वास्को डी गामा की मेहनत के बाद यूरोप के लुटेरों, शासकों और व्यापारियों के लिए भारत पहुंचने का समुद्री रास्ता मिल गया. भारत पर कब्जा जमाने, व्यापार करने और लूटने की लगातार कोशिश होती रही. इसके साथ ही ईसाइयत के प्रचारक भी बड़ी संख्या में ईधर आने लगे. उन्होंने भारत के खासकर केरल राज्य के लोगों का धर्म बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

पुर्तगाली व्यापारियों का भारत में आगमन

पुर्तगाली व्यापारियों का भारत में आगमन | भारत में युरोपियों का आगमन | Purtagaaliyon Ka Bharat Aagman

यद्धपि आने वाले समय में गोवा , दमन एवं दियू को छोड़कर अधिकतर बस्तियाँ उनके अधिकार में नहीं रहीं ये तीनों क्षेत्र 1961 तक पुर्तगालियों के ही नियंत्रण में रहीं इस प्रकार पुर्तगालियों ने भारत में भीतरी क्षेत्रों पर अधिकार करने की कोशिश नहीं की और तटवर्तीय क्षेत्रों तक ही अपनी गतिविधियों को सीमित रखा ।

आधुनिक भारत का इतिहास

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भारतीय इतिहास में व्यापर - वाणिज्य की शुरुआत हड़प्पा काल से मानी जाती है । भारत की प्राचीन सांस्कृतिक विरासत, आर्थिक संम्पन्नता, आध्यात्मिक उपलब्धियां, दर्शन, कला आदि से प्रभावित होकर मध्यकाल में बहुत से व्यापारियों एवं यात्रियों का यहाँ आगमन हुआ । किन्तु 15वीं शताब्दी के उत्तरार्ध एवं 17वी शताब्दी के पूर्वार्ध के मध्य भारत में व्यपार के प्रारंभिक उद्देश्यों से प्रवेश करने वाली यूरोपीय कंपनियों ने यहाँ की राजनितिक, आर्थिक तथा सामाजिक नियति को पहला व्यापार मार्ग कौन सा था? पहला व्यापार मार्ग कौन सा था? लगभग 350 वर्षो तक प्रभावित किया । इन विदेशी शक्तियों में पुर्तगाली प्रथम थे । इनके पश्चात डच अंग्रेज डेनिश तथा फ्रांसीसी आये । डचों के अंग्रेजो से पहले भारत आने के बावजूद ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना डच ईस्ट इंडिया कंपनी से पहले हुई ।

भारत में डचों का आगमन

पुर्तगालियों के पश्चात पहला व्यापार मार्ग कौन सा था? डच भारत में आये । ये नीदरलैंड या हालैंड के निवासी पहला व्यापार मार्ग कौन सा था? थे । डचों की नियत दक्षिण पूर्व एशिया के मसाला बाजारों में सीधा प्रवेश कर नियंत्रण स्थापित करने की थी । 1596 ई. में कर्नेलिस डि हाऊटमैन (Cornelis de Houtman) भारत आने वाला प्रथम डच नागरिक था । डचों ने सन 1602 ई. में एक विशाल व्यापारिक कंपनी की स्थापना 'यूनाइटेड ईस्ट इंडिया कंपनी ऑफ़ नीदरलैंड' की स्थापना की । इसका गठन विभिन्न व्यापारिक कंपनियों को मिलाकर किया गया था । इसका वास्तविक नाम 'वेरिगंदे ओस्टिंडिशे कंपनी' था ।

इसके अतिरिक्त डचों द्वारा अन्य महत्वपूर्ण फैक्ट्रियां पुलिकेट (1610), सूरत (1616),चिनसुरा, विमलीपट्टनम, कासिम बाजार, पटना, बालासोर, नागपट्टनम तथा कोचीन में अवस्थित थी ।

विदेशी कंपनियां

यूरोपीय व्यापारिक कंपनी से संबद्ध व्यक्ति

भारत पहला व्यापार मार्ग कौन सा था? में फ्रांसीसियों का आगमन

फ्रांसीसियों ने भारत में अन्य यूरीपीय कंपनियों की तुलना में सबसे बाद में प्रवेश किया । भारत में पुर्तगाली डच अंग्रेज तथा डेन लोगो ने इनसे पहले अपनी व्यवसायिक कोठियों की स्थापना कर दी थी । संन 1664 ई. में फ्रांस की सम्राट लुइ 14वें की समय उनके मंत्री कोल्बर्ट की प्रयासों से फ़्रांसीसी व्यापारिक कंपनी 'कंपनी द इंड ओरिएंटल' (कंपनी देस इंडस ओरिएंटल) की स्थापना हुई । इस कंपनी का निर्माण फ्रांस की सरकार द्वारा किया गया था। तथा इसका सारा खर्च भी सर्कार ही वहन करती थी । इसे सरकारी व्यापारिक कंपनी भी कहा जाता था क्योकि यह कंपनी सरकार द्वारा संरक्षित थी व् सरकार आर्थिक सहायता पर निर्भर करती थी ।

सूरत में 1668 ई. में फ्रांसीसियों की प्रथम कोठी ई स्थापना फ्रैंक कैरो द्वारा की गई । फ्रांसीसियों द्वारा दूसरी व्यपारिक कोठी की स्थापना गोलकुंडा रियासत के सुल्तान से अधिकार पत्त्र प्राप्त करने के पश्चात सन 1669 ई. मसूलीपट्टनम में की गई । 'पांडिचेरी' की नींव फ़्रेंडोईस मार्टिन द्वारा सन 1673 ई. में डाली गई । बंगाल पहला व्यापार मार्ग कौन सा था? के नवाब शाइस्ता खां ने फ्रांसीसियों को एक जगह किराये पर दी जहाँ चंद्रनगर की सु्प्रसिद्ध कोठी की स्थापना की गई । डचों ने 1639 ई. में पांडिचेरी को फ्रांसीसियों के नियंत्रण से छीन लिया किन्तु 1697 ई. के रिज्विक समझौते के अनुसार उसे वापस कर दिया । फ्रांसीसियों द्वारा 1721 ई. में मारीशस, 1725 ई. में माहे (मालाबार तट) एवं 1939 ई. में कराईकल पर अधिकार कर लिया गया । 1742 ई. के पश्चात व्यापारिक लाभ कमाने के साथ साथ फ्रांसीसियों की राजनितिक महत्त्वकांक्षाए भी जाग्रत हो गई । परिणामस्वरुप अंग्रेज और फ्रांसीसियों के बीच युद्ध छिड़ गया । इन युद्धों को 'कर्नाटक युद्ध' के नाम से जानते है ।

व्‍यापार और भूमंडलीकरण | Vyapar aur Bhumandalikaran Objective

इस पोस्‍ट में हमलोग बिहार बोर्ड कक्षा 10 इतिहास के पहला व्यापार मार्ग कौन सा था? पाठ 7 ‘व्‍यापार और भूमंडलीकरण (Vyapar aur Bhumandalikaran Objective)’ के महत्‍वपूर्ण वस्‍तुनिष्‍ठ प्रश्‍नों को पढ़ेंगे। जो दसवीं बोर्ड परीक्षा के लिए बहुत महत्‍वपूर्ण है।

Vyapar aur Bhumandalikaran Objective

Class 10 History Chapter 7 व्‍यापार और भूमंडलीकरण

नीचे दिये गए प्रश्नों के उत्तर के रूप में चार विकल्प दिये गये हैं। जो आपको सर्वाधिक उपयुक्त लगे उनमें पहला व्यापार मार्ग कौन सा था? सही का चिह्न लगायें।

प्रश्न 1. प्राचीन काल में किस स्थल मार्ग से एशिया और यूरोप का व्यापार होता था ?
(क) सूती मार्ग
(ख) रेशम मार्ग
(ग) उत्तरा पथ
(घ) दक्षिण पथ

SOCIAL SCIENCE OBJECTIVE क्रैश कोर्स PART- 5

7⇒ 1915 में काबुल में भारत की अस्थायी सरकार की है अध्यक्ष
किसे बनाया गया था ?

उत्तर ⇒महेन्द्र प्रताप को

8⇒ जालियाबाला बाग हत्याकांड की जाँच के लिए सरकार न ने किस
समिति का गठन किया था ?

9⇒ हिन्द स्वराज पुस्तक किसने लिखी थी ?

उत्तर ⇒मोहनदास करमचंद गाँधी।

10⇒ तुर्की में खलीफा का पद किस वर्ष समाप्त किया गया।

11⇒ भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रथम अध्यक्ष कौन थे।

उत्तर ⇒व्योमेशचन्द्र बनर्जी।

12⇒ साइमन कमीशन के अध्यक्ष कौन थे ।

उत्तर ⇒सर जॉन साइमन।

13⇒ स्पिनिंग जेनी का आविष्कार कब हुआ ?

14 सेफ्टी लैम्प का आविष्कार किसने किया ?

उत्तर ⇒हम्फ्री डेवी।

यूरोप को भारत की समुद्री राह दिखाने की मुहिम के 523 साल, पढ़ें- वास्को डी गामा के सफर की पूरी डिटेल

यूरोप को भारत की समुद्री राह दिखाने की मुहिम के 523 साल, पढ़ें- वास्को डी गामा के सफर की पूरी डिटेल

आज से 523 साल पहले सन 1497 में 8 जुलाई (शनिवार) को पुर्तगाली नाविक वास्को डी गामा अपने जहाज से रवाना हुए और समुद्र के रास्ते भारत की यात्रा करने वाले पहले यूरोपीय बने. इसे भारत को खोजने जैसे हास्यास्पद तथ्यों की तरह पेश किया गया. हालांकि बाद में यह साफ हो गया कि वास्को डी गामा ने यूरोप को पहली बार भारत तक पहुंचने का समुद्री मार्ग बताया था. भारत की खोज नहीं की थी.

भारत की राह तलाशने की कारोबारी वजह

दरअसल, भारत पहले यूरोप के देशों के लिए एक पहेली जैसा था. यूरोप तब अरब के देशों से मसाले और मिर्च वगैरह खरीदता था. अरब देश के कारोबारी उसे यह नहीं बताते थे कि मसाले कहां उपजाते हैं या कहां से लाते हैं. यूरोप के बड़े व्यापारी इस बात को समझ चुके थे कि अरब कारोबारी उनसे जरूर कुछ छुपा रहे हैं. यूरोप वाले अरब के उस पार पूर्वी देशों से ज्यादा परिचित भी नहीं थे. इसलिए कारोबारी बुद्धि से प्रेरित होकर ही इटली के नाविक क्रिस्टोफर कोलंबस उस देश का समुद्री रास्ता ढुंढने निकले जिसको उनके यहां कोई नहीं जानता था. जिसके बारे में सिर्फ सुना था.

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