NSE or BSE which is best: शेयर बाजार में एनएसई में लगाएं पैसे या बीएसई में, जानिए दोनों में होता है क्या अंतर!

Futures Calendar Spread क्या है, जानिए कैसे इसके जरिए रिस्क कम कर कमोडिटी मार्केट में कमा सकते है मुनाफा

हम आपको एक ऐसे स्ट्रैटेजी के बारे में बताएंगे, जिसका इस्तेमाल कर रिस्क को काफी कम किया जा सकता है।

अगर आप भी कमोडिटी मार्केट में कारोबार करना चाहते हैं लेकिन ज्यादा जोखिम होने की वजह से अब तक इस मार्केट से दूरी बनाए हुए हैं तो आज हम आपको एक ऐसे स्ट्रैटेजी के बारे में बताएंगे, जिसका इस्तेमाल कर रिस्क को काफी कम किया जा सकता है। हम बात कर रहे हैं- Futures Calendar Spread स्ट्रैटेजी की। इसके जरिए ना सिर्फ आप अपने सौदे पर जोखिम कम करते हैं, बल्कि इसमें मुनाफे की गारंटी भी बढ़ जाएगी।

Futures Calendar Spread क्या है?

Futures Calendar Spread के जरिए विभिन्न एक्सपायरी वाले कॉन्ट्रैक्ट में एक साथ खरीद-बिक्री की जा सकती है। एक ही कमोडिटी के दो अलग-अलग कॉन्ट्रैक्ट खरीदें और बेचें जा सकते है। दोनों सौदे के प्राइस अंतर को Calendar Spread कहते हैं। दोनों महीने के भाव में जो अंतर होगा वही आपका प्रॉफिट होता है।

Spread स्ट्रैटेजी के फायदे

लॉन्ग या शॉर्ट टर्म के मुकाबले Volatility काफी कम होती है। कैपिटल पर कम मार्जिन के साथ बेहतर रिटर्न मिलता है। Calendar Spread में Directional Risk नहीं होता है। Spread में भाव पर सिर्फ डिमांड-सप्लाई का असर होता है। Money Flow या अन्य बाहरी प्रभाव का असर इसपर नहीं होता है।

वायदा और विकल्प के बीच अंतर

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भारत में ईक्विटीज़ से बड़ा मार्केट है ईक्विटी डेरिवेटिव मार्केट भारत में डेरिवेटिव्स में मुख्य रूप से दो प्रोडक्ट्स हैं – ऑप्शन्स औऱ फ्यूचर्स फ्यूचर्स और ऑप्शन्स के बीच अंतर है कि फ्यूचर्स लीनियर हैं जब कि ऑफ्शन्स नॉन-लीनियर हैं। डेरिवेटिव्स का अर्थ है कि इनकी खुद की कोई वैल्यू नहीं होती है लेकिन उनकी वैल्यू अंडरलाइंग ऐसेट से व्युपत्रित होती है। उदाहरण के लिए, रिलाएंस इन्डस्ट्रीज़ पर ऑप्शन्स और फ्यूचर्स रिलाएंस इन्डस्ट्रीज़ के स्टॉक के दाम पर निर्भर है और उन्हीं से उनकी वैल्यू निर्दिष्ट होती है। ऑप्शन्स और फ्यूचर्स की ट्रेडिंग भारतीय ईक्विटी मार्केट के महत्वपूर्ण भाग हैं। आइए हम ऑप्शन्स और फ्यूचर्स के बीच अंतर को समझें और जानें कि किस प्रकार इक्विटी फ्यूचर्स क्या फ्यूचर्स हाई रिस्क हैं और ऑप्शन्स मार्केट समग्र इक्विटी मार्केट के अभिन्न अंग हैं।

फ्यूचर्स और ऑप्शन्स क्या हैं?

फ्यूचर्स एक अंडर लाइंग स्टॉक (या अन्य ऐसेट) को एक पूर्वनिर्धारित मूल्य पर और पूर्वनिर्धारित अवधि के पूरे होने पर खरीदने और बेचने का अधिकार और बाध्यता है। ऑप्शन्स एक अधिकार है जिसमें ईक्विटी या इन्डेक्स खरीदने और बेचने की बाध्यता नहीं होती। एक कॉल ऑप्शन खरीदने का अधिकार होता है जबकि एक पुट ऑप्शन बेचने का अधिकार होता है।

तो, मुझे ऑप्शन्स और फ्यूचर्स से किस तरह लाभा होगा?

चलिए, पहले फ्यूचर्स पर एक नज़र डालें। मान लीजिए कि आप टाटा मोटर्स के 1500 शेयर रु. 400 के दाम पर खरीदना चाहते हैं। इसके लिए आपको रु. 6 लाख निवेश करने होंगे। वैकल्पिक रूप से, आप टाटा मोटर्स का 1 लॉट (जिसमें 1500 शेयर होते हैं) भी खरीद सकते हैं। इससे फायदा है कि जब आप फ्यूचर्स खरीदते हैं, तो आप केवल मार्जिन का भुगतान करते हैं जो कि (मान लीजिए) पूरी कीमत का लगभग 20% है। इसका मतलब है कि आपका लाभ ईक्विटीज़ में निवेश करने की तुलना में पाँच गुना होगा। लेकिन इसमें नुकसान भी पाँछ गुना हो सकता है और लेवरेज्ड ट्रेड का यही जोखिम है।

ऑप्शन बिना बाध्यता वाला अधिकार है। तो, आप टाटा मोटर्स का 400 कॉल ऑप्शन रु. 10 में खरीद सकते हैं। क्योंकि लॉट साइज़ 1500 शेयर है, तो आपका अधिकतम नुकसान केवल रु. 15000 होगा। नकारात्मक पक्ष देखें तो भले ही टाटा मोटर्स के शेयर का दाम रु.300 हो जाए, आपका नुकसान केवल रु.15,000 होगा। सकारात्मक पक्ष देखें तो, शेयर का दाम रु. 410 से ज्यादा होने पर, आपका लाभ असीमित होगा।

ऑपशन्स और फ्यूचर्स में ट्रेड कैसे किया जाए?

ऑपशन्स और फ्यूचर्स में ट्रेड 1 महीने, 2 महीने और 3 महीने के क्या फ्यूचर्स हाई रिस्क हैं लिए अनुबंध के माध्यम से किया जाता है। सभी एफ ऐंड ओ अनुबंधों की अवधि महीने के अंतिम बृहस्पतिवार को खत्म हो जाती है। फ्यूचर्स फ्यूचर के दाम पर ट्रेड किए जाएंगे जो कि आमतौर पर टाइम वैल्यू के कारण स्पॉट प्राइस से अधिक दाम होता है। एक कॉन्ट्रैकट के लिए एक स्टॉक की केवल एक फ्यूचर प्राइस होगी। जैसे कि जनवरी 2018 को कोई व्यक्ति टाटा मोटर्स के जनवरी फ्यूचर्स, फरवरी फ्यूचर्स और मार्च फ्यूचर्स में ट्रेड कर सकता है। ऑप्शनस में ट्रेड करना थोड़ा जटिल होता है क्योंकि आप वास्तव में प्रीमियम ट्रेड करते हैं। इसलिए, एक ही स्टॉक के कॉल ऑप्शन्स और पुट ऑप्शन्स के लिए भिन्न-भिन्न स्ट्राइक्स होंगें। टाटा मोटर्स के मामले में, 400 कॉल का कॉल ऑप्शन रु.10 होगा और जैसे जैसे स्ट्राइक बढ़ेगा, इन ऑप्शन्स का दाम धीरे धीरे कम होता जाएगा।

ऑप्शन्स और फ्यूचर्स की कुछ मूल बातें

फ्यूचर्स मार्जिन के साथ इक्विटी ट्रेड करने का लाभ देते हैं। चाहें आप फ्यूचर्स खरीद रहे हों या बेच रहे हों, इसके साथ जुड़े जोखिम भी असीमित हैं। जहाँ ऑप्शन्स की बात आती हैं, खरीदार अपना नुकसान भुगतान किए गए प्रीमियम तक सीमित कर सकता है। क्योंकि ऑप्शन्स नॉन-लीनियर होते हैं, इसलिए वो जटिल ऑप्शन्स और फ्यूचर्स कार्य-योजनाओं द्वारा ज्यादा नियंत्रित किए जा सकते हैं। जब आप फ्यूचर्स खरीदते या बेचते हैं तो आपको अग्रिम रूप से मार्जिन और मार्क-टू-मार्केट (एमटीएम) मार्जिन्स का भुगतान करना पड़ता है। जब आप ऑप्शन बेचते हैं तो आपको इनिशियल मार्जिन और मार्क-टू-मार्केट (एमटीएम) मार्जिन्स का भुगतान करना पड़ता है। लेकिन जब आप ऑप्शन्स खरीदते हैं तो आपको केवल प्रीमियम मार्जिन का ही भुगतान करना पड़ता है। बस यही है!

ऑप्शन्स और फ्यूचर्स के अंतर को समझना।

जहाँ फ्यूचर्स की बात आती है तो उसका सिद्धांत बहुत सरल है। अगर आप स्टॉक के दाम के बढ़ने की अपेक्षा करते हैं तो आप स्टॉक पर फ्यूचर्स खरीदते हैं और अगर आप स्टॉक के दाम घटने की अपेक्षा करते हैं तो आप स्टॉक या इन्डेक्स के फ्यूचर्स बेचते हैं। ऑप्शन्स की चार संभावनाएं हो सकती हैं। चलिए प्रत्येक प्रकार को ऑप्शन्स और फ्यूचर्स ट्रेडिंग के उदाहरण से समझें। मान लीजिए कि इन्फोसिस के शेयर का वर्तमान दाम रु. 1000 है। आइए समझते हैं कि विभिन्न ट्रेडर्स अपने दृष्टिकोण के आधार पर विभिन्न प्रकार के ऑप्शन्स को कैसे प्रयोग करेंगे।

1. निवेशक A अपेक्षा करता है कि इन्फोसिस का दाम अगले 2 महीनों में रु.1150 तक जाएगा। उसके लिए सबसे सही कार्य-नीति होगी 1050 के स्ट्राइक पर इन्फोसिस का कॉल ऑप्शन खरीदे। वो काफी कम प्रीमियम देकर अपसाइड में भाग ले सकता है।

2. निवेशक B अपेक्षा करता है कि इन्फोसिस का दाम अगले 1 महीने में रु.900 तक गिर जाएगा। उसके लिए सबसे सही कार्य-नीति होगी 980 के स्ट्राइक पर इन्फोसिस का पुट ऑप्शन खरीदे। वो आसानी से शेयर के डाउनसाइड मूवमेंट में भाग लेकर लाभ कमा सकता है जब उसके द्वारा भरे गए प्रीमियम के दाम की पूर्ति हो जाए।

3. निवेशक C इन्फोसिस के दाम कम होने के बारे में निश्चित नहीं है। लेकिन, उसको पक्का विश्वास है कि ग्लोबल मार्केट के प्रेशर के कारण, इन्फोसिस का दाम 1080 पार नहीं करेगा। वह इन्फोसिस का 1100 कॉल ऑप्शन बेच सकता है और सम्पूर्ण प्रीमियम समेट सकता है।

4. निवेशक D इन्फोसिस के दाम के चढ़ने के बारे में निश्चित नहीं है। लेकिन उसको पक्का विश्वास है कि इन्फोसिस में हाल में हुए प्रबंधन परिवर्तनों के कारण स्टॉक का दाम रु. 920 से कम नहीं होगा। उसके लिए एक बेहतर कार्य नीति होगी अगर वो 900 पुट ऑप्शन बेच दे और सारा प्रीमियम ले जाए।

ऑप्शन्स और फ्यूचर्स की अवधारणा अलग है लेकिन आंतरिक रूप से वे एक ही हैं क्योंकि दोनों पूर्ण राशि का निवेश किए बिना स्टॉक या इंडेक्स से लाभ कमाने की कोशिश करते हैं!

माइक्रोसॉफ्ट ब्राउजर के लिए सरकार ने जारी की 'हाई-रिस्क' वार्निंग, क्या आप भी करते हैं इस्तेमाल

'high-risk' warning for Microsoft browser: किसी भी तरह की दिक्कत से बचने के लिए CERT-In ने सलाह दी है. इसने कहा है कि इस ब्राउजर के यूजर्स 98.0.1108.43 वर्जन में अपडेट करें. पिछले सप्ताह माइक्रोसॉफ्ट ने इसे रोल आउट किया था.

क्रोमियम प्रोजेक्ट के तहत इसमें लेटेस्ट सुरक्षा अपडेट शामिल किए गए हैं. (फाइल फोटो: पीटीआई)

'high-risk' warning for Microsoft browser: अगर आप भी माइक्रोसॉफ्ट ब्राउजर का इस्तेमाल करते हैं तो अलर्ट हो जाएं. सरकार ने इसे लेकर 'हाई-रिस्क' वार्निंग जारी की है. आईटी मंत्रालय के तहत भारतीय कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पॉन्स टीम (CERT-In) ने इसके लिए चेतावनी दी है.

यह उन यूजर्स के लिए है जो 98.0.1108.43 से पहले के ब्राउजर वर्जन (version) का इस्तेमाल कर रहे हैं. इसके मुताबिक, इस ब्राउजर में कमजोरियों (vulnerabilities) हैं. जिसकी वजह से एक रिमोट अटैकर सिक्योरिटी प्रतिबंधों को बायपास कर सकता है. वहीं यह मनमाने कोड के जरिए और टारगेटेड सिस्टम को निशाना भी बना सकता है.

सरकार ने जारी की एडवाइजरी
एडवाइजरी में आगे कहा गया है कि "अनुचित इनपुट वैलिडिएशन की वजह से इसमें ये कमजोरियां हैं. एक रिमोट अटैकर पीड़ित को विशेष रूप से तैयार की गई फाइल खोलने के लिए लुभाकर इसका फायदा क्या फ्यूचर्स हाई रिस्क हैं उठा सकता है." इसके जरिए दूर बैठा अटैकर सुरक्षा प्रतिबंधों को बायपास कर, बढ़त हासिल कर सकता है. वहीं विशेषाधिकारों और लक्षित सिस्टम पर मनमाना कोड डाल सकता है.

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सुरक्षित रहने के लिए यूजर्स क्या कर सकते हैं?
किसी भी तरह की दिक्कत से बचने के लिए CERT-In ने सलाह दी है. इसने कहा है कि इस ब्राउजर के यूजर्स 98.0.1108.43 वर्जन में अपडेट करें. पिछले सप्ताह माइक्रोसॉफ्ट ने इसे रोल आउट किया था. क्रोमियम प्रोजेक्ट के तहत इसमें लेटेस्ट सुरक्षा अपडेट शामिल किए गए हैं.

ब्राउजर अपडेट करने की सलाह
98 वर्जन कुछ सुधारों और नई फीचर्स के साथ आया है. नवीनतम अपडेट के साथ इसमें बेहतर सुरक्षा मोड को जोड़ा है. जिसके तहत बनाएं जहां ब्राउजर सिक्योरिटी को प्राथमिकता दी गई है. वहीं इससे यूजर्स को ब्राउज करते समय वेब पर सुरक्षा की एक और लेयर मिलती है. कंपनी पिछले कुछ समय से इस एडिशन की टेस्टिंग कर रही है. यह सुविधा वर्तमान में एक ही फ्लैग के नीचे है और इसे edge://flags पर जाकर सक्षम (enabled) किया जा सकता है. एडमिनिस्ट्रेटर इसके लिए ग्रुप पॉलिसी अप्लाई कर सकते हैं, जिससे उनका सिस्टम सेफ रहे.

ठीक से समझ लें तो निवेश में बहुत मददगार है सेबी का रिस्‍क-ओ-मीटर

नया रिस्‍क मीटर हर फंड के वास्‍तविक पोर्टफोलियो पर आधारित है. इसके दो मतलब हैं. एक, रिस्‍क मीटर पर रीडिंग यह पता लगाने में मदद करती है कि आपको उस फंड में निवेश करना चाहिए या नहीं. दूसरा, जैसे पोर्टफोलियो और मार्केट की स्थितियां बदलेंगी रिस्‍क लेवल क्या फ्यूचर्स हाई रिस्क हैं बदल सकता है.

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पुराने रिस्‍क मीटर में एक हर फंड को पांच रिस्‍क लेवल पर रेट किया जाता था. इनमें लो, लो टू मॉडरेट, मॉडरेट, मॉडरेटली हाई और हाई शामिल थे.

स्‍पष्‍ट है कि इस फंड कैटेगरी रिस्‍क मीटर का म्‍यूचुअल फंड के वास्‍तविक पोर्टफोलियो के साथ कोई सीधा कनेक्‍शन नहीं था. फंड कैटेगरी के व्‍यापक पैरामीटर क्या फ्यूचर्स हाई रिस्क हैं के भीतर वास्‍तविक जोखिम के स्‍तर में काफी बदलाव हो सकता है. और ऐसा है भी. इसके अलावा हाल में डेट फंड संकट ने दिखाया है कि जोखिम सभी दिशाओं से आ सकता है. इसमें लिक्विडिटी का अभाव शामिल है. इसके अलावा पुराना रिस्‍क मीटर पूरी तरह स्‍टैटिक था. चूंकि, कैटेगरी की गाइडलाइंस कभी बदलती नहीं थीं. लिहाजा, बताए गए रिस्‍क लेवल में भी बदलाव नहीं होता था. कुल मिलाकर वह सिस्‍टम पूरी तरह उस कैटेगरी को चुनने का था जो निवेशक के लिए उपयुक्‍त हो. इसमें क्या फ्यूचर्स हाई रिस्क हैं हर एक कैटेगरी के भीतर चुनाव करने के लिए कोई उपयोगी इनपुट नहीं था.

अब यह सब बदल गया है. सबसे बड़ा बदलाव यह है कि नया रिस्‍क मीटर हर फंड के वास्‍तविक पोर्टफोलियो पर आधारित है. इसके दो मतलब हैं. एक, रिस्‍क मीटर पर रीडिंग यह पता लगाने में मदद करती है कि आपको उस क्या फ्यूचर्स हाई रिस्क हैं फंड में निवेश करना चाहिए या नहीं. दूसरा, जैसे पोर्टफोलियो और मार्केट की स्थितियां बदलेंगी रिस्‍क लेवल बदल सकता है. यह फैसला लेने में मदद करेगा कि आपको फंड भुनाना चाहिए या नहीं. रिस्‍क लेवल का यह डायनेमिक नेचर असलियत में मदद कर सकता है. लेकिन, इसका यह भी मतलब है कि निवेशकों को बदलाव पर नजर रखनी होगी. नियम फंड कंपनी पर क्रियान्‍वयन का दबाव बनाते हैं ताकि वे रिस्क लेवल बदलने पर सक्रियता के साथ निवेशकों को हर फंड के बारे में सूचित कर सकें.

यह बदलाव कुछ निवेशकों में उलझन पैदा कर सकता है. कुछ दिन पहले एक फंड पर वैल्‍यू रिसर्च की स्‍टार रेटिंग्‍स के बारे में ऑनलाइन सवाल जवाब में निवेशक ने शिकायत की कि उन्‍होंने फंड हाउस में फाइव स्‍टार रेटिंग देखकर निवेश किया था. लेकिन, वह रेटिंग घटा दी गई है. मैंने समझाया कि यही तो कारण है कि रेटिंग दी गई हैं. अगर रेटिंग में कुछ बदलाव ही नहीं होगा तो उसका मतलब क्‍या है. अच्‍छे म्‍यूचुअल फंड में निवेश करने की कोशिश गतिशील लक्ष्‍य है. यह निवेशकों पर जिम्‍मेदारी तय करता है कि बदलती स्थितियों पर नजर रखें.

फिर बात बात आती है कि आखिर रिस्‍क है क्‍या? डेट फंडों में जवाब आसान है. डेट फंडों से उम्‍मीद होती है कि वे सीमित दायरे में चलेंगे. यानी वे क्रेडिट या लिक्विडिटी से समझौता नहीं करेंगे. रिस्‍क मीटर के लिए सेबी का अंतर्निहित एलगॉरिथिम इन बातों को ध्‍यान में रखता है. शायद भविष्‍य में कुछ बदलाव देखने को मिलें.

इक्विटी फंड इस मामले में पूरी तरह अलग हैं. यहां उदाहरण देखते हैं. रिस्‍क मीटर एलगॉरिथिम रिस्‍क के लिए अस्थिरता को मुख्‍य इनपुट के तौर पर लेता है. उसी के अनुसार यह पोर्टफोलियो की रिस्‍क रेटिंग बढ़ाता है. ऐसा तब होता है जब मिडकैप और स्‍मॉलकैप शेयर बढ़ते हैं.

हालांकि, बतौर निवेशक यह शायद आपके रिस्‍क के विचार के अनुरूप नहीं हो. अगर आप 5-7 साल के लिए अच्‍छे मिड या स्‍मॉलकैप फंड में सिप कर रहे हैं तो अस्थिरता आपके लिए अप्रासंगिक हो जाती है. चुनी गई अवधि में आपका 'हाई रिस्‍क' फंड ज्‍यादा रिटर्न दे सकता है. हर अलग पहलू की तरह इक्विटी में निवेश भी अधिक जटिल है और ज्‍यादा समझ की जरूरत पड़ती है. बात जो भी हो अच्‍छी समझ क्या फ्यूचर्स हाई रिस्क हैं वाले जानकार निवेशक जानना चाहेंगे कि कोई रेटिंग या रिस्‍क सिस्‍टम वास्‍तव में क्‍या करता है.

(लेखक वैल्‍यू रिसर्च के सीईओ हैं.)

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NSE or BSE which is best: शेयर बाजार में एनएसई में लगाएं पैसे या बीएसई में, जानिए दोनों में होता है क्या अंतर!

NSE or BSE which is best: अगर आप भी शेयर बाजार में निवेश (Investment in share market) करने की सोच रहे हैं या अभी-अभी शुरुआत की है तो एक सवाल मन में जरूर उठता होगा कि आखिर बीएसई में निवेश करने से फायदा है या फिर एनएसई में निवेश करना चाहिए। आइए जानते हैं क्या हैं ये दोनों और इनमें क्या होता है अंतर (difference between nse and bse)।

which is best to invest bse or nse, know what is the difference between them

NSE or BSE which is best: शेयर बाजार में एनएसई में लगाएं पैसे या बीएसई में, जानिए दोनों में होता है क्या अंतर!

पहले समझिए क्या है बीएसई और एनएसई

ये दोनों ही स्टॉक एक्सचेंज हैं। बीएसई में करीब 5000 कंपनियां लिस्टेड हैं, जो एशिया का सबसे पुराना एक्सचेंज है। वहीं दूसरी ओर एनएसई में लगभग 1600 के करीब कंपनियां लिस्टेड हैं। दोनों के ही जरिए आप शेयर बाजार में पैसे लगा सकते हैं। अधिकतर कंपनियां दोनों ही स्टॉक एक्सचेंज पर लिस्टेड होती हैं, इक्का-दुक्का कंपनियां भी सिर्फ एक स्टॉक एक्सचेंज पर लिस्ट होती है।

बीएसई और एनएसई में क्या है अंतर?

दोनों में पहला अंतर तो शेयर की कीमत का होता है, लेकिन ये इतना मामूली होता है कि उससे कोई फर्क नहीं पड़ता। जैसे मान लीजिए कि रिलायंस का शेयर बीएसई पर 2000 रुपये का है, तो सकता है कि एनएसई पर इसकी कीमत 2001 रुपये हो। वहीं स्टॉक ब्रोकर एंजेल ब्रोकिंग के अनुसार एनएसई और बीएसई पर टैक्स लगाने का तरीका अलग-अलग होता है, लेकिन इसमें भी कोई बड़ा अंतर नहीं होता है।

तो एनएसई में लगाएं पैसे या बीएसई में?

एंजेल ब्रोकिंग के अनुसार अगर आप नए-नए शेयर बाजार में घुसे हैं तो आपके लिए बीएसई बेहतर है, जबकि अगर आप शेयर बाजार के मझे हुए खिलाड़ी हैं तो एनएसई बेहतर विकल्प है। अगर नई कंपनियों में निवेश करते हैं तो बीएसई बेहतर विकल्प है, जबकि अगर आप ट्रेडिंग करते हैं या डेरिवेटिव्स, फ्यूचर, ऑप्शंस में पैसे लगाते हैं एनएसई बेहतर विकल्प है। एंजेल ब्रोकिग के अनुसार एनएसई के सॉफ्टवेयर बेहतर हैं, जिससे हाई क्या फ्यूचर्स हाई रिस्क हैं रिस्क वाले ऑनलाइन ट्रांजेक्शन किए जा सकते हैं। वहीं जो लोग बस एक बार पैसे लगाकर बैठकर उसे बढ़ता हुआ देखना चाहते हैं, उन्हें बीएसई में पैसे लगाने चाहिए।

कैसे लगाएं पैसे?

वैसे तो आप जिस भी ब्रोकर के जरिए शेयर बाजार में पैसा लगाएंगे, वह बीएसई और एनएसई दोनों ही एक्सचेंज पर रिजस्टर्ड होगा। फिर भी अगर आप अपने पसंद के एक्सचेंज में पैसा लगाना चाहते हैं तो शेयर खरीदते वक्त आपको विकल्प मिलेगा। इसी तरह शेयर बेचते वक्त भी आपको विकल्प मिलेगा कि आप किस एक्सचेंज पर शेयर बेचना चाहते हैं। वैसे अगर आप नए-नए शेयर बाजार में आए हैं तो एक्सचेंज की चिंता ब्रोकर पर ही छोड़ दीजिए और सिर्फ कंपनी पर ध्यान दीजिए और मुनाफा कमाइए।

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