर्थव्यवस्था को बहुत से फायदे होते हैं।

रुपए को मिलती है मजबूती

रिजर्व बैंक के लिए विदेशी मुद्रा भंडार काफी अहम होता है। आरबीआई जब मॉनिटरी पॉलिसी तय करता है तो उसके लिए यह काफी अहम फैक्टर साबित होता है कि उसके पास विदेशी मुद्रा भंडार कितना है। यानि जब आरबीआई के खजाने में डॉलर भरा होता है तो देश की करेंसी को मजबूती मिलती है।

आयात के लिए डॉलर रिजर्व जरूरी

जब भी हम विदेश से कोई सामान खरीदते हैं तो ट्रांजेक्शन डॉलर में होती है। ऐसे में इंपोर्ट को मदद के लिए विदेशी मुद्रा भंडार का होना जरूरी है। अगर विदेश से आने वाले निवेश में अचानक कभी कमी आती है तो उस समय इसकी महत्ता और ज्यादा बढ़ जाती है। भारत बड़े पैमाने पर आयात करता रहा है लेकिन बीते कुछ साल में पीएम मोदी के नेतृत्व विदेशी मुद्रा बाजार पर तरलता के प्रभाव क्या हैं विदेशी मुद्रा बाजार पर तरलता के प्रभाव क्या हैं में देश ने अपने आयात स्तर को कम करके निर्यात स्तर को बढ़ाया है। पीएम मोदी के ‘आत्मनिर्भर भारत’ के दिखाए रास्ते पर देश अब चल पड़ा है तभी तो विदेशी मुद्रा बाजार पर तरलता के प्रभाव क्या हैं आज भारत का विदेशी मुद्रा भंडार लगातार बढ़ रहा है।

FDI में तेजी के मिलते हैं संकेत

अगर विदेशी मुद्रा भंडार में तेजी आती है तो इसका मतलब होता है कि देश में बड़े पैमाने पर एफडीआई आ रहा है। ऐसे में अर्थव्यवस्था के लिए विदेशी निवेश बहुत अहम होता है। अगर विदेशी निवेशक भारतीय बाजार में पैसा लगाते रहे हैं तो दुनिया के लिए यह संकेत जाता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था पर उनका भरोसा बढ़ रहा है। भारत सरकार ने इसके लिए भी देश में बीते कुछ साल में बेहतर माहौल तैयार किया है। केंद्र सरकार ने देश में ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ का माहौल प्रदान किया। ईज ऑफ डूइंग बिजनेस एक तरह का इंडेक्‍स है। इसमें कारोबार सुगमता के लिए कई तरह के पैमाने रखे गए हैं। इनमें लेबर रेगुलेशन, ऑनलाइन सिंगल विंडो, सूचनाओं तक पहुंच, पारदर्शिता इत्यादि शामिल हैं। देश में इसे उद्योग एवं आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग (डीपीआईआईटी) तैयार करता है। आज विदेशी मुद्रा बाजार पर तरलता के प्रभाव क्या हैं भारत इस लिहाज से भी काफी सुधार कर चुका है। यही कारण है कि विदेशी निवेशक अब भारत में निवेश को तैयार खड़े हैं।

विदेशी ऋण

सितम्बर, 2021 के अंत में भारत का विदेशी ऋण 593.1 बिलियन डॉलर था जो जून, 2021 के अंत के स्तर पर 3.9 प्रतिशत से अधिक था। आर्थिक समीक्षा में मार्च, 2021 के अंत में भारत के विदेशी ऋण ने पूर्व-संकट स्तर को पार कर लिया था लेकिन यह सितम्बर, 2021 के अंत में एनआरआई जमाराशियों से पुनरुत्थान की मदद और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा वन-ऑफ अतिरिक्त एसडीआर आवंटन की मदद से दृढ़ हो गया। कुल विदेशी ऋण में लघु अवधि ऋण की हिस्सेदारी में थोड़ी सी गिरावट जरूर आई। यह हिस्सेदारी जो मार्च, 2021 के अंत में विदेशी मुद्रा बाजार पर तरलता के प्रभाव क्या हैं 17.7 प्रतिशत थी सितम्बर के अंत में 17 प्रतिशत हो गई। समीक्षा यह दर्शाती है कि मध्यम अवधि परिप्रेक्ष्य से भारत का विदेशी ऋण उभरती हुई बाजार अर्थव्यवस्था के लिए आंके गए इष्टतम ऋण से लगातार कम चल रहा है।

भारत की लचीलापन

आर्थिक समीक्षा यह दर्शाती है कि विदेशी मुद्रा भंडार में भारी बढ़ोतरी से विदेशी मुद्रा भंडारों से कुल विदेशी ऋण, लघु अवधि ऋण से विदेशी विनिमय भंडार जैसे बाह्य संवेदी सूचकांकों में सुधार को बढ़ावा मिला है। बढ़ते हुए मुद्रा स्फीति दबावों की प्रतिक्रिया में फेड सहित प्रणालीगत रूप से महत्वपूर्ण केंद्रीय बैंकों द्वारा मौद्रिक नीति के तेजी से सामान्यीकरण की संभावना से पैदा हुई वैश्विक तरलता की संभावना का सामना करने के लिए भारत का बाह्य क्षेत्र लचीला है।

RBI Monetary Policy 2021: भरा देश का खजाना: 600 अरब डॉलर के पार विदेशी मुद्रा भंडार! जानिए कैसे होगा फायदा

विदेशी मुद्रा भंडार देश के केंद्रीय बैंकों द्वारा रखी गई धनराशि या अन्य परिसंपत्तियां विदेशी मुद्रा बाजार पर तरलता के प्रभाव क्या हैं होती हैं, जिनका उपयोग जरूरत पड़ने पर देनदारियों का भुगतान करने में किया जाता है।

प्रतीकात्मक तस्वीर

भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने शुक्रवार को कहा कि देश का विदेशी मुद्रा भंडार संभवत: 600 अरब डॉलर के रिकॉर्ड स्तर को पार कर गया है। हाल में विदेशी पूंजी प्रवाह काफी तेजी से बढ़ा है जिससे विदेशी मुद्रा भंडार का आंकड़ा ऊपर जा रहा है। इसको लेकर आधिकारिक आंकड़े बाद में जारी होंगे।

रिजर्व बैंक की ओर से 28 मई को जारी आंकड़ों के अनुसार, 21 मई को समाप्त सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार 2.865 अरब डॉलर बढ़कर 592.894 अरब डॉलर पर पहुंच गया। स्वर्ण भंडार और विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियां बढ़ने से मुद्रा भंडार बढ़ा है। दास ने कहा कि मौजूदा अनुमान के आधार पर हमारा मानना है कि विदेशी मुद्रा भंडार संभवत: 600 अरब डॉलर के आंकड़े को पार कर गया है।

अर्थव्यवस्था में तरलता को प्रोत्साहन के लिए केंद्रीय बैंक ने कई कदमों की घोषणा की है। इनमें कोविड-19 महामारी से प्रभावित विभिन्न क्षेत्रों के लिए विशेष नकदी सुविधा शामिल है।

आइए जानते हैं विदेशी मुद्रा भंडार क्या है और इससे देश को कैसे फायदा होता है।

क्या है विदेशी मुद्रा भंडार?
विदेशी मुद्रा भंडार देश के केंद्रीय बैंकों द्वारा रखी गई धनराशि या अन्य परिसंपत्तियां होती हैं, जिनका उपयोग जरूरत पड़ने पर देनदारियों का भुगतान करने में किया जाता है। पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार एक स्वस्थ अर्थव्यवस्था के लिए काफी महत्वपूर्ण होता है। यह आयात को समर्थन देने के लिए आर्थिक संकट की स्थिति में अर्थव्यवस्था को बहुत आवश्यक मदद उपलब्ध कराता है। इसमें आईएमएफ में विदेशी मुद्रा असेट्स, स्वर्ण भंडार और अन्य रिजर्व शामिल होते हैं, जिनमें से विदेशी मुद्रा असेट्स सोने के बाद सबसे बड़ा हिस्सा रखते हैं।

विदेशी मुद्रा भंडार के चार बड़े फायदे

  • साल 1991 में देश को पैसा जुटाने के लिए सोना गिरवी रखना पड़ा था। तब सिर्फ 40 करोड़ डॉलर के लिए भारत को 47 टन सोना इंग्लैंड के पास गिरवी रखना पड़ा था। लेकिन मौजूदा स्तर पर, भारत के पास एक वर्ष से अधिक के आयात को कवर करने के लिए पर्याप्त मुद्रा भंडार है। यानी इससे एक साल से अधिक के आयात खर्च की पूर्ति सरलता से की जा सकती है, जो इसका सबसे बड़ा फायदा है।
  • अच्छा विदेशी मुद्रा आरक्षित रखने वाला देश विदेशी व्यापार का अच्छा हिस्सा आकर्षित करता है और व्यापारिक साझेदारों का विश्वास अर्जित करता है। इससे वैश्विक निवेशक देश में और अधिक निवेश के लिए प्रोत्साहित हो सकते हैं।
  • सरकार जरूरी सैन्य सामान की तत्काल खरीदी का निर्णय बी ले सकती है क्योंकि भुगतान के लिए पर्याप्त विदेशी मुद्रा उपलब्ध है।
  • इसके अतिरिक्त विदेशी मुद्रा बाजार में अस्थिरता को कम करने के लिए विदेशी मुद्रा भंडार प्रभावी भूमिका निभा सकता है।

विस्तार

भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने शुक्रवार को कहा कि देश का विदेशी मुद्रा भंडार संभवत: 600 अरब डॉलर के रिकॉर्ड स्तर को पार कर गया है। हाल में विदेशी पूंजी प्रवाह काफी तेजी से बढ़ा है जिससे विदेशी मुद्रा भंडार का आंकड़ा ऊपर जा रहा है। इसको लेकर आधिकारिक आंकड़े बाद में जारी होंगे।

रिजर्व बैंक की ओर से 28 मई को जारी आंकड़ों के अनुसार, 21 मई को समाप्त सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार 2.865 अरब डॉलर बढ़कर 592.894 अरब डॉलर पर पहुंच गया। स्वर्ण भंडार और विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियां बढ़ने से मुद्रा भंडार बढ़ा है। दास ने कहा कि मौजूदा अनुमान के आधार पर हमारा मानना है कि विदेशी मुद्रा भंडार संभवत: 600 अरब डॉलर के आंकड़े को पार कर गया है।

अर्थव्यवस्था में तरलता को प्रोत्साहन के लिए केंद्रीय बैंक ने कई कदमों की घोषणा की है। इनमें कोविड-19 महामारी से प्रभावित विभिन्न क्षेत्रों के लिए विशेष नकदी सुविधा शामिल है।

आइए जानते हैं विदेशी मुद्रा भंडार क्या है और इससे देश को कैसे फायदा होता है।

क्या है विदेशी मुद्रा भंडार?
विदेशी मुद्रा भंडार देश के केंद्रीय बैंकों द्वारा रखी गई धनराशि या अन्य परिसंपत्तियां होती हैं, जिनका उपयोग जरूरत पड़ने पर देनदारियों का भुगतान करने में किया जाता है। पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार एक स्वस्थ अर्थव्यवस्था के लिए काफी महत्वपूर्ण होता है। यह आयात को समर्थन देने के लिए आर्थिक संकट की स्थिति में अर्थव्यवस्था को बहुत आवश्यक मदद उपलब्ध कराता है। इसमें आईएमएफ में विदेशी मुद्रा असेट्स, स्वर्ण भंडार और अन्य रिजर्व शामिल होते हैं, जिनमें से विदेशी मुद्रा असेट्स सोने के बाद सबसे बड़ा हिस्सा रखते हैं।

रेटिंग: 4.28
अधिकतम अंक: 5
न्यूनतम अंक: 1
मतदाताओं की संख्या: 724