दो थैले हैं - एक में 3 एक रुपये के सिक्के, 6 पाँच रुपये के सिक्के और दूसरे में 2 एक रुपये के सिक्के, 7 पाँच रुपये के सिक्के हैं। एक बैग यादृच्छिक पर चुना जाता है और उसमें से एक सिक्का यादृच्छिक पर खींचा जाता है। क्या प्रायिकता है कि यह 5 रुपये का सिक्का है?

एक यौगिक घटना [(A और B) या (B और C)] की प्रायिकता की गणना निम्नप्रकार की जाती है:

P[(A और B) या (B और C)] = [P(A) × P(B)] + [P(C) × P(D)]

( 'और' का अर्थ '×' है और 'या' का अर्थ '+' है )

आवश्यक घटना को इस प्रकार लिखा जा सकता है:

घटना = (पहले बैग का चयन करें और उसमें से 5 रुपये का सिक्का चुनें) या (दूसरा बैग चुनें और उसमें से 5 रुपये का सिक्का चुनें)।

∴ आवश्यक प्रायिकता की गणना निम्न प्रकार से की जा सकती है:

प्रायिकता = [P (पहले बैग का चयन करें) × P(इसमें से 5 रुपए का सिक्का चुनें)] + [P(दूसरे बैग का चयन करें) × P(इसमें से 5 रुपए का सिक्का चुनें)]

= \(\rm \left(\dfrac\times \dfrac\right)+\left(\dfrac\times \dfrac\right)\)

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Last updated on Dec 15, 2022

HPU, MRPL and NPCIL Official notification released! GATE 2023 Official Mock Test Link Active Now! ISRO Scientist Recruitment will be done through GATE 2021 & GATE 2022. The GATE ME 2023 Exam Schedule has been released, and will be conducted on 4th February 2023 in the afternoon session from 2:30 pm to 5:30 pm. The admit card for the exam will be available from 3rd January 2023. The Indian Institute of Technology (IIT) Kanpur has released the official notification for the GATE ME 2023. The GATE ME 2023 result will be announced on 16th March 2023. Candidates who want a successful selection can refer to the GATE ME Preparation Tips to boost their exam preparation and increase their chances of selection.

Let's discuss the concepts related to Probability and Multiplication Theorem of Events. Explore more from Mathematics here. Learn now!

America: 138 करोड़ रुपए में बिका ऐतिहासिक सिक्का, जानिए आखिर इस सिक्के में ऐसा क्या है खास

सोथबी नीलाम घर में एक सिक्के ने 138 करोड़ रुपए में नीलाम होकर इतिहास रच दिया है. ये एक दुर्लभ, अनोखा सिक्का माना जा रहा है. इस अमेरिकी सिक्के ने दुनिया के सबसे महंगे सिक्के का रिकॉर्ड भी तोड़ दिया है, जिसे साल 2013 में 10 मिलियन अमरीकी डॉलर में बेचा गया था. हैरान करने वाली बात ये है कि साल 1933 का डबल ईगल अमेरिका में सोने का आखिरी सिक्का था.

By: एबीपी न्यूज | Updated at : 11 Jun 2021 09:37 AM (IST)

अमेरिका में मंगलवार को एक दुर्लभ और ऐतिहासिक सोने के सिक्के की नीलामी की गई. दरअसल इस सिक्के की मूल रूप से कीमत 20 अमरीकी डॉलर यानी 1400 रुपए थी, लेकिन न्यूयॉर्क में ये सिक्का 18.9 मिलियन अमरीकी डॉलर यानी 138 करोड़ रुपए में बेचा गया है. 138 करोड़ रुपए में बिकने के बाद ये सिक्का एक नया रिकॉर्ड बना रहा है और 2002 में 7.6 मिलीयन अमरीकी डॉलर की अपनी पिछली कीमत और 100 लाख से 150 लाख तक की पहले की कीमत को पार करने में सफल रहा है.

इस अमेरिकी सिक्के ने दुनिया के सबसे महंगे सिक्के का रिकॉर्ड भी तोड़ दिया है, जिसे साल 2013 में 10 मिलियन अमरीकी डॉलर में बेचा गया था. हैरान करने वाली बात ये है कि साल 1933 का डबल ईगल अमेरिका में सोने का आखिरी सिक्का था. सिक्का पूरे अमेरिका में प्रचलन के इरादे से ढाला गया था, लेकिन फ्रैंकलिन डी रूजवेल्ट ने अमेरिका को सोने के मानक से हटा दिए जाने के बाद अमेरिकी सरकार ने सिक्के के सार्वजनिक इस्तेमाल के खिलाफ फैसला किया था. जिसके बाद सरकार के आदेश के चलते सभी सिक्के नष्ट कर दिए गए थे. वहीं इस सिक्को को दुर्लभ माना गया है क्योंकि इसे अमेरिकी सरकार ने कानूनी रूप से स्वीकृति दी हुई थी.

सोथबी ने की सिक्के की नीलामी

नीलामी घर सोथबी ने साल 1933 के दुर्लभ और ऐतिहासिक डबल ईगल सिक्के को दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित सिक्कों में से एक माना है. जहां इंस्टाग्राम पोस्ट में सोथबी ने लिखा है कि 'मिलिए द होली ग्रेल ऑफ कॉइन्स से, इससे पहले आज सुबह हमारे #न्यूयॉर्क सेलरूम में 1933 के काल्पनिक और मायावी डबल कौन सा सिक्का चुनना है ईगल कॉइन ने दुनिया के सबसे मूल्यवान सिक्के के नीलामी रिकॉर्ड को तोड़ दिया, जिससे आश्चर्यजनक रूप से 138 करोड़ रुपए मिले हैं, जो एकमात्र उदाहरण है जिसे संयुक्त राज्य सरकार ने निजी स्वामित्व के लिए कानूनी रूप से स्वीकृत किया था'.

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डबल ईगल ने रचा इतिहास

डबल ईगल सिक्के में एक तरफ लेडी लिबर्टी की छवि बनी है और दूसरी तरफ एक अमेरिकी ईगल बनी है. वहीं सोथबी के किताबों के वैश्विक प्रमुख रिचर्ड ऑस्टिन ने कहा कि 'सिक्के की बिक्री ने टिकट और सिक्का संग्रह के इतिहास में एक ऐतिहासिक पल को बना दिया है जिसे जल्दी कोई पार नहीं कर सकेगा.

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Published at : 11 Jun 2021 09:37 AM (IST) Tags: America sold coin हिंदी समाचार, ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें abp News पर। सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट एबीपी न्यूज़ पर पढ़ें बॉलीवुड, खेल जगत, कोरोना Vaccine से जुड़ी ख़बरें। For more related stories, follow: News in Hindi

हर वक्त के निजाम के गवाह हैं सिक्के

हर वक्त के निजाम के गवाह हैं सिक्के

Kanpur: मुगल शहंशाह शाहजहां के गद्दीनशीन होने की पहली वर्षगांठ को यादगार बनाने के लिए खालिस सोने का एक सिक्का जारी किया गया था. आगरा से जारी इस सिक्के पर शहर का नाम ‘अकबराबाद’ अंकित है. इस वाक्ये को 350 साल से ज्यादा बीत चुके हैं. पर वो खास सिक्के आज भी कुछ लोगों के पास सुरक्षित हैं. एक्साइटिंग बात ये है कि ये सिक्का थर्सडे को कानपुराइट्स को खरीदने और देखने के लिए अवेलेबिल होगा. केवल ये ‘नजराना सिक्का’ ही नहीं, बल्कि मुगलकाल से लेकर मौर्यकाल तक के प्रसिद्ध मोहरों और सिक्कों के अलावा कई प्रकार के दुलर्भ करंसी नोट और मैडल भी एक खुली नीलामी में पब्लिक को उपलब्ध होंगे. शहर के अनाइचाज रेस्टोरेंट में आयोजित की जा रही ये दो दिवसीय आक्शन और एग्जिबिशन प्रदेश में अपनी तरह की पहली है.

कीमत है सात से नौ लाख रुपए

ऑक्शन आयोजित कर रहे आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (एएसआई) के ऑथराइज्ड ‘टोडीवाला ऑक्शन’ फर्म के मैलकॉम टोडीवाला कौन सा सिक्का चुनना है के अनुसार मुगल शहंशाह का नजराना सिक्के की बेसिक कीमत 7 लाख रुपए है, जो नीलामी में 9 लाख रुपए तक जाने की पूरी उम्मीद है। ये मुगलकाल के बाकी सिक्कों की तरह प्योर 24 कैरेट गोल्ड का है। टोडीवाला ऑक्शंस यूपी में पहली बार इस तरह के ऑक्शन को आयोजित कर रहे हैं जिसमें करीब दो हजार साल पुराने से लेकर 60 के दशक तक के क्वाइंस और नोट देखने को मिलेंगे।

15 सौ से सात लाख तक
वैसे तो इस ऑक्शन में 15 सौ रुपये तक की कीमत वाले सिक्के भी नीलाम किये जाएंगे, जिनकी कीमत बोली के आधार पर बढ़ती जाएगी। कुछ सिक्के किसानों के पास से मिले तो महाराष्ट्र के एक छोटे से गांव से हमें शाहजहां वाला सिक्का मिला है।

सोलह आने नहीं, 16 रुपए सच
क्या आप ने बैंक ऑफ हिंदुस्तान का नाम सुना है? सच मानिए, डेढ़ सौ साल से भी पहले ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा कैलकटा में स्थापित इस बैंक द्वारा जारी 16 रुपए का नोट आज के 16 रुपए से हजार गुना ज्यादा वैल्यूएबल है। ब्रिटिश पीरियड के बाद तक इस 16 के नोट के बदले आप कहीं से भी एक सोने की मोहर या फिर चांदी के 16 रुपए ले सकते थे। ये दुलर्भ नोट भी ऑक्शन में उपलब्ध होगा।

डिमांड के हिसाब से होते हैं रेट

टोडीवाला कहते हैं कि लोगों में ये बड़ा मिसकंसेप्शन है कि सिक्के जितने पुराने होंगे, उतने ही महंगे भी होंगे। असल में पुराने सिक्के भी आम इकोनॉमी की तर्ज पर चलते हैं। जिस सिक्के की डिमांड जितनी ज्यादा होगी, वो उतना ही महंगा होगा। और डिमांड कई विचित्र कारणों पर डिपेंड करती है। जैसे कि कौन सा सिक्का किस ओकेजन पर जारी किया गया था। या फिर किस प्राचीन सिक्के पर कौन सा चित्र बना है। जहां केवल 360 वर्ष पुराना शाहजहां का सिक्का 7 से 9 लाख रुपए का है, वहीं दो हजार साल पुराना साधारण मौर्य कालीन सिक्का मात्र 3 हजार रुपए में बेचेंगे।

अगर आपके पास हैं एंटीक सिक्के

टोडीवाला के अनुसार कानून ये है कि कोई सिक्के या एंटीक अगर आपके कानूनी पजेशन वाले घर, बिल्डिंग या जमीन से निकले हैं तो वो आपका है। लेकिन अगर वो अन्यत्र खुदाई में निकलें हैं तो उनको हथियाकर बेच देना कानूनी नहीं, वो गवर्नमेंट की प्रॉपर्टी हुई।

क्वाइन कलेक्टर्स: अगर लगवानी हो सही कीमत तो

-कानूनी रूप से नीलामी करने वाले एएसआई और भारत सरकार से अधिकृत ऑक्शनियर्स से ही संपर्क करें

-इंटरनेट के माध्यम से ही अथाराइज्ड ऑक्शनियर्स, उनकी वेबसाइट्स ढूंढें। घ्यान रखें कि सीधे किसी फॉरेनर को बेचना गैर कानूनी है।

-किसी को भी पहले यूंही अपने क्वाइंस, नोट आदि नहीं सौंपे। पिक्चर्स भेजें, अपने एंटीक की पूरी जानकारी और हिस्ट्री जान लें

-सही ऑक्शनियर्स रसीद के बदले आपके क्वाइन या एंटीक को पहले ऑक्शन करके, बाद में भी पैसे दे सकते हैं।

-खरीददार या विक्रेताओं को क्वाइंस, करंसी नोट्स आदि की सहीं वैल्यू इनकी साइट्स से पता चल सकती है। अक्सर कीमत में कमीशन भी शामिल रहता है। ये गवर्नमेंट की तरफ से एलाउ है।

देश में 77 साल चला था दो आने का चांदी का सिक्का, 100 साल पहले एक अप्रैल को ईस्ट इंडिया कंपनी ने किया था बंद

77 साल तक देश में दो आने का चांदी का सिक्का चलने के बाद अचानक एक अप्रैल 1918 को देश में इसे बंद कर दूसरी धातु कॉपर और निकल से बनाकर प्रचलित कर दिया। 1841 में सबसे पहले विक्टोरिया क्वीन के समय दो आने का चांदी का सिक्का जारी किया गया था, जो क्रमश: 1918 तक प्रचलन में रहा। किंग जॉर्ज पंचम (1911-1936) ने इस सिक्के में बदलाव किया था।

नोट व क्वाइन एक्सपर्ट डॉ. एसके राठी बताते हैं कि 2 आने के सिक्के को एक अप्रैल रविवार को 100 साल हो रहे हैं। सबसे बड़ी बात है कि उस समय में टकसाल में तैयार किए गए ये सिक्के शुद्ध चांदी में ढाले जाते थे। सबसे बड़ी बात यह रही कि फर्स्ट वर्ल्ड वार के समय ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा भुगतान की प्रक्रिया चांदी के सिक्कों में ही करनी पड़ती थी। इससे तब चांदी की मात्रा में कमी हो गई थी। ऐसे हालत में उस समय इस धातु के सिक्के बनाना बंद कर दिया और ईस्ट इंडिया कंपनी ने तांबे और निकल धातु से सिक्के बनवाए। इनमें 75 प्रतिशत तांबा और 25 प्रतिशत निकल का इस्तेमाल किया गया। दो आने के सिक्के 1947 तक प्रचलन में रहे।

क्वाइन कलेक्टर सौरभ लोढ़ा बताते हैं कि चांदी, निकल और तांबे का 1947 तक प्रचलित सिक्के उनके कलेक्शन में शामिल है। वर्तमान में चांदी के सिक्के की कीमत एक हजार रुपए से अधिक है। डॉ. राठी बताते हैं कि एक अप्रैल को किए गए इस बदलाव में सबसे बड़ी रोचक बात रही कि अचानक हुए निर्णय से लोगों ने तब इसे अप्रैल फूल तक समझ लिया था, लेकिन हकीकत में इसके सिक्के में बदलाव किया गया था।

देश में 1841 से विक्टोरिया क्वीन के समय प्रचलित हुए थे चांदी के सिक्के
चांदी का दो आने का सिक्का।

77 साल तक देश में दो आने का चांदी का सिक्का चलने के बाद अचानक एक अप्रैल 1918 को देश में इसे बंद कर दूसरी धातु कॉपर और निकल से बनाकर प्रचलित कर दिया। 1841 में सबसे पहले विक्टोरिया क्वीन के समय दो आने का चांदी का कौन सा सिक्का चुनना है सिक्का जारी किया गया था, जो क्रमश: 1918 तक प्रचलन में रहा। किंग जॉर्ज पंचम (1911-1936) ने इस सिक्के में बदलाव किया था।

नोट व क्वाइन एक्सपर्ट डॉ. एसके राठी कौन सा सिक्का चुनना है बताते हैं कि 2 आने के सिक्के को एक अप्रैल रविवार को 100 साल हो रहे हैं। सबसे बड़ी बात है कि उस समय में टकसाल में तैयार किए गए ये सिक्के शुद्ध चांदी में ढाले जाते थे। सबसे बड़ी बात यह रही कि फर्स्ट वर्ल्ड वार के समय ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा भुगतान की प्रक्रिया चांदी के सिक्कों में ही करनी पड़ती थी। इससे तब चांदी की मात्रा में कमी हो गई थी। ऐसे हालत में उस समय इस धातु के सिक्के बनाना बंद कर दिया और ईस्ट इंडिया कंपनी ने तांबे और निकल धातु से सिक्के बनवाए। इनमें 75 प्रतिशत तांबा और 25 प्रतिशत निकल का इस्तेमाल किया गया। दो आने के सिक्के 1947 तक प्रचलन में रहे।

क्वाइन कलेक्टर सौरभ लोढ़ा बताते हैं कि चांदी, निकल और तांबे का 1947 तक प्रचलित सिक्के उनके कलेक्शन में शामिल है। वर्तमान में चांदी के सिक्के की कीमत एक हजार रुपए से अधिक है। डॉ. राठी बताते हैं कि एक अप्रैल को किए गए इस बदलाव में सबसे बड़ी रोचक बात रही कि अचानक हुए निर्णय से लोगों ने तब इसे अप्रैल फूल तक समझ लिया था, लेकिन हकीकत में इसके सिक्के में बदलाव किया गया था।

1918 में जारी हुआ था सोने का 15 रुपए का सिक्का
मुंबई के टोडीवाला ऑक्शंस के फारुख एस टोडीवाला ने बताया कि 100 साल पहले 1918 में देश में मुंबई मिंट में 15 रुपए का सोने का सिक्का पहली बार तैयार किया गया था। तब इसकी कीमत 15 रुपए आंकी थी। यह शुद्ध सोने से निर्मित के अलावा इसका वजन 7.98 ग्राम और साइज 22.2 एमएम थी। देश में करीब ऐसे दुर्लभ सिक्के करीब तीन-चार हजार है। वर्तमान में इसकी कीमत करीब डेढ़ लाख रुपए तक आंकी गई है।

कहानी सिक्कों की

भारत में सिक्के का जन्म ईसा पूर्व पांचवीं शताब्दी के दौरान हुआ। दरअसल, इससे पहले व्यापार के लिए कोई मुद्रा अस्तित्व में नहीं थी। लोग एक सामान के बदले दूसरा सामान खरीदते थे, जिसे बार्टर सिस्टम कहा जाता था।? ऐसे में व्यापार के लिए एक मुद्रा की जरूरत महसूस हुई, जिसके निर्धारित मूल्य पर कोई भी चीज खरीदी या बेची जा सके।?इस तरह मुद्रा के रूप में सिक्का अस्तित्व में आ गया।

320 से 550 ईस्वी के बीच गुप्त साम्राज्य में सोने के सिक्कों को काफी बढ़ावा ंिमला। सोने के इन सिक्कों पर एक तरफ वीणा बजाते सम्राट समुद्रगुप्त और दूसरी तरफ कलात्मकता, साम्राज्य की मजूबती और सांस्कृतिक प्रकृति को दर्शाता चित्र उकेरा गया होता था। एक तरफ चंद्रगुप्त प्रथम और दूसरी तरफ रानी कुमारदेवी की तस्वीर वाला उस समय का एक सोने का सिक्का काफी लोकप्रिय रह चुका है।

500 ईसा पूर्व सिक्कों को पंच चिथ्ति सिक्कों के नाम से जाना-पहचाना जाता था। ये सिक्के देखने में आकर्षक नहीं लगते थे। ये अधिकतर तांबे या चांदी पर किसी जानवर या पेड़-पौधो की तस्वीर चिथ्ति करके बनाए जाते थे। 323 ईसा पूर्व में सिंकदर की मृत्यु के बाद उत्तरी भारत पर शासन करने वाले ग्रीस के राजाओं ने हेलसिन्की कला प्रणाली को अपनाकर सिक्कों के रंग-रूप को निखारने की कौन सा सिक्का चुनना है कोशिश की। इसी के बाद सिक्कों पर राजाओं की तस्वीरों को उतारने का चलन शुरू हुआ, जिसे कुषाण राजाओं ने और भी लोकप्रिय बनाया।

इसके बाद 700 सालों की राजनैतिक उथल-पुथल का असर सिक्कों पर भी पड़ा और इस दौरान इस दिशा में कोई बड़ा बदलाव देखने को नहीं मिला। लेकिन 1200-1280 ईस्वी के बीच गुलाम वंश के शासन कौन सा सिक्का चुनना है के दौरान सिक्कों को मानक रूप देने की कोशिश की गई। जहां अमीर वर्ग के लिए चांदी के सिक्के टंका तो निचले वर्ग में तांबे का सिक्का जीतल व्यापार के साधन थे।

व्यापार को मिला सोने का सिक्का

आठवीं ईस्वी में कुषाण राजाओं के काल में सिक्कों को एक नई पहचान मिली। वीम कदफाइसेस ने पहली बार सोने के सिक्के चलाए। दरअसल, प्रजा में अपनी पहचान और प्रचार-प्रसार के लिए कुषाण राजाओं ने मुद्रा यानी सिक्के का भरपूर इस्तेमाल किया।

सांकेतिक मुद्रा शुरू करने की नाकाम पहल

1329-30 ई. में मुहम्मद बिन तुगलक ने सांकेतिक मुद्रा शुरू करने की कोशिश की। हालांकि राज्य प्रणाली की कमजोरी ने इसे सिर्फ एक पहल बनाकर रख दिया और व्यापार फिर से सोने और कौन सा सिक्का चुनना है चांदी के सिक्कों में सिमटकर रह गया।

आधुनिक मुद्रा की शुरुआत

आधुनिक मुद्रा यानी रुपये को शुरू करने का श्रेय शेरशाह सूरी को जाता है। शेरशाह ने 11.4 ग्राम के चांदी के सिक्के की शुरुआत की, जिसे चांदी का रूपी भी कहा गया। दरअसल, चांदी के संस्कृत अर्थ रूप से रुपया शब्द सामने आया। मुगल साम्राज्य ने भी शेरशाह द्वारा शुरू तंत्र को ही आगे बढ़ाया। मुगल बादशाहों में जहांगीर को सिक्कों से कुछ खास लगाव था। बादशाह जहांगीर ने कुछ समय के लिए राशि चक्रीय सोने और चांदी के सिक्के चलाए। यही नहीं, 12 किलो का सोने का दुनिया का सबसे बड़ा सिक्का भी इसी दौरान बना।

सिक्का अधिनियम 1835

केंद्र में मुगल शासन के कमजोर होने के बाद अलग-अलग रियासतें अपने सिक्के जारी करती रहीं, जिनका मूल्य और प्रचलन राज्य की मजबूती पर निर्भर करता था। अंग्रेजी शासन की मजबूती के साथ आधुनिक सिक्के प्रचलन में आए। मद्रास, बांबे और बंगाल के साथ प्रिंसली स्टेट्स अपने सिक्के निकालते रहे। पूरे देश में अपने साम्राज्य को सुदृढ़ करने के बाद अंग्रेजों ने 1835 में सिक्का अधिनियम बनाया। पूरे देश के लिए सिक्कों का एक मूल्य निर्धारित किया गया। सिक्कों में एक तरफ रानी विक्टोरिया की तस्वीर और दूसरी तरफ अंग्रेजी और उर्दू में इनका मूल्य था।

सिक्का अधिनियम 1906

इसके तहत सोने, चांदी और रुपये के मानक निर्धारित कर दिए गए। हालांकि प्रथम विश्व युद्ध मे चंादी की कमी ने पेपर करेसी को प्रचलन में ला दिया। धीरे-धीरे सिक्कों पर भी विक्टोरिया की जगह अशोक स्तंभ ने ले ली।

स्वतंत्र भारत में सिक्कों को जारी करने का अधिकार आरबीआई के पास है। फिलहाल मुबंई, कोलकाता, हैदराबाद और नोएडा में इन्हे बनाया जाता है। इस तरह सिक्के किसी भी देश की अर्थव्यवस्था की मजबूती और उसकी सांस्कृतिक पहचान की सबसे बड़ी धरोहर हैं। सिक्कों की कहानी में एक अध्याय बंद भले हो सकता है, पर इनका सफर यूं ही बदस्तूर जारी रहेगा।

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