Money Guru: Direct Vs Regular प्लान; सोच-समझकर सही स्कीम चुनें तभी मिलेगा अच्‍छा रिटर्न

म्यूचुअल फंड (MF) में निवेश की जब भी बात आती है तो अक्सर दो प्लान के बारे में पता चलता है. डायरेक्ट (Direct) और रेगुलर (Regular) प्लान. अक्सर नये निवेशकों को सही ब्रोकर कैसे चुनें और गलत नहीं है? इन प्लान की ज्यादा समझ नहीं होती और कई बार गलत चुनाव कर लेते हैं. Money Guru पर समझिए डायरेक्ट और रेगुलर प्लान के बीच फर्क मनीफ्रंट के CEO, मोहित गांग से.

प्रॉपर्टी ब्रोकर और ब्रोकरेज फर्म के बीच मुख्य अंतर

एक विशाल संपत्ति बाजार में, कभी-कभी संपत्ति ब्रोकर, रियल एस्टेट एजेंट या रियल्टी सलाहकार के बिना एक संपत्ति खरीदने या बेचने के लिए संभव नहीं हो सकता है, जो आपको उसी के साथ मदद करता है। इस मामले में, क्या आपको अपने लिए काम करने के लिए एक व्यक्तिगत एजेंट या ब्रोकरेज सही ब्रोकर कैसे चुनें और गलत नहीं है? सही ब्रोकर कैसे चुनें और गलत नहीं है? फर्म को चुनना चाहिए? हम कुछ उत्तरों को खोजने की कोशिश करते हैं, जो प्रत्येक ऑफ़र के लाभों को देखते हैं।

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एक लिक्विडिटी प्रदाता क्या करता है?

फ़ोरेक्ष बाजार सबसे प्रगतिशील उपकरणों में से एक है जो दुनिया भर में नए खिलाड़ियों को आकर्षित करता है, और ब्रोकरेज कंपनियों की संख्या बढ़ रही है। एक नवागंतुक ब्रोकर को उच्च स्तर की प्रतिस्पर्धा सहित कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, क्योंकि ऐसी कंपनियों की कुल संख्या 3000 के निशान को पार कर गई है। लिक्विडिटी प्रदाता (LPs) एक शुरुआती ब्रोकरेज कंपनी के लिए सबसे महत्वपूर्ण मानदंड हैं।

फ़ोरेक्ष में लिक्विडिटी प्रदाता क्या है?

शुरुआती खिलाड़ियों के विशाल बहुमत को फ़ोरेक्ष बाजार की गलत समझ है। व्यापक अर्थों के बारे में बात करते हुए, फ़ोरेक्ष (FX) मुद्राओं को खरीदने और बेचने के लिए एक बाज़ार है, चाहे कितनी भी मात्रा हो। उदाहरण के लिए, जब कोई सरकार अपने रिजर्व फंड सही ब्रोकर कैसे चुनें और गलत नहीं है? के लिए यूएस डॉलर खरीदती है, तो वह FX बाजार में भी एक खिलाड़ी बन जाती है।

ऐसे कौन से खिलाड़ी हैं जो बाजार को सक्रिय बनाए रखते हैं, उत्तेजक सौदों को तुरंत निष्पादित किया जाता है? दुनिया के सबसे बड़े बैंक, हेज फंड और अन्य विशाल संस्थान अरबों डॉलर और अन्य मुद्राओं का प्रबंधन करते हैं, जिससे अन्य खिलाड़ियों के लिए सेकंड में मुद्राओं का आदान-प्रदान करना संभव हो जाता है।

इस बीच, एक ब्रोकर उन संस्थानों से सीधे तौर पर डील नहीं कर सकता है। व्यापारियों को बाजार तक पहुंच प्रदान करने के लिए मध्यस्थों की अत्यधिक आवश्यकता होती है, और ऐसे मध्यस्थों को LPs कहा जाता है।

लिक्विडिटी प्रदाता ≠ बाजार निर्माता

लिक्विडिटी प्रदाता क्या है? यहां उल्लिखित स्पष्टीकरण एक छवि देता है कि ऐसी कंपनियां कैसे काम करती हैं; इस बीच, शुरुआती खिलाड़ी अक्सर LPs को बाजार निर्माताओं के साथ भ्रमित करते हैं।

मार्केट मेकर वे संस्थाएं हैं जो ऑर्डर के निष्पादन की गारंटी देती हैं - यानी बैंक, फंड, आदि। दूसरे शब्दों में, वे बाजार को सक्रिय बनाते हैं। दूसरी ओर, कुछ ब्रोकर लिक्विडिटी प्रदाताओं पर लागू नहीं होते हैं, जो स्वयं बाजार निर्माताओं के रूप में कार्य करते हैं, लेकिन उनकी ऑर्डर बुक सीमित हैं।

जब कोई ब्रोकर यह समझता है कि लिक्विडिटी प्रदाता कैसे काम करता है, तो यह विश्वसनीय कंपनियों पर आवेदन करने का सही समय है, बाजार में तेजी लाने के लिए। ध्यान दें कि प्रदाता दो प्रकार के होते हैं।

लिक्विडिटी प्रदाताओं के प्रकार

दो संभावित प्रकार के लिक्विडिटी प्रदाता टियर 1 और टियर 2 हैं। टियर 1 प्रदाता रैंकिंग में शीर्ष पर हैं, क्योंकि वे बार्कलेज, मॉर्गन स्टेनली, BNP परिबास, UBS और अन्य प्रमुख खिलाड़ियों सहित दुनिया के सबसे बड़े बैंकों और फंडों से निपटते हैं। इसने कहा कि ऐसे प्रदाता उच्चतम लिक्विडिटी और शून्य स्प्रेड की गारंटी देते हैं।

टियर 2 प्रदाताओं के बारे में, वे खुदरा ग्राहकों के लिए कीमतें निर्धारित करते हुए, बाजार निर्माताओं के रूप में कार्य करते हैं। ये कंपनियां इंटरबैंक मध्यस्थ हैं, जो ब्रोकर और उनके ग्राहकों के लिए कम लाभकारी शर्तों की पेशकश करती हैं।

सर्वश्रेष्ठ लिक्विडिटी प्रदाता की तलाश में

लिक्विडिटी प्रदाता ब्रोकर के लिए क्या करता है? यह प्रश्न किसी भी तरह गलत लगता है, क्योंकि लिक्विडिटी प्रदाता ब्रोकर के ग्राहकों के लिए लाभ लाते हैं, उनके सौदों को तुरंत निष्पादित करते हैं और उन्हें नुकसान से बचाते हैं। इसने कहा कि एक विश्वसनीय और भरोसेमंद कंपनी समग्र सफलता श्रृंखला की आवश्यक कड़ियों में से एक है।

B2Broker फ़ोरेक्ष लिक्विडिटी प्रदाता श्रृंखला के शीर्ष पर है, क्योंकि कंपनी हमेशा आगे बढ़ रही है, ग्राहकों को नई चोटियों पर धकेल रही है। 80 व्यापारिक जोड़े के साथ सबसे गहरा लिक्विडिटी पूल प्राप्त करें। यदि आप B2Broker के साथ डील करते हैं, तो ट्रेडर 12 मिलीसेकंड से अपने ऑर्डर निष्पादित करवाते हैं। इसके अलावा, कंपनी अन्य परिसंपत्तियों के लिए लिक्विडिटी और प्रभावी टर्नकी समाधानों का एक सेट प्रदान करती है।

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Explainer : क्‍या है अल्‍गो ट्रेडिंग और सेबी के किस नियम से ब्रोकर्स में मचा हड़कंप, क्‍या इस ट्रेडिंग से मिलता है तय रिटर्न?

सेबी ने अल्‍गो ट्रेडिंग को लेकर ब्रोकर्स के लिए नियम बना दिए हैं.

सेबी ने अल्‍गो ट्रेडिंग को लेकर ब्रोकर्स के लिए नियम बना दिए हैं.

सेबी ने हाल में ही अल्‍गो ट्रेडिंग को लेकर नियम बनाया है. देश में तेजी से बढ़ रही इस ट्रेडिंग को लेकर अभी तक कोई रेगुले . अधिक पढ़ें

  • News18Hindi
  • Last Updated : September 07, 2022, 15:15 IST

हाइलाइट्स

पिछले सप्‍ताह बाजार नियामक सेबी ने इसे लेकर कुछ नियम बना दिए हैं.
स्‍टॉक की खरीद-फरोख्‍त पूरी तरह कंप्‍यूटर के जरिये की जाती है.
इसमें जैसे ही आप बटन दबाते हैं, कंप्‍यूटर ट्रेडिंग शुरू कर देता है.

नई दिल्‍ली. अग्‍लो ट्रेडिंग जिसका पूरा नाम अल्गोरिदम ट्रेडिंग (Algorithm Trading) है, यह वैसे तो भारत में नया कॉन्‍सेप्‍ट है लेकिन इसका इस्‍तेमाल साल 2008 से ही होता रहा है.

अल्‍गो ट्रेडिंग को लेकर अभी तक ब्रोकर तय रिटर्न का दावा करते थे, लेकिन पिछले सप्‍ताह बाजार नियामक सेबी ने इसे लेकर कुछ नियम बना दिए हैं और इसके बाद से ट्रेडिंग की इस नई विधा पर बहस भी शुरू हो गई है. इस बहस को हवा तब मिली जब जिरोधा के फाउंडर निखिल कामत ने अल्‍गो ट्रेडिंग के तय रिटर्न वाले दावे पर सवाल उठाए. उन्‍होंने कहा, अभी तक इसे लेकर काफी भ्रम फैलाया जा चुका है.

कैसे होती है अल्‍गो ट्रेडिंग
अल्‍गो ट्रेडिंग में स्‍टॉक की खरीद-फरोख्‍त पूरी तरह कंप्‍यूटर के जरिये की जाती है. इसमें स्‍टॉक चुनने के लिए जिस गणना का उपयोग होता है, वह भी कंप्‍यूटर द्वारा ही किया जाता है. इसीलिए इसका नाम ऑटोमेटेड या प्रोग्राम्‍ड ट्रेडिंग भी है. इसके लिए कंप्‍यूटर में पहले से ही अलग-अलग पैरामीटर्स के हिसाब से गणनाएं फीड की जाती हैं. साथ ही स्‍टॉक को खरीदना या बेचना है उसका निर्देश, शेयर बाजार का पैटर्न और सभी नियम व शर्ते भी पहले से फीड कर दी जाती हैं. जैसे ही आप बटन दबाते हैं, कंप्‍यूटर ट्रेडिंग शुरू कर देता है.

इस सिस्‍टम का लिंक स्‍टॉक एक्‍सचेंज के सर्वर से जुड़ा होता है, लिहाजा बाजार की पल-पल की अपडेट भी मिलती रहती है. इसकी मदद से ट्रेडिंग का समय काफी बच जाता है और ब्रोकर को भी सही स्‍टॉक चुनने में मदद मिलती है. यही कारण है कि अभी तक ब्रोकर यह दावा करते थे कि अल्‍गो ट्रेडिंग के जरिये तय रिटर्न मिलना आसान है. उनका तर्क था कि यह सिस्‍टम किसी स्‍टॉक की भविष्‍य की संभावनाओं और पुराने प्रदर्शन का सही व सटीक आकलन कर सकता है.

क्‍यों पड़ी सेबी की निगाह
बाजार नियामक सेबी ने दिसंबर, 2021 में ही कहा था कि वह जल्‍द ही अल्‍गो ट्रेडिंग को लेकर कुछ नियम बनाने वाला है. सेबी के दखल देने की सबसे बड़ी वजह यह है कि अभी भारतीय शेयर बाजार में होने वाली करीब 50 फीसदी ट्रेडिंग इसी विधा के जरिये की जाती है. इससे पहले तक यह ट्रेडिंग पूरी तरह नियंत्रण से बाहर थी, लेकिन अब सेबी ने इसे लेकर कुछ नियम बना दिए हैं.

क्‍या है सेबी का नया नियम
बाजार नियामक ने पिछले सप्‍ताह एक नोटिफिकेशन जारी कर कहा कि जो भी ब्रोकर अल्‍गो ट्रेडिंग की सेवाएं देते हैं, वे प्रत्‍यक्ष या अप्रत्‍यक्ष किसी भी रूप में स्‍टॉक के पुराने प्रदर्शन या भविष्‍य की संभावनाओं की जानकारी अपने उत्‍पाद के साथ नहीं दे सकेंगे. यह कदम ब्रोकर्स के उन दावों के बाद उठाया गया है, जिसमें अल्‍गो ट्रेडिंग की मदद से निवेशकों को तय और ऊंचे रिटर्न का झांसा दिया जाता था.

सेबी ने अपने सर्कुलर में यह भी कहा है कि अगर कोई ब्रोकर या उससे जुड़ी फर्म ने अपनी वेबसाइट या अन्‍य किसी माध्‍यम से किए गए प्रचार-प्रसार में अल्‍गो ट्रेडिंग से जुड़े इन कयासों का उल्‍लेख किया है तो सर्कुलर जारी होने के 7 दिन के भीतर उसे हटा दिया जाना चाहिए. निवेशकों के हितों को देखते हुए ब्रोकर भविष्‍य में ऐसा कोई प्रलोभन नहीं दे सकेंगे.

क्‍या सच में फायदेमंद है अल्‍गो ट्रेडिंग
भारतीय शेयर बाजार में अल्‍गो ट्रेडिंग का इस्‍तेमाल तेजी से बढ़ रहा है और अब तो आधे से ज्‍यादा ब्रोकर इसी का इस्‍तेमाल करते हैं. ऐसे में यह तो तय है कि अल्‍गो ट्रेडिंग कुछ फायदेमंद है, लेकिन इसका सही उपयोग तभी किया जा सकता है, जबकि ब्रोकर को कुछ सटीक जानकारियां मिल सकें. इसमें स्‍टॉक की हिस्‍ट्री, उसके आंकड़ों का वेरिफिकेशन और रिस्‍क मैनेजमेंट की गणना सबसे जरूरी है.

क्‍यों बढ़ रहा इसका चलन
1-हिस्‍ट्री की सही समीक्षा : सबसे जरूरी है कि किसी स्‍टॉक के पिछले प्रदर्शन की सही समीक्षा और उसके बाजार पैटर्न को समझकर ही उसके भविष्‍य में प्रदर्शन का आकलन लगाना चाहिए, जो कंप्‍यूटर बेहतर तरीके से करता है.
2-गलतियों की कम गुंजाइश : अल्‍गो ट्रेडिंग का पूरा काम कंप्‍यूटर के जरिये होता है. ऐसे में ह्यूमन एरर जैसी चीजों की आशंका शून्‍य हो जाती है. साथ ही यह रियल टाइम के प्रदर्शन के आधार पर भी स्‍टॉक का चुनाव कर सकता है.
3-भावनात्‍मक प्रभाव में कमी : सही ब्रोकर कैसे चुनें और गलत नहीं है? अल्‍गो ट्रेडिंग में किसी स्‍टॉक का चुनाव करते समय मानवीय भावनाएं आती हैं, क्‍योंकि इसकी गणना और चुनाव पूरी तरह से मशीन के सही ब्रोकर कैसे चुनें और गलत नहीं है? हाथ में होता है.
4-ज्‍यादा रणनीति का सृजन : कंप्‍यूटर एल्‍गोरिद्म के जरिये एक ही समय में सैकड़ों रणनीति बनाई जा सकती है. इससे आपका जोखिम प्रबंधन मजबूत होता है और निवेश पर ज्‍यादा रिटर्न कमाने के कई रास्‍ते खुलते हैं.
5-एरर फ्री ट्रेडिंग : अल्‍गो ट्रेडिंग पूरी तरह मशीन पर आधारित होने के नाते इसके जरिये गलत ट्रेडिंग या मानवीय गलतियों की आशंका भी खत्‍म हो जाती है. यही कारण है कि खुदरा निवेशकों में भी अब अल्‍गो ट्रेडिंग का चलन बढ़ रहा है.

इसके नुकसान भी हैं
-अल्‍गो ट्रेडिंग में बिजली की खपत ज्‍यादा होती है और पावर बैकअप न होने पर कंप्‍यूटर क्रैश भी हो सकता है. इससे गलत ऑर्डर, डुप्लिकेट ऑर्डर या फिर लापता ऑर्डर भी हो सकते हैं.
-ट्रेडिंग के लिए बनाई जा रही रणनीति और उसकी वास्‍तविक रणनीति के बीच अंतर हो सकता है. कई बार कंप्‍यूटर में खराबी की वजह से भी ऐसी स्थिति आ सकती है.
-कंप्‍यूटर आपको कई रणनीति और रिटर्न का कैलकुलेशन और रास्‍ता बताएगा, जो आपका नुकसान भी करा सकता है, क्‍योंकि बाजार की वास्‍तविक स्थितियां मशीनी रणनीति से अलग हो सकती हैं.

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